वृक्षों की ताकत बन सकती है चिकित्सा के लिये वरदान

 

 

फ्लोरल और फ्यूना पर हुई कार्यशाला

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। वन अनुसंधान केन्द्र जबलपुर के वैज्ञानिक डॉ.उदय होमकर ने कन्या महाविद्यालय में आयोजित विलुप्त होती प्रजातियां (फ्लोरल और फ्यूना) पर अपनी बात रखते हुए बताया कि आज भी हमारे जंगलों में अनेक प्रकार की औषधियां हैं, जो मानव के लिये वरदान बनी हुई हैं।

उन्होंने कहा कि इसके लिये विभाग द्वारा निरंतर प्रयास किया जाता है कि ये प्रजातियां समाप्त न हो जायें, इसके लिये लगातार शोध किये जाते हैं।

जंगलों में पायी जाती है औषधि की यह प्रजाति : उन्होंने बताया कि प्रदेश के जंगलों में 645 प्रकार की औषधियां पायी जाती है जिनमें शाक (ऊगते झुण्ड) 325 झाड़ियों में, 144 वृक्ष में, 121 बेला में 53 प्रकार की जड़ी – बूटियां पायी जाती हैं। इसके अतिरिक्त अनेक औषधियों का उपयोग घरों में किया जाता है, जिसका संग्रहण कृषि एवं वनों के द्वारा किया जाता है। औषधियों में अनेक प्रकार की औषधियां संगध पौधे के रूप में जानी जाती हैं।

औषधि से लाभ : प्रदेश में 440 प्रकार की औषधि की प्रजातियां पायी जाती हैं। इनमें 70 वन कंद, 45 औषधियां बेला, 76 रोपणी तकनीकी एवं 30 प्रतिशत कृषि तकनीकी से प्राप्त होती हैं। इन सभी औषधियों से लाभ कैसे प्राप्त हो इसके लिये लगातार प्रयास किये जाते हैं।

पार्क में नहीं की जाती कटाई : इसी तरह जंगलों में रहने वाले जानवरों जैसे बारहसिंगा जो कि कान्हा नेशनल पार्क में अधिक पाये जाते हैं उन्हें दूसरे स्थान पर ले जाने के दौरान पूर्व में ले जाने वाले स्थान पर वातावरण तैयार किया जाता है। इसी तरह नेशनल पार्क में लकड़ी की कटाई नहीं की जाती क्योंकि यहाँ पर लकड़ी उत्पादन से लेकर क्षरण तक के बीच में जो क्रिया होती है, इससे वन्य जीव एवं औषधियों का निर्माण होता है। निश्चित ही यह लोगों के लिये जिज्ञासा का विषय है। इस अवसर पर विज्ञान संकाय के प्रमुख डॉ.शेषराव नांवगे, सोनाली जायसवाल, अनीता कुल्हाड़े, डॉ.रूचिका यदु आदि उपस्थित रहीं।

 

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