देश भर के सिनेमाघरों पर बंद होने का खतरा!

ओटीटी प्लेटफार्म सहित अन्य कारकों के कारण बंद होने के कगार पर पहुंच रहे हैं सिनेमाघर!

(ब्यूरो कार्यालय)

मुंबई (साई)। कोविड-19 और पूर्णबंदी का नुकसान लगभग सभी को हुआ है। अगर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव किसी पर पड़ा है तो वह है फिल्म उद्योग और सिनेमाघरों के मालिकों को। इनको कोविड 19 के बाद लगातार मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। कोविड-19 बाद दर्शकों का ओटीटी की तरफ ज्यादा झुकाव, दर्शकों को सिनेमाघर तक लाने की कोशिश, बावजूद इसके बड़े और छोटे बजट की फिल्मों का लगातार पिटना, सिनेमा मालिकों के लिए किसी सदमे से कम नहीं था। छोटे-छोटे शहरों और गांवों में सिनेमाघर धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं या कुछ समय के लिए रोक दिए गए हैं। मल्टीप्लेक्स सिनेमा के कारण सभी सिनेमाघर बंद होने की कगार पर हैं। इसका प्रभाव फिल्म उद्योग की आर्थिक व्यवस्था और दर्शकों की फिल्म देखने की इच्छा पर पूरी तरह पड़ रहा है। क्या सिनेमाघर के बंद होने की वजह बॉलीवुड फिल्मों की विफलता भी है? एक नजर

2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार 25 वर्षों में सिनेमाघरों की संख्या 24000 से घटकर 9000 तक पहुंच गई है और 2023 की रपट के अनुसार सिनेमाघरों की मौजूदा संख्या 5000 है। कुछ सिनेमाघर माल और इमारतों की जगह बनाने के लिए खत्म हो गए, तो कुछ दर्शकों की कमी के कारण धीरे-धीरे खंडहर बन गए। कहना गलत ना होगा कि सिनेमाघर थिएटर हमारी संस्कृति की धरोहर हैं जहां से सिनेमा प्रेमियों के मनोरंजन की शुरुआत हुई थी।

आज सिनेमाघर खंडहर में तब्दील हो गए हैं। फिल्म प्रेमियों के लिए सिनेमाघर एक वरदान की तरह था, जिसमें कम दाम में टिकट लेकर दर्शक अपनी पसंदीदा फिल्म का आनंद उठाते थे। लेकिन आज सिनेमाघर लगभग ना के बराबर चल रहे हैं जोकि धीरे-धीरे माल या मल्टीप्लेक्स में तब्दील हो रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ सिनेमाघर के दरवाजे शाहरुख खान की फिल्म पठान के प्रदर्शन के वक्त एक बार फिर खुले। कई छोटे शहरों और गांव के सिनेमाघरों में पठान प्रदर्शित हुई और सफल भी रही। ऐसे में क्या यह कहना गलत नहीं होगा कि सिनेमाघर को जल्दबाजी में पूरी तरह खत्म करना गलत निर्णय है।

फिल्म समीक्षक और संपादक नरेंद्र गुप्ता के अनुसार सिनेमाघर बंद होने के पीछे बालीवुड फिल्मों की विफलता ही एक कारण नहीं है, बल्कि बड़ी वजह मल्टीप्लेक्स थिएटर का आगमन है। जबसे मल्टीप्लेक्स की शुरुआत हुई है, तबसे सिनेमाघर की महत्ता कम होने लगी है। सिनेमाघर के दर्शक कम होने की वजह यह भी है कि वहां का रखरखाव, बैठने की व्यवस्था मल्टीप्लेक्स के मुकाबले बहुत ही सस्ती और खराब गुणवत्ता की है। इसकी वजह से उच्च वर्गीय और मध्यवर्गीय लोग सिनेमाघरों में जाना पसंद नहीं करते। यहां तक कि कोविड-19 में भी 700 मल्टीप्लेक्स की बढ़ोतरी हुई थी। इसके बाद मल्टीप्लेक्स 4400 के आसपास हैं। वहीं सिनेमाघर जो पहले 6400 के करीब थे अब सिर्फ 5000 रह गए हैं और उनमें से भी कई या तो बंद हो रहे हैं या मल्टीप्लेक्स में बदल रहे हैं।

कोविड-19 के बाद जो बॉलीवुड फिल्में आईं और काफी पिट भी रही हैँ। उसका बुरा प्रभाव सिर्फ सिनेमाघरों पर ही नहीं, मल्टीप्लेक्स को भी झेलना पड़ा। फिल्म समीक्षक जोइता मित्रा के अनुसार मल्टीप्लेक्स से 85 से 90 फीसद तक कमाई हो जाती है, जबकि सिनेमाघर से 10 से 15 फीसद कमाई होती है। फिल्मों से होने वाली कमाई वितरण रणनीति, नामी कलाकार, प्रदर्शन अवधि और फिल्मों की आपसी प्रतिस्पर्धा पर निर्भर करती है। निर्माताओं की कोशिश होती है कि वे अपनी फिल्म 300 से 4500 सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने का प्रयास करें। मसलन सुल्तान ने जहां 556 करोड़ के कमाई की, वहीं पठान ने हजार करोड़ तक की कमाई का कीर्तिमान बना लिया।

सच तो यह है कि सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स दोनों की अपनी अपनी अहमियत है। इसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। एक तरफ सस्ते दाम के टिकट के साथ कम बजट की फिल्म सिनेमाघर में प्रदर्शित की जा सकती है। वहीं बड़े बजट की सितारों से सजी फिल्में मल्टीप्लेक्स में प्रदर्शित की जा सकती हैं। मेरा मानना है कि दर्शक सिनेमाघरों में भी जरूर आएंगे बशर्ते उनकी हालत पहले की तरह बेहतर हो। सिनेमाघर मालिकों को अगर पैसा कमाना है तो उन्हें अपने थिएटर की व्यवस्था अच्छी करनी पड़ेगी तब ही दर्शक सिनेमाघरों की तरफ आकर्षित होंगे। आज के समय में भले ही मल्टीप्लेक्स थिएटर ज्यादा मांग है, लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में सिनेमाघरों का बोलबाला है।