अब तक नहीं मिल पाये चोरी गयी पाँच दर्ज़न शौचालय!

 

 

जनवरी में की थी घंसौर थाने में शिकायत, मामला अभी तक है जाँच में!

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। इस साल जनवरी माह में घंसौर थाने में एक अजीबो गरीब मामला आया था। घंसौर के ग्रामीणों ने थाने में लिखित शिकायत देकर कहा था कि उनके शौचालय चोरी हो गये हैं। गाँव में 55 घर थे और कमोबेश हर घर के सदस्यों ने यह शिकायत की थी। बावजूद इसके इस गाँव को खुले में शौच से मुक्त कर दिया गया था।

मामला घंसौर विकास खण्ड की साल्हेपानी ग्राम पंचायत के ददरी ग्राम का था। घंसौर पुलिस सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि 05 जनवरी को ग्रामीणों के साथ क्रांति एकता परिषद के सदस्य जनपद पंचायत के कार्यालय गये थे और ग्रामीणों ने अपना दुखड़ा अफसरान को सुनाया था।

सूत्रों का कहना है कि उस दौरान जनपद पंचायत के अधिकारियों को सरपंच और सचिव के द्वारा भी यह कहा गया था कि उनकी जानकारी में भी यह नहीं था कि उक्त ग्राम में शौचालय बने थे। सरपंच बखत लाल कुर्राम की मानें तो उन्हें जब इस ग्राम को खुले में शौच से मुक्त करने की बात का पता चला तो वे भी आश्चर्य में पड़ गये थे, क्योंकि उनकी जानकारी में ददरी ग्राम में शौचालय बने ही नहीं थे। उन्होंने उस समय यह भी कहा था कि वे भी इस बात की तस्दीक करना चाहते हैं कि मौके पर बिना बने शौचालयों को कागजों पर कैसे पूर्ण दर्शाकर गाँव को ओडीएफ कर दिया गया।

सूत्रों ने बताया कि इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से नर्मदा यात्रा के दौरान की गयी शिकायत के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया था। वैसे भी विकास खण्ड घंसौर में शौचालय निर्माण में सबसे ज्यादा गड़बड़ी की बातें सामने आ रही थीं।

सूत्रों की मानें तो तत्कालीन जिला कलेक्टर धनराजू एस. के द्वारा प्रशासन को पारदर्शी बनाने की गरज से जिले के आठों विकास खण्ड में बने शौचालयों की जाँच के आदेश दिये गये थे। शुरूआती दौर में घंसौर में ही तीन हजार शौचालय कागजों पर बने होने की बात प्रकाश में आयी थी। उस दौरान सभी जिम्मेदारों पर कार्यवाही की बात भी प्रशासनिक स्तर पर कही गयी थी।

वहीं, इस मामले के उजागर होने के बाद ग्रामीण शक्ति सिंह सहित सरपंच बखत लाल कुर्राम का कहना है कि इस मामले की पूरी जाँच होना चाहिये। एक शौचालय की पुष्टि आसानी से नहीं हो जाती है बल्कि इसके लिये ग्राम पंचायत से सचिव, जनपद के इंजीनियर, रोजगार सहायक, सीईओ सहित आधा दर्जन अधिकारियों के हस्ताक्षर होते हैं। इसके साथ ही शौचालय को जियो टैग करने के बाद पोर्टल पर भी अपलोड करना होता है जिसमें शौचालय के बाहर घर के मुखिया की तस्वीर भी होती है। सवाल यह है कि कैसे इन प्रावधानों को दरकिनार कर गाँव को ओडीएफ घोषित कर दिया गया।

सूत्रों का कहना है कि इस मामले में ग्रामीणों के द्वारा उनके घरों से शौचालय गायब होने की शिकायत पुलिस को भी दी गयी थी। आधा साल बीत जाने के बाद भी इस मामले में जाँच अब तक जारी ही है।

मैं खुद हैरान हूँ, आखिर अधिकारियों ने गाँव को ओडीएफ कैसे घोषित कर दिया जबकि गाँव में एक भी शौचालय नहीं बना है. अभी हमने नये शौचालयों के निर्माण के लिये अनुमति माँगी तब इस बात की जानकारी हुई.

बखत लाल कुर्राम,

सरपंच, पंचायत साल्हेपानी.

मामले में ग्रामीणों ने एक शिकायत दी है, जिसे जाँच के लिये संबंधित अधिकारियों तक भेजा जायेगा.

संजय भलावी,

थाना प्रभारी, घंसौर.