इसलिये महिलाएं नहीं फोड़तीं नारियल

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। सनातन धर्म में धर्म की प्रकृति के साथ एकात्मकता दिखायी गयी है। यहाँ प्रकृति का पाँच तत्वों जल, थल, अग्नि, वायु तथा आकाश में वर्गीकरण ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं में एक ईश्वर की प्रधानता बतायी गयी है। इसी क्रम में जानवरों, पेड़ – पौधों, फल, फूल सभी को विशेष स्थान देकर उनकी महत्ता स्थापित की गयी है।

हिंदू धर्म की कुछ मान्यताएं अचरज में डालने वाली हैं, जैसे कि अति पवित्र माने जाने वाले नारियल को महिलाएं नहीं फोड़ सकतीं। पूजा के दौरान या फिर किसी शुभ कार्य के आरंभ के समय नारियल का प्रयोग किया जाता है। गृह प्रवेश या फिर किसी नये कार्य का शुभारंभ भी नारियल को फोड़कर ही किया जाता है, लेकिन महिलाओं को इसके लिये अनुमति नहीं है।

इस मामले में ज्योतिषाचार्यों का मत है कि हिंदु धर्म में स्त्री को साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है तथा उनकी श्रेष्ठता की बात की गयी है फिर भी पारंपरिक रूप से पूजा के दौरान अथवा अन्य किसी भी स्वरूप में महिलाओं को नारियल फोड़ने का अधिकार नहीं दिया गया है। यह विशेषाधिकार विशेष रूप से पुरुषों के लिये ही सीमित रखा गया है। क्या आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है?

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार परंपरागत रूप से नारियल को नयी सृष्टि का बीज माना गया है। इसकी कथा ब्रह्मऋषि विश्वामित्र द्वारा नयी सृष्टि के सृजन करने से जुड़ी हुई है, तब उन्होंने सर्वप्रथम पहली रचना के रूप में नारियल का निर्माण किया, यह मानव का ही प्रतिरूप माना गया था।

गौरतलब होगा कि ज्योतिषाचार्यों के अनुसार नारियल को बीज का स्वरूप माना गया है और इसे प्रजनन यानि उत्पादन से जोड़कर देखा गया है। स्त्रियां संतान उत्पत्ति की कारक होती हैं, इसी कारण उनके लिये नारियल को फोड़ना एक वर्जित कर्म मान कर निषिद्ध कर दिया गया।

उनके मतानुसार स्त्रियां बीज रूप से ही शिशु को जन्म देती हैं और इसलिये नारी के लिये बीज रूपी नारियल को फोड़ना अशुभ माना गया है। देवी देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं। हालांकि प्रामाणिक रूप से ऐसा किसी भी धार्मिक ग्रंथ में नहीं लिखा गया है, न ही ऐसा किसी देवी – देवता द्वारा निर्देश दिया गया है। सामाजिक मान्यताओं तथा विश्वास के चलते ही वर्तमान में हिंदु महिलाएं नारियल नहीं फोड़तीं हैं। यह सब सामाजिक मान्यताओं और विश्वास के चलते वर्षों से हमारे रीति रिवाज का हिस्सा बना हुआ है।