क्लिष्ठ हिन्दी शब्दों को सीख रही नई पीढ़ी!

भूख लगने पर कहते हैं-माते भोजन दे दो

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। माते, भ्राता, अनुज, ज्येष्ठ, पिताश्री और सखा। ये वो शब्द हैं, जिन्हें जुबां पर लाते ही हमें अपने भारतीय होने पर गर्व महसूस होता है। जो पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से कहीं खो गए थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण फिर से सुनाई दे रहे हैं।

सालों बाद मौका दिया है दूरदर्शन पर एक बार फिर से प्रसारित हो रहे रामायण और महाभारत ने। इन दोनों मेगा सीरियल के बाद अन्य डायरेक्टर्स ने हाथ आजमाए और रामायण व महाभारत बनाए, लेकिन वह अनुभूति महसूस नहीं हुई, जो बीआर चोपड़ा के महाभारत और रामानंद सागर की रामायण प्रयासों में नजर आती है।

इन दोनों सीरियल को अभिभावक ही नहीं उनके बच्चे भी रोचकता से देख रहे हैं। खास बात यह है बच्चे टीवी देखते समय क्लिष्ट शब्दों को लेकर अपने अभिभावकों से सवाल पूछते हैं। जाहिर सी बात है उनकी हिंदी मजबूत ही हो रही होगी। वे अंग्रेजी के मायाजाल से धीरे-धीरे बाहर निकल रहे हैं।

अभिभावकों ने बताया दोनों सीरियल संस्कारों से परिपूर्ण हैं, जबकि आए दिन प्रसारित हो रहे कुछ सीरियल ऐसे हैं, जिन्हें बच्चों के साथ बैठकर देखा नहीं जा सकता है। मॉडर्न होते छोटे पर्दे ने मामा को अंकल बना दिया है, पिता को डैडी नहीं डैड कर दिया है। भारतीय नारी के सिर पर कम से कम पर्दा सिर तक अनिवार्य है, घूंघट की बाध्यता नहीं, मगर आज के सीरियल में ऐसी कोई बात नहीं। वे कहते हैं बच्चे मां को माते और पापा को पिताश्री से संबोधित कर रहे हैं। भूख लगने पर कहते हैं माते भोजन दे दो।

डालडा फेक्ट्री के पास रहने वाला कोन्हेर परिवार सुबह और शाम रामायण के दोनों एपिसोड देख रहा है। परिवार की सदस्य और छात्रा अनु ने बताया कि रामायण की कहानी के साथ उसके सभी पात्रों के बारे में पता था। लेकिन इसे टीवी पर देखना बहुत ही अलग अनुभव है।

उनके भाई सार्थक बताते हैं कि पापा बताते हैं कि उनके समय पर जब यह सीरियल आया करता था तो कर्फ्यू लग जाया करता था। आज हम भी कुछ ऐसे ही माहौल पर इसे टीवी पर देख रहे हैं। इससे हमें बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। पहले माता-पिता को जितना आदर दिया जाता था शायद आज नहीं देते हैं, क्योंकि व्यवहार काफी दोस्ताना हो गया है।

इस बारे में अनाया भौसले ने बताया कि इंग्लिश मीडियम में पढ़ते हैं तो कुछ हिंदी के शब्दों समझने में कठिनाई होती है तो अभिभावकों से पूछ लेते हैं। अब यह भाषा पसंद आने लगी है और घर में बोलचाल में इसका इस्तेमाल भी करते हैं।

भूलने लगे सोशल मीडिया की भाषा

मनोज पिंटू भौसले बताते हैं कि पिछले 10 – 12 दिनों से हर दिन घर पर रामायण और महाभारत देख रहे हैं। मुझे लगता था कि बच्चों को इसमें दिलचस्पी नहीं होगी, लेकिन वे एक भी एपिसोड मिस नहीं करते हैं। उनके व्यवहार में भी सकारात्मक बदलाव आ रहा है। अब वे स्लैंग लैंग्वेज के बजाय हिंदी के शब्द बोलने लगे हैं। वे भगवान राम, सीताजी और अन्य पात्रों से बहुत कुछ सीख रहे हैं। वे पूछते हैं कि जब वनवास सिर्फ श्रीराम को हुआ था तो सीताजी और लक्ष्मणजी साथ क्यों गए। हनुमानजी रामजी के इनते भक्त क्यों हैं। इन बातों के जवाब में ही उन्हें कई संस्कार मिल जाते हैं।

लौटा पुराने विज्ञापनों का दौर

रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिकों के साथ ही विज्ञापनों में भी नाइंटीज का दौर दिखने लगा है। समसामयिक विषयों पर विज्ञापन देने के लिए मशहूर अमूल ने इस दौर को फिर से टेलीविजन पर लाने का प्रयास किया है। अमूल ने भी ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी थी कि दर्शकों की डिमांड पर हम रेट्रो मोड पर आ गए हैं। पुराने विज्ञापनों को अमूल ने सोशल मीडिया पर भी शेयर किया। इस ट्वीट्स को प्रसार भारती ने भी रीट्वीट किया है।