निजि स्कूल वसूल रहे तीन माह की फीस एक साथ!

 

 

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। निजि स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग ने असाधारण राजपत्र जारी कर निजि विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियम) अधिनियम 2017 के तहत नियम बनाने का प्रारूप दिये जाने के बाद स्कूलों की मनमानी रोकने जिला स्तरीय कमेटी भी बना दी, लेकिन निजि स्कूलों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।

शिक्षा विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि स्कूलों ने मनमाने तरीके से 10 प्रतिशत के स्थान पर 20 प्रतिशत तक फीस बढ़ा दी। वहीं अभिभावकों से गर्मियों की छुट्टियों अपै्रल, मई, जून की फीस भी जमा करवा ली गयी है।

अब जुलाई, अगस्त, सितंबर की फीस भी एक साथ जमा करवायी जा रही है। फीस जमा कराने स्कूल के छात्रों को रोजाना मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया जा रहा है। अभिभावकों का आरोप है कि शहर के अधिकांश सीबीएसई स्कूल अप्रैल, मई, जून के बाद जुलाई, अगस्त और सितंबर की एक साथ फीस जमा करवा रहे हैं। फीस जमा न करने पर बच्चों को रोज प्रताड़ित किया जा रहा है। अभिभावकों का कहना है कि वे शिकायत करेंगे तो बच्चों को ही नुकसान होगा।

ऐसे हैं नियम : फीस अधिनियम के नियम-9 के उपनियम 09, 10 और 11 में प्रावधान किया गया है कि जिला स्तरीय कमेटी को यदि शिकायत मिलती कि स्कूल 10 प्रतिशत से ज्यादा फीस ले रहे हैं, तो स्कूल की पहली गलती पर 02 लाख, दूसरी गलती पर 04 लाख और इसके बाद भी स्कूल नहीं मानता है तो 06 लाख रुपये पेनाल्टी लगायी जायेगी और स्कूल की मान्यता समाप्त की जायेगी।

नियम-4 के उपनियम 11 में ये भी कहा गया है कि स्कूल एक समय में एक से अधिक तिमाही फीस नहीं ले पायेंगे। यदि तिमाही फीस ली जाती है तो ये केपीटेशन फीस मानी जायेगी। स्कूल शिक्षा विभाग ने नियमों का प्रारूप तो जारी कर दिया, लेकिन अभी कानूनी मोहर न लग पाने के कारण अभिभावकों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।

नहीं हुई अब तक बैठक : शिक्षा विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में मध्य प्रदेश निजि विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियम) अधिनियम 2017 के तहत जिला स्तरीय कमेटी बनायी गयी है। इस कमेटी में जिले में कौन – कौन हैं इस बारे में शायद ही कोई जानता हो! अभी तक कमेटी की न तो बैठक हुई, न ही किसी भी स्कूलों की आय व्यय के रिकॉर्ड की जाँच की गयी।

सूत्रों का कहना है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों को नियम कायदों से ज्यादा सरोकार नज़र नहीं आता है। शिक्षा विभाग के आला अफसरानों के द्वारा पालकों के द्वारा शिकायत किये जाने का इंतजार रहता है। कॉपी किताब एवं गणवेश मिलने की दुकानों की जाँच के मामले में भी नियम कायदों को रद्दी टोकरी में डालने के बाद अफसरों के द्वारा सालों से एक भी प्रतिष्ठान का निरीक्षण करने की जहमत नहीं उठायी गयी है।