जब कुछ नहीं होगा तब भी शिव होंगे: महाराज

 

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। भगवान शिव अनादि हैं। जब कुछ नही था तब भी शिव थे और जब कुछ नही होगा तब भी शिव होंगे। शिव को महाकाल कहा जाता है जिसका अर्थ समय भी है। यह बात आचार्य महा मंडलेश्वर प्रज्ञानानंद गिरी महाराज के द्वारा बुधवार से मोहगाँव में प्रारंभ हुए शिवपुराण के प्रथम दिवस बतायी।

जयपुर से जबलपुर और वहाँ से सिवनी होते हुए मोहगाँव पहुँचने पर उनका पुष्प वर्षा के साथ स्वागत किया गया। सुसज्जित रथ में बैठाकर उनको कथा स्थल तक ले जाया गया। पादुका पूजन के बाद यहाँ शिव पुराण का वाचन प्रारंभ हुआ। उन्होंने उपस्थित श्रोताओं को बताया कि जिस प्रकार इस ब्रह्मण्ड का न कोई अंत है और न कोई छोर। इसकी शुरूआत कहाँ से है यह भी ज्ञात नही है। इसी प्रकार शिव है जो अनादि और अनंत हैं।

आर्चाय महा मंडलेश्वर ने भगवान शिव के संबंध में उपस्थितों को बताते हुए कहा कि शिव ही सृष्टि का भरण – पोषण करते हैं। इसी स्वरूप ने अपने ओज और ऊष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। भगवान शिव सौम्य और रौद्र दोनों के लिये जाने जाते हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गये हैं।

उन्होंने बताया कि शिव का अर्थ कल्याणकारी है लेकिन वे हमेशा लय और प्रलय दोनों को अपने अधीन किये हुए हैं। शिव महापुराण के अनुसार भगवान शिव को महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चंद्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय, त्रयंबक, विश्वेश, महारूद्र, विषधर, नीलकंठ, महाशिव, उमापति, कालभैरव, भूतनाथ आदि नामों से भी पुकारा जाता है।

उन्होंने कथा को विस्तार देते हुए कहा कि सत्संग से ही विवेक पैदा होता है। आज की युवा पीढ़ी उलझन में है। वह विवेक से अपने मार्ग को तलाश नहीं पा रही है। इसका उन्होंने कारण बताते हुए कहा कि सत्संग से ही उचित विवेक प्राप्त होता है। आज स्थिति यह है कि अपने आपको सुरक्षित रखने के लिये सूरदास को भी लालटेन लेकर चलना होता है। सत्संग में हमेशा जूतों को उतारकर बैठना चाहिये क्योंकि जूता मनुष्य के अहकार की निशानी होता है। आज मनुष्य में परस्पर स्नेह और प्यार देखने को कम मिल रहा है, संघर्ष की स्थिति ज्यादा बनी हुई है।