(संजीव प्रताप सिंह)
सिवनी (साई)। गर्मी के मौसम के आते ही शीतल पेय और पेयजल की दुकानें सज जाती हैं। न तो नगर पालिका को ही इस बात की परवाह है कि वह पानी की गुणवत्ता जाँचे और न ही खाद्य एवं औषधि प्रशासन को ही इस बात की फुर्सत है कि वे यह जाँचें कि बाज़ार में बिक रहा ठण्डा पानी किस गुणवत्ता का है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ठण्ड के इन दिनों में भी पानी बेचने का धंधा चमकता नज़र आ रहा है। पानी के सौदागर साधारण पानी को ही पाऊच (200 एमएल) में भरकर उसे दो रुपये में बेच रहे हैं। इस पाऊच पर बड़े-बड़े आईएसआई के सील सिक्के तो दिख जाते हैं किन्तु इनकी निर्माण और अवसान तिथि के साथ ही साथ बैच नंबर्स का अता पता नहीं होता है।
इतना ही नहीं एक लीटर की बोतलों में भरा जाने वाला पानी जिसे मिनरल वाटर की संज्ञा दी जा रही है, में कितने मिनरल्स का मिश्रण है, इस बारे में भी शायद ही कोई बता सके। जिले में चल रहे पानी के कारखानों के द्वारा कितने पानी का दोहन किया जा रहा है और कितना व्यवसायिक दर से उनके द्वारा भुगतान किया जा रहा है, इस बारे में भी शायद ही कोई जानता हो।
बीते कुछ वर्षों से बीस लिटर के वाटर जग में ठण्डा पानी बेचने की दुकानें भी महानगरों की तर्ज पर जमकर चल रही हैं। बीस लीटर पानी को बीस रुपये से चालीस रुपये तक में आसानी से बेचा जा रहा है। दुकानदारों के द्वारा बीस लीटर वाले केन को खरीदा जाता है पर दुकानदार शायद ही यह बात जानते होंगे कि दो रुपये लीटर पानी जो वे खरीद रहे हैं, वह कितना शुद्ध है?
मजे की बात तो यह है कि एक वाटर केन सप्लायर के द्वारा छोटा हाथी में एक हजार लीटर की पानी की टंकियों को लादकर उनमें ठण्डा पानी भरकर दुकानदारों के कैन भरे जाते हैं। यक्ष प्रश्न यही खड़ा हुआ है कि इस तरह से अगर हजार लीटर की पानी की टंकी के जरिये पानी को स्थान – स्थान पर जाकर बेचा जा रहा है तो वह पानी कितना शुद्ध होगा?

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