जानिए इस वर्ष उत्तर एवं दक्षिण भारत में कब से आरंभ होगा श्रावण मास . . .
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श्रावण हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह से प्रारंभ होने वाले वर्ष का पाँचवा मास है। भारत में इस माह में वर्षा ऋतु होती है और प्रायः बहुत अधिक गर्मी होती है। श्रावण मास, जिसे सावन का महीना भी कहा जाता है, भगवान शिव की पूजा करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए मनाया जाता है। सावन माह के दौरान सोमवार का दिन शुभ होता है और ऐसा माना जाता है कि यदि भक्त समर्पण के साथ भगवान शिव की पूजा करे तो भगवान शिव उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
श्रावण मास शिवजी को विशेष प्रिय है। देवाधिदेव महादेव, ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान भोलेनाथ ने स्वयं कहा है-
द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मे तिवल्लभः!
श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मतः!!
श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततो पि श्रावणः स्मृतः!!!
यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिदः श्रावणोऽप्यतः!!!!
अर्थात मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है, इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है।
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श्रावण मास, जिसे आमतौर पर सावन या श्रावण मास के रूप में जाना जाता है, हिंदू पुराण के अनुसार एक पवित्र महीना माना जाता है। यह हिंदू कैलेंडर का पांचवा महीना है। पश्चिमी कैलेंडर के अनुसार श्रावण आम तौर पर जुलाई से अगस्त महीने के आसपास आता है।
श्रावण नाम स्वयं नक्षत्र श्रावण से आता है, जो कि पूर्णिमा पर या इस महीने के दौरान कभी भी आसमान में दिखाई देता है। बारिश के आगमन का जश्न मनाने के लिए पूरे भारत में एक महत्वपूर्ण महीना माना जाता है, इसलिए इसका नाम सावन है।
त्योहार हमेशा भारतीय संस्कृति का एक बड़ा हिस्सा रहे हैं, लेकिन जब त्योहार एक पवित्र महीने के दौरान होते हैं, तो यह भक्तों और हिंदुओं के लिए उत्सव का एक और रूप लाता है। सावन का महीना अपने आप में एक संपूर्ण उत्सव है। लेकिन कई समारोह इसके भीतर आते हैं जिनकी अपनी अलग कहानी है।
श्रावण (सावन) मास 2025 का महत्व एवं शिव भक्तों के लिए एक पवित्र समय क्या है यह जानिए,
सावन का महीना धार्मिक और ज्योतिषीय दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। यह किसी भी मांगलिक या धार्मिक समारोह के लिए सबसे अच्छा समय है, क्योंकि इस महीने में लगभग सभी दिन किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत के लिए श्रेष्ठ होते हैं। इस महीने में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है।
इस महीने के प्रत्येक सोमवार को श्रावण सोमवार या सावन सोमवार के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान शिवलिंग को विशेष रूप से पवित्र जल और दूध से स्नान कराया जाता है। भक्त हर श्रावण सोमवार को भगवान शिव को बेल के पत्ते, फूल, पवित्र जल, दूध और फल चढ़ाते हैं। वे सूर्यास्त तक उपवास रखते हैं और अखंड दीया जलाए रखते हैं। आइए जानते हैं सावन माह 2025 से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को।
जानिए सावन या श्रावण महीना कब है 2025
सबसे पहले उत्तर भारतीय राज्यों के लिए श्रावण मास की तिथियां जानिए,
इस वर्ष, श्रावण 2025 का महीना शुक्रवार 11 जुलाई 2025 से शुरू होगा और उत्तर भारतीय राज्यों (उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा आदि) के लिए शुक्रवार 8 अगस्त 2025 तक चलेगा। जानकार विद्वानों का मत है कि बिहार और छत्तीसगढ़ में इस साल केवल चार सावन सोमवार होंगे।
श्रावण प्रारंभ होगा शुक्रवार 11 जुलाई 2025 को,
पहला श्रावण सोमवार व्रत: 14 जुलाई 2025,
दूसरा श्रावण सोमवार व्रत: 21 जुलाई 2025,
तीसरा श्रावण सोमवार व्रत: 28 जुलाई 2025,
चौथा श्रावण सोमवार व्रत: 4 अगस्त 2025,
श्रावण समाप्ति तिथि या पंचम श्रावण व्रत: शनिवार 9 अगस्त 2025 को रहेगा।
वहीं दक्षिण भारतीय और पश्चिमी भारतीय राज्यों के लिए श्रावण मास की तिथियां इस प्रकार रह सकती हैं,
श्रावण प्रारंभ होगा शुक्रवार 25 जुलाई 2025 से,
पहला श्रावण सोमवार व्रत: 28 जुलाई 2025,
दूसरा श्रावण सोमवार व्रत: 4 अगस्त 2025,
तीसरा श्रावण सोमवार व्रत: 11 अगस्त 2025,
चौथा श्रावण सोमवार व्रत: 18 अगस्त 2025
श्रावण समाप्ति तिथि या पंचम श्रावण व्रत रहेगा शनिवार 23 अगस्त 2025 को
पर्व, त्यौहार एवं व्रत के बारे में जानिए,
श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को पार्थिव शिव पूजन प्रारंभ होगा,
श्रावण कृष्ण पक्ष पंचमी को मौना पंचमी,
श्रावण कृष्ण पक्ष एकादशी को कामदा एकादशी व्रत,
श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को प्रदोष व्रत,
श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या को हरियाली अमावस्या एवं हरेली पर्व,
श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया को हरियाली व मधुश्रावणी तीज,
श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी नाग पंचमी,
श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी को पुत्रदा एकादशी व्रत,
श्रावण शुल्क पक्ष पूर्णिमा को रक्षाबन्धन
जानिए इस अवसर पर पूजा विधि के बारे में,
ऐसी मान्यता है भोलेनाथ की पूजा और व्रत करने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है, वहीं अविवाहित लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है द्य शिव-पार्वती प्रतिमा की फूल, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, दही, पंच रस, इत्र, गंध रोली, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, पंच फल, पंच मेवा, मंदार पुष्प, कच्चा दूध, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शुद्ध देशी घी, मौली जनेऊ, पंच मिठाई, शहद, गंगाजल, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार सामग्री से पूजन करनी चाहिए।
जानिए सावन या श्रावण मास क्या है?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, श्रावण मास को वर्ष के सबसे पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। हिंदू धर्म के चंद्र-आधारित कैलेंडर के अनुसार, साल का पांचवां महीना श्रावण मास या सावन मास के नाम से जाना जाता है और इसे वर्ष के सबसे पवित्र महीनों में से एक माना जाता है।
अब आप सोच रहे होंगे कि इस महीने को श्रावण क्यों कहा जाता है? तो इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार पूर्णिमा या पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र आकाश पर शासन करता है और इसलिए, इस महीने का नाम 28 नक्षत्रों में से एक श्रावण नक्षत्र के नाम पर पड़ा है।
सावन या श्रावण के महीने में शिव पूजा क्यों? यह जानिए,
पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसंग है। अमृत की खोज में दूधिया सागर, यानी समुद्र मंथन, श्रावण मास में ही हुआ था। मंथन के दौरान समुद्र से 14 अलग-अलग तरह के रत्न निकले। तेरह माणिक देवों और असुरों में विभाजित किए गए। लेकिन हलाहल, जो 14वां माणिक था, उसे किसी ने स्वीकार नहीं किया क्योंकि यह सबसे घातक जहर था जो पूरे ब्रम्हांड और हर जीवित प्राणी को नष्ट कर सकता था। भगवान शिव ने हलाहल पिया और विष को अपने कंठ में रख लिया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाने लगे। विष का ऐसा प्रभाव था कि भगवान शिव ने अपने सिर पर अर्धचंद्र धारण कर लिया और सभी देवों ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए गंगा की पवित्र नदी से भगवान शिव को जल अर्पित करना शुरू कर दिया। ये दोनों आयोजन श्रावण मास में हुए थे और इसलिए इस महीने में भगवान शिव को पवित्र गंगा जल अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है। श्रावण मास में रुद्राक्ष धारण करने का भी महत्व है।
भगवान शिव के भक्त सावन के महीने में रुद्राक्ष धारण करना शुभ मानते हैं। सोमवार भगवान शिव का प्रिय वार है। इस दिन का सीधा संबंध भगवान शिव की पूजा से है। भगवान शिव को उनके दिन के शासक देवता के रूप में समर्पित हैं। हालांकि, श्रावण मास में आने वाले सोमवार को श्रावण सोमवार के रूप में जाना जाता है और ये अत्यधिक शुभ होते हैं। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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