0 आखिर इतने बच्चे एनीमिक . . . 02
सीएमचओ का ध्यान क्यों नहीं जिले के पाँच एनआरसी पर!
(अय्यूब कुरैशी)
सिवनी (साई)। जिले में पाँच पोषण पुर्नवास केंद्र संचालित हो रहे हैं, जिनका भारी भरकम बजट भी जिले के शून्य से पाँच साल तक के बच्चों को कुपोषण से नहीं बचा पाया। यह आश्चर्य जनक सच्चाई है जो मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी सहित जिला परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिये काफी मानी जा सकती है।
ज्ञातव्य है कि दस्तक अभियान में जिले भर में एक हजार बच्चों को कुपोषण का शिकार पाया गया है। इनको रक्त उपलब्ध कराने के लिये गत दिवस जिला अस्पताल में रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया गया था। ये बच्चे कुपोषण का शिकार क्यों हुए, इस बारे में तफ्तीश करने की फुर्सत किसी को भी नहीं है।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिले में वर्तमान में पाँच पोषण पुर्नवास केंद्र (न्यूट्रीशियन रीहेलीबटेशन सेंटर, एनआरसी) संचालित हैं। इन एनआरसी में कुपोषित बच्चों को 14 दिन के लिये भर्त्ती किया जाता है।
सूत्रों ने आगे बताया कि जिला अस्पताल के एनआरसी में बीस बिस्तर, शेष लखनादौन, केवलारी, कुरई एवं घंसौर में दस – दस बिस्तर वाले एनआरसी संचालित हैं। यहाँ कम वजन या रक्त अल्पता वाले बच्चों को माता के साथ रखा जाकर उनका उपचार किया जाता है।
सूत्रों ने आगे बताया कि इन एनआरसी में बच्चों और उनकी माताओं को पोषण आहार दिया जाता है। इसके अलावा इन बच्चों का वजन अगर नहीं बढ़ रहा है तो उनका मोन्टास परीक्षण भी कराया जाता है। सूत्रों की मानें तो यह परीक्षण सिवनी में सालों से करवाया ही नहीं गया है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि एनआरसी में 14 दिन तक रखे जाने वाले बच्चे की माता को 120 रूपये प्रतिदिन की दर से मजदूरी का मुआवज़ा भी प्रदाय किया जाता है। इस दौरान निर्धारित डाईट दी जाकर उनका परीक्षण विशेषज्ञों से करवाया जाता है। यहाँ से छुट्टी देने के बाद हर 15 दिन में बच्चे का फॉलोअप भी लिया जाकर उसका वजन किया जाता है।
सूत्रों ने यह भी कहा कि दो महीने के फॉलोअप के बाद महिला बाल विकास विभाग के अधीन संचालित आँगनबाड़ी कार्यकर्त्ताओं का यह दायित्व होता है कि वे लगातार ही इस तरह के बच्चों और उनकी माताओं के स्वास्थ्य पर नज़र रखें। इस पूरी प्रक्रिया के बाद भी अगर 1000 बच्चे दस्तक अभियान में कुपोषित मिले हैं तो यह निश्चित तौर पर स्वास्थ्य व महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिये काफी है।
सूत्रों ने यह भी कहा कि जिला प्रशासन को चाहिये था कि रक्त दान शिविर लगाये जाने के साथ ही साथ शासन द्वारा की गयी इस फुलप्रूफ व्यवस्था के बाद भी इतनी तादाद में बच्चे कुपोषित कैसे हुए! इसकी उच्च स्तरीय जाँच करवायी जाना चाहिये। दरअसल, सीएमएचओ और डीएचओज को इतनी फुर्सत नहीं है कि वे जिला चिकित्सालय सहित जिले भर के अस्पतालों का निरीक्षण करें और शासन की योजनाएं किस तरह जमीन पर उतर रहीं हैं, इसकी जाँच करें!
(क्रमशः जारी)

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