वास्तविक इतिहास को क्यों बिसार रहा प्रशासन!

 

 

0 प्रशासन लिखवा रहा जिले का नया इतिहास . . . 04

दीपावली की रात हुआ था 40 हज़ार लोगों का कत्लेआम!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। जिला प्रशासन के द्वारा नेशनल इंफरमेशन सेंटर (एनआईसी) के जरिये बनायी गयी सिवनी की सरकारी वेब साईट में जिले के वास्तविक इतिहास को ही भुलाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। आनन फानन में ऑन एयर की गयी वेब साईट में तथ्यों को अगर दुरूस्त नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ी उसी इतिहास को सच मानेगी जो इस पोर्टल पर दर्ज होगा।

जिला प्रशासन के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिला प्रशासन के द्वारा उपलब्ध कराये गये तथ्यों को एनआईसी के द्वारा सिवनी जिले की सरकारी वेब साईट पर दर्ज किया गया है। जिला प्रशासन के द्वारा आनन फानन में ही 22 जुलाई को इस वेब साईट को ऑन एयर करवा दिया गया है।

सूत्रों का कहना है कि इस पोर्टल पर ऐतिहासिक, सामरिक, धार्मिक महत्व की बातों का समावेश तो किया गया है पर इसमें प्राचीन और अति प्रचीन इतिहास को भुलाते हुए डेढ़ दो दशक में अस्तित्व में आयीं घटनाओं आदि को प्रमुखता के साथ स्थान दिया गया है, जिसकी अच्छी प्रतिक्रिया सामने नहीं आ रही है।

इस पोर्टल को देखकर लोग भ्रमित भी हो रहे हैं। इस पोर्टल में छपारा को बहुत ज्यादा स्थान नहीं दिया गया है जबकि आज भी देश – प्रदेश में सिवनी को सिवनी छपारा के नाम से ही जाना पहचाना जाता है। छपारा को पहले डोंगरी छपारा के नाम से भी जाना जाता था। माना जाता है कि छपारा में छः टोले (पारे) थे जिसके कारण इसका नाम छपारा पड़ा था। जानकार बताते हैं कि दीपावली की रात यहाँ 40 हजार लोगों का कत्लेआम भी हुआ था।

जानकार बताते हैं कि सिवनी से छपारा जाते समय बैनगंगा नदी को पार करना पड़ता था। बैनगंगा नदी का पाट लंबा और गहरा होने के कारण यहाँ 1865 में एक पुल का निर्माण करवाया गया था। इस पुल में एक दर्जन कमानियों का समावेश किया गया था। छपारा को देवगढ़ के राजा बख्त बुलंद के रिश्तेदार रामसिंह के द्वारा बसाया गया था।

जानकारों की मानें तो अरण्य पुराण में रामायण कालीन दण्डकारण्य क्षेत्र के बैनगंगा एवं छपारा का उल्लेख मिलता है। लिपिबद्ध इतिहास की बात की जाये तो पंद्रहवीं सदी के आसपास गढ़ मण्डला के गौंड़ राज्य के समय छपारा का उल्लेख मिलता है। लिपिबद्ध इतिहास में इसके संस्थापक जादो राव एवं यादव राव माने जाते हैं।

जानकारों के अनुसार छपारा के पूर्व में एक महल हुआ करता था जो गढ़ मण्डला का 1480 से 1542 तक शासन करने वाले द्वितीय शासक संग्राम शाह के 52 महलों में से एक हुआ करता था। उस दौर में यहाँ के गौंड़ संप्रदाय के लोग अपने आप को फलत्स ऋषि के पोते रावण का वंशज भी मानते थे। उस दौर में सोने, चाँदी एवं तांबे के सिक्कों का उल्लेख भी मिलता है।

इतिहास के जानकार बताते हैं कि गौंड़ शासन काल की नींव हिलने के बाद छपारा क्षेत्र मुगल साम्राज्य का अंग बन गया। 1701 में बख्त बुलंद नामक शासक छपारा में अपनी सेना के साथ आकर रूके। एक बार शिकार के दौरान इस शासक की जान बचाने वाले राज खान नामक युवक की बहादुरी से प्रसन्न होकर उन्होंने डोंगरताल का फैजदार नियुक्त कर दिया था।

जानकारों की मानें तो आगे जाकर राज खान ने दीवान घराने की नींव रखी। वे दीवान घराने के संस्थापक भी माने जाते हैं। इसके अलावा देवगढ़ के राजा द्वारा अपने किसी खास राम सिंह को छपारा आदि का राज्य सम्हालने पाबंद किया। उनके द्वारा छपारा को अपना मुख्यालय बनाया गया और पुराने जीर्ण शीर्ण होते किले को तजकर नया किला बनाया गया, जिसके अवशेष बैनगंगा तट पर आज भी इतिहास की झलक के रूप में दिखायी देते हैं।

(क्रमशः जारी)