बिना जजमेंटल हुए देखें ‘जजमेंटल है क्या’

 

 

 

 

यह महज एक इत्तेफाक हो सकता है, या कंगना की जबर्दस्त अदाकारी का करिश्मा… उनकी ताजा रिलीज जजमेंटल है क्याके कई डायलॉग्स को सुनते हुए लगता है, जैसे वह अपने दिल की बात, संवादों के बहाने कह रही हों। किरदार में वह इस कदर रच-बस गई हैं कि कुछ समय के लिए हम भूल ही जाते हैं कि उनका असल व्यक्तित्व कैसा है। और इस बार तो उनका साथ देने के लिए राजकुमार राव जैसा तुरुप का पत्ता भी था। कंगना, राजकुमार, एक कसी हुई कहानी और जबर्दस्त सिनेमैटोग्राफी को मिलाने से जजमेंटल है क्यानाम की जो रेसिपी तैयार होती है, उसका सुलगता हुआ फ्लेवर सीधे दिल में उतर जाता है, धुएं में घुले जायके वाले किसी सिजलर की मानिंद।

जजमेंटल है क्याकहानी है एक डबिंग आर्टिस्ट बॉबी ग्रेवाल बाटलीवाला (कंगना रनौट) की, जो मुंबई स्थित दादरी में रहती है। उसका एक बुरा कल है, जो उसे आज भी डराता है। अपने काम के प्रति बॉबी इतनी समर्पित है कि वह जिस किरदार के लिए डबिंग करती है, असल जिंदगी में भी उससे दीवानगी की हद तक जुड़ जाती है। उसे इन किरदारों के लिबास में फोटो खिंचवाना भी पसंद है। कभी रौबदार इंस्पेक्टर की वर्दी में तो कभी किसी हॉरर फिल्म की हीरोइन के गाउन में। बॉबी का एक दोस्त (हुसैन दलाल) भी है जो पिछले दो सालों से उसके बॉयफ्रेंड की श्रेणी में आने के लिए जुगत लगा रहा है। बॉबी के घर में केशव (राजकुमार राव) अपनी खूबसूरत पत्नी (अमायरा दस्तूर) के साथ बतौर किराएदार रहने आता है। हैंडसम और रहस्यमय व्यक्तित्व वाले केशव के प्रति बॉबी एक अजीब सा आकर्षण महसूस करती है। इस बीच एक कत्ल हो जाता है, जिसके शक की सुई कभी केशव की तरफ घूमती है, तो कभी बॉबी की तरफ। कभी लगता है कि हो न हो, बॉबी ही कातिल है, तो कभी लगता है, केशव कीभोली सूरत के पीछे जरूर एक डरावना चेहरा छुपा है। फिल्म का अंत बहुत चौंकाता तो नहीं है, पर इसका फिल्मांकन बेहद रोचक है।

कंगना के दिमाग में चल रही उठापटक का माहौल बनाने के लिए फिल्म की कई लोकेशंस में रंग-बिरंगी ग्राफिटी वाली दीवारें दिखाई गई हैं। कंगना पहले भी मानसिक समस्या से ग्रस्त किरदार निभा चुकी हैं। उस अनुभव को साथ लिए उनके तेवरों से एक नए रंग-ढंग में फिर से दो-चार होना रोचक है। तारीफ कनिका ढिल्लन के लेखन की भी होनी चाहिए, जो फिल्म को एक अलग स्तर पर ले जाता है। किरदारों के संवाद फिल्म के मूड से एकदम मेल खाते हैं। इनमें हास्य का पुट भी है, लेकिन चूंकि यह एक डार्क थ्रिलर फिल्म है, इस लिहाज से हास्य को लेकर एक संतुलन बनाए रखना जरूरी था, जो बनाया गया है।

पंकज कुमार की सिनेमेटोग्राफी भी जजमेंटल है क्याको एक बेहतरीन फिल्म बनाती है। लंदन में आईनों के सामने राजकुमार राव पर फिल्माया गया एक दृश्य बेहद प्रभावी है। गाने बहुत अच्छे नहीं हैं, पर ये फिल्म की प्रकृति और गति से पूरी तरह मेल खाते हैं। फिल्म के अंत में वखरा स्वैगगीत दिखाया जाता है, जिसका फिल्मांकन काफी ग्लैमरस है। इन दिनों प्रयोगधर्मी फिल्मों की जो लहर चल रही है, ‘जजमेंटल है क्याको भी उसका एक हिस्सा कहा जा सकता है। फिल्म को बिना जजमेंटल हुए देखेंगे, तो यह यकीनन आपको पसंद आएगी।

(साई फीचर्स)

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