अमेरिका करे पुनर्विचार

 

 

सऊदी अरब में एक तेल रिफाइनरी पर ड्रोन या क्रूज मिसाइल के जरिए हमला क्या हुआ, पूरे वैश्विक ऊर्जा बाजार में हलचल मच गई। यह देखने वाली बात होगी कि क्या ईरान ने हमला किया है और क्या अमेरिका इसके जवाब में सैन्य कार्रवाई करेगा, लेकिन कुछ बातें स्पष्ट हैं। डोनाल्ड ट्रंप हितों की प्रतिस्पर्द्धा में उलझ गए हैं।

उन्हें अगले वर्ष चुनाव का सामना करना है, तो किसी विदेशी मोर्चे पर वह युद्ध शुरू करना कतई नहीं चाहेंगे। मध्य-पूर्व में ईरान अगर घातक शक्ति है, तो सऊदी अरब उससे कुछ ही कम है। ये देश यकीनन अमेरिकी खून और खजाने के अयोग्य हैं। रियाद से एक साल पहले ही वॉशिंगटन पोस्ट के स्तंभकार जमाल खशोगी की हत्या का निर्मम आदेश जारी हुआ था। पिछले चार वर्ष से सऊदी अरब ने यमन के विरुद्ध लूट का युद्ध छेड़ रखा है।

संयुक्त राष्ट्र की जांच के अनुसार, इन्होंने हजारों की संख्या में निर्दाेषों को मारा है, हजारों लोगों को विस्थापित व प्रताड़ित किया है। खूब बलात्कार हुए हैं और बाल-सैनिकों का इस्तेमाल हुआ है। ट्रंप अक्सर सऊदी अरब से होने वाले फायदे के हवाले से परस्पर संबंधों का बचाव करते हैं। क्या अमेरिकी सेना उच्चतम बोली लगाने वाले के लिए काम करती है? सुन्नी-शिया की दरार में अमेरिका के डूबने या पड़ने के पक्ष में यह तर्क पर्याप्त नहीं है। सऊदी अरब को अपने झगड़े खुद निपटाने देना चाहिए, वह इसके लिए सक्षम है।

सऊदी अरब दुनिया में सबसे ज्यादा सामरिक बजट वाला देश है, उसके पास अमेरिकी पेट्रियट मिसाइलों का जखीरा है। यह पूरा जखीरा और ताकत धरी रह गई, जब तेल रिफाइनरी पर हमला हुआ। बेशक, अब नए दौर के हथियारों से हमले होने लगे हैं, जिन्हें पकड़ना आसान नहीं है। वैसे, तेल का संकट अब पहले जैसा नहीं है। अमेरिका सबसे बड़ा तेल उत्पादक है और सऊदी अरब सबसे बड़ा तेल निर्यातक। अमेरिका अब तेल के मामले में सऊदी अरब पर ज्यादा निर्भर नहीं है। अमेरिका को पुनर्विचार करना चाहिए। अमेरिका अपने सहयोगियों की बात अनसुनी करके अकेले ईरान के खिलाफ गया है, तो युद्ध के समय भी सहयोगी देशों को साथ लेने में मुश्किल आएगी। (यूएसए टुडे, अमेरिका से साभार)

(साई फीचर्स)