प्रेतत्व विमुक्ति का साधन है पंच गकार : पाण्डेय

 

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। गौ, गीता, गंगा महामंच के अभियान के अंतर्गत पं.रविकान्त पाण्डेय ने बताया कि कठोपनिषद से लेकर गरूड़ पुराण, मार्कंडेय पुराण में इस बात का वर्णन किया गया है कि मृत्यु के पश्चात हर मनुष्य को प्रेत योनी मंे जाना होता है फिर 13 दिन तक क्रियाकर्म से जुड़े अंतिम संस्कार होते रहते हैं।

पाँच गकार के सेवा पारायण उपासना से मानव को प्रेतत्व से शीघ्र मुक्ति मिलती है। मुक्ति के साधन पंच गकार मे क्रमशः गौ, गीता, गंगा, गायत्री, गया श्राद्ध है। गौ, गीता, गंगा महामंच द्वारा चलाये जा रहे अभियान के अंतर्गत गौ, गीता, गंगा महामंच के सदस्यों द्वारा मझगंवा आश्रम के सदस्य भक्त रमेश बघेल की श्रृद्धांजलि कार्यक्रम के अंतर्गत उनके निज निवास मंे गीता पाठ किया गया।

इसमंे मझगंवा आश्रम से बलवंत श्रद्धानंद महाराज की उपस्थिति मे विद्वत जनों के द्वारा गीता पाठ किया गया। गौ, गीता, गंगा महामंच के मुख्य अभियंता पं.रविकान्त पाण्डेय ने बताया कि अंतिम संस्कार के बाद उस आत्मा को अंगूठे जितना बड़ा सूक्ष्म शरीर प्राप्त होता है। यही वह शरीर होता है जो मानव जीवन में किये गये कर्मांे का फल भोगता है। श्री पाण्डेय ने बताया कि पुराणों मे ऐसे पुण्य कर्म बताये गये हैं जिन्हें करने के बाद व्यक्ति प्रेतत्व से मुक्ति पा सकता है। प्रेतत्व मुक्ति के ये पंच महातत्व हैं जो मानव मुक्ति के सहज सरल साधन हैं, इन कर्मों को आप पंच ग भी कह सकते हैं।

गौ, गीता, गंगा महामंच के पं.रविकान्त पाण्डेय ने बताया कि प्रथम ग गंगाजल है गंगाजल का हिंदु धर्म और वेद – पुराणांे में बहुत अधिक महत्व बताया गया है। यदि व्यक्ति अपने जीवन काल में ही प्रतिदिन गंगा जल से स्नान करे, उसका सेवन करे तो उसे मृत्यु के बाद प्रेत नहीं बनना पड़ता है।

दूसरा ग है गीता का पाठ श्रीमद भगवत गीता स्वयं भगवान श्रीहरि के मुख से कही गयी अमृतवाणी हैं जो व्यक्ति अपने जीवन काल में प्रतिदिन गीता का पाठ करता है, उसे मृत्यु के बाद प्रेत नहीं बनना पड़ता है और उसकी सदगति हो जाती है। इसलिये दिन में कभी भी कैसे भी गीता के श्लोकों का पाठ अवश्य करें।

तीसरा ग गायत्री मंत्र का जप जो लोग अपने जीवन काल मंे प्रतिदिन सूर्योदय के समय या पूजन करते समय गायत्री मंत्र का जप करते हैं, वे भी प्रेत बनने से बच जाते हैं। चौथा ग बोध गया है बोध गया एक राक्षस गयासुर की पीठ पर बसा हुआ है। इस स्थान को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त है कि जो मनुष्य अपने पूर्वजांे का पिण्डदान करेगा, उसके पूर्वजों के साथ ही उसे भी मुक्ति मिलेगी और प्रेत नहीं बनना पडे़गा। इसलिये अपने पूर्वजांे का पिण्डदान करने के लिये और तीर्थ यात्रा के लिये व्यक्ति को जीवन मे एक बार गया तीर्थ अवश्य जाना चाहिये।

पाँचवां ग है गाय की सेवा, हममें से ज्यादातर लोग इस बात को जानते हैं कि गाय के शरीर मंे सभी देवी – देवताओं का निवास हमारे धर्म ग्रंथांे मंे बताया गया है इसलिये अपने जीवनकाल में गाय की सेवा अवश्य करनी चाहिये। जो लोग प्रतिदिन गाय की सेवा करते हैं उसे रोटी, जल और चारा देते हैं मृत्यु के बाद उन्हंे प्रेत बनने से मुक्ति मिलती है।