केएफडी बीमारी की दस्तक, स्वास्थ्य अमला मौन!

 

जबलपुर सीएमएचओ ने जारी की एडवाईज़री, स्थानीय अमला पूरी तरह उदासीन

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। पशुजन्य रोग (जूनेटिक डिसीज) की संभावना को देखते हुए संभागीय मुख्यालय के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने ऐहतियातन एलर्ट जारी करते हुए एडवाईज़री जारी की है। इस मामले में सिवनी का स्वास्थ्य अमला पूरी तरह उदासीन ही नज़र आ रहा है। संभवतः इस मामले में जिले के स्वास्थ्य अमले को पता भी नहीं होगा कि इस तरह की कोई बीमारी है भी!

सीएमएचओ कार्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि स्वास्थ्य संचालनालय के द्वारा 24 फरवरी को एक पत्र जारी करते हुए इसका ईमेल सभी जिलों के सीएमचओ कार्यालय को भेजा गया था, जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया था कि क्यासानोर फॉरेस्ट डिसीज अर्थात केएफडी की संभावना प्रदेश में भी हो सकती है। इसके लिये एडवाईज़री भी जारी की गयी थी।

सूत्रों ने आगे बताया कि चूँकि सीएमएचओ कार्यालय में ईमेल आदि देखने का चलन ज्यादा नहीं है, इसलिये अब तक यह पत्र देखा भी नहीं गया है। इस पत्र में कहा गया है कि हाल ही में कर्नाटक राज्य के चिकमंगलूर से भोपाल जिले के दो मरीज़ों मे केएफडी पॉज़िटिव पाया गया है। इसके अलावा इस बीमारी के प्रकरण कर्नाटक, केरल, गोवा और महाराष्ट्र में भी दर्ज किये गये हैं।

इस पत्र में यह भी बताया गया है कि यह पशुजन्य बीमारी बंदर, चूहे और चमगादड़ों में पाये जाने वाले चिचड़ी के न्यूम्पस (तीसरे दर्जे का लाइफ साइकिल) के काटने से होती है। संक्रमित न्यूम्पस के काटने से केएफडी के वायरस मानव के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। यह बीमारी उन लोगों को होती है जो प्रभावित क्षेत्र में रहकर आये हों या जहाँ पर केएफडी बीमारी से किसी वानर की मौत हुई हो। इस बीमारी में मृत्यु दर महज़ दो से दस फीसदी ही है, किन्तु उमर दराज लोगों में इसकी मृत्यु दर ज्यादा हो सकती है। इस बीमारी का इंक्यूबेशन पीरियड तीन से आठ दिन तक का होता है।

लक्षण : सूत्रों की मानें तो इस बीमारी के लक्षणों में अचानक लगभग 104 फेरनहाइट तेज बुखार, ठण्ड लगना, उल्टी दस्त, जी मचलना, किसी काम में मन न लगना, सिर में दर्द, शरीर में दर्द, माँस पेशियों में जकड़न, प्रकाश को सहने की क्षमता आदि कम होना है।

उपचार : सूत्रों ने बताया कि इस बीमारी का कोई विशेष उपचार नहीं है, पर लक्षणों के हिसाब से ही इसका उपचार किया जाता है।

नियंत्रण एवं रोकथाम : सूत्रों ने बताया कि इससे बचने के लिये खेत, खलिहान, वन क्षेत्रों में टिक्स कंट्रोल के लिये उपाय किये जाने चाहिये। इसके अलावा शरीर को पूरी तरह ढंककर, पूरी आस्तीन के कपड़े पहनकर ही वन क्षेत्र या खेत खलिहान में जायें। घर के आसपास घासफूस, खरपतवार को न होने दें। अगर किसी बंदर की मौत इस बीमारी से हुई है तो उस स्थान के पचास मीटर की परिधि में दवाओं का छिड़काव किया जाये। इस वायरस के बारे में स्वास्थ्य अमले के द्वारा आम लोगों को जागरूक किया जाये।