(ब्यूरो कार्यालय)
नई दिल्ली (साई)। बीते जमाने की मशहूर एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर ने हाल ही वेब सीरीज ‘गुलमोहर‘ से एक्टिंग में कमबैक किया और तब से वह हर तरफ छाई हुई हैं। साठ और सत्तर के दशक में भी शर्मिला टैगोर का खूब जलवा था और वह उस दौर की हाइएस्ट पेड एक्ट्रेसेस में शुमार थीं। शर्मिला टैगोर ने अपने करियर में कुछ ऐसी फिल्में की, जिन्हें आज भी ‘कल्ट‘ माना जाता है। इन फिल्मों में शर्मिला की परफॉर्मेंस की खूब तारीफ हुई। इन्हीं में से एक फिल्म है ‘आराधना‘, जोकि 1969 में रिलीज हुई थी। शर्मिला टैगोर ने अपनी इस फिल्म की तुलना एसएस राजामौली की RRR से की है।
Sharmila Tagore हाल ही दिल्ली में एक सेशन के दौरान मौजूद थीं, जिसका नाम था Breaking The Boundaries: An Accidental Actor To An Idol. इस सेशन में बातचीत के दौरान शर्मिला ने बताया कि 1967 में फिल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस‘ के बाद उन्होंने क्यों मीनिंगफुल फिल्में करनी शुरू कीं। बातचीत में शर्मिला ने वह दौर याद किया जब ‘आराधना‘ की रिलीज के वक्त चेन्नै में हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू हो गया था।
उस बवाल को याद करते हुए शर्मिला टैगोर ने कहा, ‘जब ‘आराधना‘ 1969 में रिलीज हुई थी तो उस वक्त चेन्नै में हिंदी के खिलाफ खूब विरोध-प्रदर्शन चला था। उस समय एक तरह से हिंदी भाषा का बायकॉट चल रहा था वहां। फिर भी ‘आराधना‘ सिनेमाघरों में 50 हफ्तों तक चली। यह हमारे समय की RRR फिल्म थी। यह दिखाता है कि भावनाएं भाषा से परे हैं। हमारी फिल्में, चाहे वो किसी भी क्षेत्र से आती हों, लोगों को हंसाती हैं और रुलाती हैं। इसलिए हमारी समानताएं हमारे मतभेदों से कहीं अधिक हैं।‘
मालूम हो कि एसएस राजामौली की RRR मूल रूप से तेलुगू भाषा में बनी थी, लेकिन इसे हिंदी भाषा में भी रिलीज किया गया था। फिल्म को साउथ से लेकर हिंदी बेल्ट ही नहीं बल्कि विदेश में भी खूब प्यार मिला। करीब 550 करोड़ रुपये के बजट में बनी ‘आरआरआर‘ ने बॉक्स ऑफिस पर 1200 करोड़ से अधिक कमाई की थी। यही नहीं, इस फिल्म के ‘नाटू नाटू‘ गाने ने गोल्डन ग्लोब और बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग का ऑस्कर अवॉर्ड भी जीता था। एन इवनिंग इन पेरिस‘ फिल्म में शर्मिला टैगोर ने बिकिनी पहनी थी, जिस पर काफी बवाल मचा था। यहां तक कि संसद में भी यह बहस का विषय बन गया था। लेकिन इस फिल्म के बाद शर्मिला ने ग्लैमरस किरदारों के बजाय सिर्फ मीनिंगफुल किरदार ही करने का फैसला किया।