28 साल में नहीं हो पाया मुण्डारा का उद्धार!

 

सोलह जिलाधिकारी बदले, परवान नहीं चढ़ पायी योजना!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। जिले के मुण्डारा से निकलने वाली पुण्य सलिला बैनगंगा के उदगम स्थल मुण्डारा का कायाकल्य 27 साल में 16 जिलाधिकारी भी नहीं करवा पाये हैं।

जिले की जीवन दायिनी बैनगंगा नदी के उदगम स्थल मुण्डारा का पिछले माहों में जिलाधिकारी प्रवीण सिंह के द्वारा अवलोकन किया गया। उन्होंने मौके पर मौजूद कुरई एसडीएम कामेश्वर चौबे को निर्देश दिये कि वे यहाँ पूर्व में प्रस्तावित विभिन्न निर्माण कार्यों को जल्द से जल्द आरंभ करायें ताकि इस स्थल को पर्यटन क्षेत्र के रूप में और ज्यादा विकसित किया जा सके।

ज्ञातव्य है कि तत्कालीन जिला कलेक्टर धनराजू एस. ने बैनगंगा उदगम स्थल पर खारी विसर्जन को प्रतिबंधित कर स्थल से लगभग एक किलो मीटर दूर पृथक से खारी विसर्जन स्थल बनाने का कार्य आरंभ किया था, जहाँ शेड निर्माण का कार्य पूर्ण करने का निर्देश भी प्रवीण सिंह अढ़ायच द्वारा दिया गया था।

उल्लेखनीय होगा कि वर्ष 1992 में तत्कालीन जिला कलेक्टर जय नारायण शर्मा के द्वारा सबसे पहले मुण्डारा के कायाकल्प की योजना तैयार करवायी गयी थी। उनके कार्यकाल में इस काम का श्रीगणेश बकायदा हवन पूजन करके करवाया गया था। उनके उपरांत सिवनी में श्रीमति रश्मि शुक्ला शर्मा, बी.के. मिंज, एम.मोहन राव, संजय बंदोपाध्याय, मोहम्मद सुलेमान, दिनेश श्रीवास्तव, व्ही.एस. निरंजन, फैज अहमद किदवई, जी.के. सारस्वत, अनिल यादव, पी.नरहरि, मनोहर दुबे, अजीत कुमार, भरत यादव, धनराजू एस. एवं गोपाल चंद्र डाड बतौर जिलाधिकारी पदस्थ रह चुके हैं पर मुण्डारा के कायाकल्प की योजना अब तक परवान नहीं चढ़ पायी है।

यहाँ यह उल्लेखनीय होगा कि मुण्डारा से लाखों करोड़ों लोगों की प्यास बुझाने वाली पुण्य सलिला बैनगंगा निकलती है। इसकी सहायक नदियों में कन्हान, बावनथाड़ी और पेंच को माना जाता है। यह सिवनी जिले की अर्द्ध परिक्रमा करते हुए एशिया के मिट्टी के सबसे बड़े बांध भीमगढ़ में समा जाती है, जहाँ कुछ देर ठहराव के बाद बांध का पानी खोले जाने पर यह आगे बढ़कर बालाघाट जिले में प्रवेश कर जाती है। इसके बाद महाराष्ट्र के गोंदिया, चाँदा आदि जिलों से होकर वर्धा नदी में जा मिलती है। इसके बाद आगे जाकर बैनगंगा का जल गोदावरी में मिल जाता है। इस लिहाज़ से गोदावरी की सहायक नदी इसे माना जाता है।