क्या सरकारी अस्पताल पर नहीं है जनप्रतिनिधियों को भरोसा!

आखिर निजि अस्पतालों के लिए क्यों जुटा रहे प्रतिनिधि संसाधन!
(लिमटी खरे)
सिवनी जिले में कोरोना की दूसरी लहर ने सभी को हिलाकर रख दिया है। सरकारी स्तर पर जो भी आंकड़े सामने लाए जा रहे हों, पर वास्तविकता इससे उलट ही है। प्रदेश में भाजपा की सरकार है अतः भाजपा संगठन सहित भाजपा के दोनों सांसद और दोनों विधायक संभवतः पार्टी लाईन से बाहर न जा पाएं, पर विपक्ष में बैठी कांग्रेस के जिला, नगर संगठन सहित दोनों विधायकों का मौन अपने आप में आश्चर्य का ही विषय माना जा सकता है।
सोशल मीडिया पर अगर नजर डाली जाए तो सत्ताधारी दल के नुमाईंदे ही लगातार प्रशासनिक असफलता की कहानी कहते नजर आ रहे हैं, कांग्रेस के इक्का दुक्का नेता ही प्रशासन की लापरवाही पर टीकाटिप्पणी करते नजर आते हैं।
एक अजीब बात देखने को मिल रही है इन दिनों, वह यह कि जिला चिकित्सालय में सुविधाएं बढ़ाने, बिस्तरों की तादाद बढ़ाने पर कोई भी ज्यादा जोर नहीं दे रहे हैं। कमोबेश हर नेता निजि स्तर पर अस्पताल की वकालत करता नजर आता है। निजि स्तर पर अस्पतालों में बिस्तर की तादाद बढ़ने या नागपुर आदि के चिकित्सकों के द्वारा सिवनी में अस्थायी अस्पताल खोलने की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए, किन्तु नेताओं को इस बात को भी सोचना होगा कि क्या निजि स्तर पर मिलने वाली सुविधाएं निशुल्क होंगी! जाहिर है नहीं, तब गरीब गुरबों के लिए निशुल्क स्वास्थ्य की अवधारणा को पंख कैसे लगाए जा सकेंगे!
मजे की बात तो यह है कि एक निजि चिकित्सक के पास सिवनी में कोई इंफ्रास्टक्चर नहीं है वह चिकित्सक सिवनी में पचास या तीस बिस्तर का अस्पताल खोलने की कवायद कर रहा है, पर सिवनी के जिला अस्पताल परिसर में विशालकाय भवन वाले पुराने एवं नए जीएनएम प्रशिक्षण केंद्र जहां पिछले साल प्रवीण सिंह के द्वारा कोरोना के वार्ड बनाए जाकर मरीजों का इलाज करवाया गया था, वहां अब तक एक भी बिस्तर नहीं लगाया गया है।
सवाल यही है कि पिछले साल बनाए गए वार्ड में रखे गए पलंग आदि सामग्री कहां गई! सांसद, विधायक को इस बारे में अस्पताल प्रशासन से दरयाफ्त करना चाहिए। अगर ज्यादा लंबा अरसा बीता होता तो माना जा सकता था कि पलंग आदि कंडम हो गए होंगे पर यह तो अभी महज आठ इस माह पहले की ही बात थी जब इन बिस्तरों को लगाया गया था।
सबसे पहले तो कांग्रेस और भाजपा के नेतओं सहित सांसद, विधायकों को अपना ध्यान इस ओर केंद्रित करना होगा कि सरकारी स्तर पर सुविधाएं कैसे मिल पाएं, इससे उलट नेताओं की कवायद देखकर सोशल मीडिया पर लोग यह भी कहते नजर आ रहे हैं कि निजि चिकित्सकों के एजेंट की भूमिका में नेता नजर आ रहे हैं।
सोशल मीडिया पर चल रही एक खबर के अनुसार राज्य सभा सांसद विवेक तनखा और प्रदेश के पूर्व मंत्री तरूण भनोत ने 32 टन आक्सीजन खरीदकर प्रशासन को सौंपी इसके अलावा तरूण भनोत ने पांच लाख रूपए रेड क्रास को सौंपे। सिवनी में दो सांसद और चार विधायक हैं। अगर ये चाहते तो सिवनी के अस्पताल को इस आपदा की स्थिति में चकाचक और सर्व सुविधायुक्त बनाने में कसर नहीं रख छोड़ते।
भाजपा, कांग्रेस के जिला, नगर अध्यक्षों, दोनों सांसदों, चारों विधायकों को चाहिए कि व रोगी कल्याण समिति, रेड क्रॉस के पास कितना पैसा है इस बारे में पहले पतासाजी करें। रोगी कल्याण समिति के द्वारा बनाए गए शापिंग कॉपलेक्स से ही यह आर्थिक रूप से पूरी तरह सक्षम ही है, दुकानें बिकने के दौरान एक मुश्त जमा राशि के अलावा हर साल 110 दुकानों का प्रतिमाह किराया भी इसे प्राप्त हो रहा है।
सोशल मीडिया पर चल रही खबरों को अगर सच माना जाए तो राज्य शासन के द्वारा हर जिले को दो करोड़ रूपए की राशि इस मद में दी गई है। इसके अलावा केवलारी विधायक राकेश पाल सिंह के द्वारा एक करोड़, सिवनी विधायक दिनेश राय के द्वारा एक करोड़, लखनादौन विधायक योगेंद्र सिंह के द्वारा तीन करोड़, बरघाट विधायक अर्जुन सिंह के द्वारा 35 लाख रूपए इस तरह कुल लगभग सवा आठ करोड़ की राशि स्वास्थ्य प्रशासन के पास कोविड के इलाज के लिए संसाधन जुटाने के लिए जमा हो चुकी है।
बहरहाल, जिस तरह निजि अस्पतालों या निजि तौर पर सुविधाओं को जुटाने की बात कही जा रही है उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि सियासी नुमाईंदांे को सरकारी स्तर पर सुविधाएं जुटाने के बजाए निजि तौर पर सुविधाएं जुटाने (कारण चाहे जो भी हो) में ज्यादा रूचि दिख रही है। हम निजि अस्पतालों मेें सुविधाएं मुहैया होने का दिल से स्वागत करते हैं, हम उन्हें हतोत्साहित कतई नहीं करना चाह रहे हैं पर, यह भी सच है कि गरीब गुरबों के लिए सरकारी स्तर पर सुविधाएं जुटाना बहुत ज्यादा आवश्यक हो रहा है।
गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाला शायद ही निजि अस्पताल में जाकर इलाज करवा सके, पर वह सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए अवश्य मुंह ताकता नजर आएगा। सरकारी अस्पताल में चिकित्सकों और पेरामेडिकल स्टॉफ की हालत देखते बन रही है। प्रबंधन के अभाव में चिकित्सक और पैरामेडिकल स्टॉफ भी हांफते ही नजर आ रहे हैं।
देखा जाए तो वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग में एक कुशल कमाण्डर की महती जरूरत महसूस हो रही है। जिले भर के खण्ड चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में कितने चिकित्सक हैं! इनमें से दो दो चिकित्सकों की ड्यूटी रोज ही अगर जिला अस्पताल में लगा दी जाए तो अस्पताल में चिकित्सकों और अन्य पर दबाव कम किया जा सकता है।
सिवनी में जीएनएम प्रशिक्षण केंद्र में अब तक तो वार्ड आरंभ हो चुकने थे। अस्पताल के सूत्र बताते हैं कि अस्पताल में दो वार्ड को छोड़ बाकी सब कोविड वार्ड में तब्दील हो चुके हैं। अब दुर्घटना, सामान्य बीमारी, स्नेक, डॉग बाईट आदि के मरीज कहां भरती होंगे! जाहिर है बिना सोचे विचारे ही जिसका जो मन आ रहा है वह अपने हिसाब से काम करता दिख रहा है . . . .

(साई फीचर्स)

 

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