इमोशन्स से भरपूर और पॉवरफुल है ‘छपाक’

 

कलाकार-  दीपिका पादुकोण,विक्रांत मेसी 

निर्देशक – मेघना गुलजार

मूवी टाइप- ड्रामा 

कोई चेहरा मिटा के और आंख से हटा के चंद छींटे उड़ा के जो गया छपाक से पहचान ले गयाशंकर एहसान लॉय की धुनों और गुलजार के लिखे इन अल्फाजों संग फिल्म छपाकजो सुलगना शुरू होती है तो अंत तक इसकी तपिश कायम रहती है। हमारी मुलाकात होती है मालती से, जिसके चेहरे पर किसी मनचले ने एसिड फेंकवा दिया था। झुलसे चेहरे और बुलंद इरादों वाली मालती 2020 की बॉलीवुड हीरोइन के रूप में हम सबसे रूबरू है जो आंखों में आंखें डालकर कह रही है कि उन्होंने मेरा चेहरा बदला है, इरादे नहीं…चलते हैं, मालती की इस दुनिया में, जो भयावह होते हुए भी खूबसूरत है।

19 साल की मालती (दीपिका पादुकोण) एक गर्ल्स स्कूल में पढ़ती है। उसके स्कूल के पास ही एक बॉयज स्कूल है जिसमें पढ़ने वाले राजेश (अंकित बिष्ट) को वह चाहती है। इनकी प्रेम कहानी को ग्रहण तब लग जाता है जब बशीर खान नाम के एक परिचित दर्जी का दिल मालती पर आ जाता है। वह उसके फोन पर रोमांटिक मैसेज भेजने लगता है जिन्हें मालती चुपचाप नजरअंदाज करती रहती है। एक रोज जब वह मालती और राजेश को साथ घूमते देख लेता है, तो जलभुन जाता है। और फिर एक रोज वह अपने परिवार की एक महिला को एसिड की बोतल थमा कर मालती के चेहरे पर एसिड फिंकवा ही देता है। मालती की जिंदगी बदल जाती है। सर्जरी के बाद अपना नया चेहरा देखकर वह खुद ही डर जाती है। सजने-संवरने की तमाम चीजें संदूक में भरकर किनारे रख देती है। ऐसे में उसकी वकील (मधुरजीत सरघी) उसकी खोई हिम्मत को दोबारा जगाती हैं। उसे याद दिलाती हैं कि उस पर एसिड फेंकने वाले उसका जज्बा ही तो तोड़ना चाहते थे। बात मालती को समझ में आती है और वह तय करती है कि इस मंसूबे को वह कभी कामयाब नहीं होने देगी। इस बीच उसकी मुलाकात अमोल द्विवेदी (विक्रांत मैसी) से होती है जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए एक एनजीओ चलाता है। मालती अमोल की संस्था से जुड़ जाती है। वह एसिड की बिक्री रोकने के लिए अदालत में एक पीआइएल भी दाखिल करती है। आगे की कहानी और मालती के संघर्ष के बारे में जानने के लिए फिल्म देखना ही बेहतर होगा।

अभिनय

एक्टिंग के मामले में दीपिका पादुकोण ने बेजोड़ काम किया है। एक एसिड पीड़िता के एसिड सर्वाइवर बनने के सफर के दौरान मनोस्थिति में जिस तरह की तब्दीली आती है, उसे उन्होंने जबर्दस्त ढंग से अभिव्यक्त किया है। खौफ, गुस्सा और ग्लानि के भावों का जिजीविषा, खुशी और आत्मविश्वास में तब्दील होना एक अलग ही असर पैदा करता है। विक्रांत मैसी एक गंभीर, जिद्दी एनजीओ मालिक के किरदार में जंचे हैं, हालांकि उनके रोल की लंबाई थोड़ी और बड़ी होती तो अच्छा रहता। मधुरजीत सरघी वकील के किरदार में बेहद सहज लगी हैं। दीपिका और विक्रांत की केमिस्ट्री शानदार रही है। मलय प्रकाश की सिनेमेटोग्राफी अद्भुत है। कुछेक दृश्यों का फिल्मांकन गजब का है, जैसे ट्रेन में एसिड सर्वाइवर्स के दुपट्टे लहराने वाला दृश्य। फिल्म का कलेवर वैसे तो सिनेमायी है, पर इसमें कुछ-कुछ डॉक्यूमेंट्री वाला अंदाज भी है। मसाला मनोरंजन तलाश रहे लोगों के लिए यह फिल्म कतई नहीं है। फिल्म में एक कमी यह नजर आती है कि यह एसिड सर्वाइवर्स की दुनिया में थोड़ा और गहरे उतर सकती थी।

(साई फीचर्स)