लुभावने विज्ञापन से पालकों को आकर्षित कर रहे शाला संचालक

 

(ब्यूरो कार्यालय)

केवलारी (साई)। शिक्षा जब से व्यवसाय बनी है तब से इसके प्रचार – प्रसार में भी भारी तरक्की आयी है और नित नये – नये स्कूल भी अलग – अलग दावो के साथ खुलते जा रहे है। आज शाला से ज्यादा फायदे का धंधा शायद और कोई नहीं जो साल भर मुनाफा देता है।

ऐसे में बच्चों के पालकों को लुभाने के लिये स्कूल संचालक नये – नये हथकण्डे अपनाने से नहीं चूक रहे हैं। केवलारी मुख्यालय हो या संपूर्ण विधान सभा क्षेत्र में खुल रहे प्राईवेट स्कूल, दूसरे स्कूलों से खुद को बेहतर बताने के लिये ऐसे – ऐसे दावे कर रहे हैं जो हकीकत से परे ही नज़र आ रहे हैं।

वहीं यदि सुविधाओ की बात करें तो प्राईवेट स्कूल संचालक बच्चों की सुरक्षा से लेकर शिक्षा विभाग के नियम हों या फिर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिये गये दिशा निर्देश, सभी को ताक पर रख कर सिर्फ अपने स्कूलों की दर्ज संख्या बढ़ाने मात्र पर ध्यान दे रहे हैं। दूसरी तरफ ऐसे अधिकारी जिन पर इन स्कूलों की मनमानियों पर नकेल कसने की जिम्मेदारी है वो या तो शिकायत का इंतजार करते बैठे हैं या फिर होने वाले किसी हादसे के बाद ही इनकी नींद टूटेगी।

अंग्रेजी माध्यम के नाम पर वसूल रहे मोटी फीस : आजकल सभी पालक चाहते है कि उनका बच्चा अंग्रेजी माध्यम में पढ़े और सीबीएसई की चाह कुछ ज्यादा ही है। ऐसे में स्कूल संचालक अंग्रेजी माध्यम और सीबीएसई के नाम पर पालकों को जम कर चूना लगा रहे हैं।

कम वेतन पर ऐसे शिक्षकों की भर्त्ती कर जो खुद अंग्रेजी न ठीक से बोल पाते, न लिख और पढ़ पाते, न ही कभी उनका विषय अंग्रेजी रहा है। इनको लेकर अंग्रेजी माध्यम में पढ़ायी कैसे करायी जा सकती है ये तो स्कूल संचालक ही जानें, लेकिन अंग्रेजी माध्यम के नाम पर पालकों की जम कर जेब ढीली हो रही हैं।

सीबीएसई पैटर्न : ऐसे स्कूल जो अभी आठवीं तक ही हैं और सिर्फ सीबीएसई के लिये एप्लाई किये हुए हैं, वो अपने वाहनों से लेकर पम्पलेट और प्रचार – प्रसार के माध्यमों में सीधे सीबीएसई लिखने से नही चूक रहे हैं। आखिर मामला पालकों को लुभा कर मोटी फीस वसूलने का जो है।

दूसरे स्कूलों से निकले गये शिक्षक की भर्त्ती कर महानगरों से प्रशिक्षित शिक्षकों का कर रहे दावा : कुछ स्कूल तो ऐसे हैं जो दूसरे स्कूलों से निकाले गये ऐसे शिक्षकों को भर्त्ती कर इंदौर, भोपाल, दिल्ली, नागपुर या अन्य महानगरों से प्रशिक्षित शिक्षक होने का दावा कर रहे हैं जो पहले किसी और स्कूल से या तो बीएड डीएड न होने की वजह से निकाले गये थे या फिर जिनके दस्तावेज ही पहली नज़र में फर्जी दिखायी देते हैं।

प्रश्न यही उठता है कि ऐसे शिक्षकों को रख कर बच्चों का और उनकी पढ़ायी लिखायी का कितना भला होगा इसका तो भगवान ही मालिक है। स्थानीय शिक्षक ही जब भर्त्ती करना है तो फिर ग्रामीण क्षेत्र के पालकों को लुभाने के लिये महानगरों से प्रशिक्षित शिक्षक होने का झूठा दावा क्यों किया जा रहा है!

कर्मचारियों और शिक्षकों का कोई भी स्कूल नहीं करवाते पुलिस वेरीफिकेशन : आये दिन बच्चों के साथ स्कूलों में या आते जाते समय अलग – अलग घटनाओं से सारा देश दहल जाता है। बावजूद इसके कोई भी स्कूल संचालक अपने यहाँ कार्य करने वाले ड्राईवर, कंडक्टर, गार्ड या ऑफिस स्टाफ और शिक्षकों का न कभी पुलिस वेरीफिकेशन कराते हैं, न ही उनसे कभी ये शपथपत्र लेने की जरूरत समझते हैं जिस से ये जानकारी लग सके कि उनपर कोई गंभीर अपराध का प्रकरण तो नही चल रहा है।

वाहनों से लेकर स्कूल तक किसी भी तरह के निर्देशों का नहीं हो रहा पालन : स्कूली शिक्षा विभाग और माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी बच्चों की सुरक्षा को लेकर बहुत से दिशा निर्देश और अनिवार्य नियम बनाये जाते हैं लेकिन ज्यादातर स्कूलों में इनका पालन ही नही होता। कहा जाता है कि तमाम नियम कानूनों को महज़ आदेश समझ कर पढ़ लिया जाता है और जिस तरह सरकारी आदेशों का पालन शालाओं के द्वारा नहीं किया जाता है उसी तरह इन नियम कायदों को भी रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया जाता है।

पालकों को होना होगा जागरूक : अपने नौनिहलों को किसी भी स्कूल में दाखिल करने से पहले पालकों को चाहिये कि वे संस्थाओं के द्वारा किये जा रहे तमाम दावों की पड़ताल करें। इसके बाद स्कूल की मान्यता संबंधित दस्तावेजो की खुद जाँच करें ये उनका अधिकार है। इसके साथ ही जिन सुविधाओं के बारे में बताया जा रहा उन सुविधाओं को पहले देख लें और आश्वत हो जायें तभी बच्चे का दाखिला करवायें।

पालकों को चाहिये कि यह सुविधा जल्द ही आरंभ होगी के झाँसे में कतई न आयें, क्योंकि अधिकांश शाला संचालकों के द्वारा लोक लुभावन सुविधाओं को परोसने का दावा तो कर दिया जाता है किन्तु इन्हें अमली जामा नहीं पहनाया जाता है।

जिम्मेदार अधिकारियों को होता है शिकायतों का इंतजार : केवलारी के आसपास लगभग दर्जन भर प्राईवेट स्कूल हैं लेकिन कभी ऐसा नहीं देखा गया कि जिम्मेदार अधिकारी बिना शिकायत किसी स्कूल में गये हों और स्कूल के दस्तावेज, शिक्षकों के सभी दस्तावेजों उनकी योग्यता के साथ ही स्कूल के द्वारा किये जा रहे दावों और बच्चों के लिये किये गये सुरक्षा के इंतजामो की जाँच की गयी हो।