(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में भगवान परशुराम का नाम लिया जाता है। यह नाम इन्हें भगवान शिव से मिले परशु को धारण करने की वजह से मिला था। इनका जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। इसी दिन भगवान विष्णु के नर नारायण और हयग्रीव अवतार का भी जन्म हुआ था।
ऐसी कथा है कि इन्होंने पिता के आदेश पर अपनी माता रेणुका का वध कर दिया था, लेकिन अपनी पितृ भक्ति के कारण माता को फिर से जीवित भी करवा लिया। इनके बारे में ऐसी कई बातें हैं जिन्हें पढ़कर आप रोमांचित और हैरान रह जायेंगे।
रामावतार के समय भगवान राम और परशुराम की मुलाकात सीता स्वयंवर के समय हुई थी जब भगवान शिव के धनुष को भंग करने के लिये परशुरामजी, राम का वध करने आये, लेकिन जब भगवान विष्णु के शारंग धनुष से भगवान राम ने बाण का संधान कर दिया तो परशुरामजी ने भगवान राम की वास्तविकता को जान लिया। उस समय भगवान राम ने एक चीज परशुरामजी को सौंप कर कहा कि इसे कृष्णावतार तक सम्हालकर रखें।
भगवान राम ने परशुरामजी को अपना सुदर्शन चक्र सौंपा था। कृष्णावतार के समय जब भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु संदीपिनी के यहाँ शिक्षा ग्रहण कर लिया तब परशुरामजी ने आकर श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र सौंप दिया।
परशुरामजी का महाभारत से एक और गहरा नाता है। इन्होंने भीष्म को धनुर्विद्या का ज्ञान दिया था। इस युग में इन्होंने कर्ण को भी धनुर्विद्या का ज्ञान दिया था। ये दोनों ही अपने युग में महान धनुर्धर माने जाते हैं।
भगवान परशुराम के विषय में ऐसी मान्यता है कि धरती पर मौजूद 07 अमर व्यक्तियों में एक भगवान परशुरामजी भी हैं। परशुरामजी भगवान राम से पहले अवतरित हुए थे और श्रीकृष्ण के युग में भी इन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा किया।
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