छोटे देश की बड़ी पहल

 

 

यह दुनिया के अमीर और अधिक प्रभावशाली देशों के लिए सीखने का समय है। आज गाम्बिया एक उदाहरण है, जिसका अनुकरण दूसरे देशों को करना चाहिए। ऐसे समय में, जब दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्र म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने में असमर्थ हैं, तब गाम्बिया को कदम उठाते और सही काम करते देखना अविश्वसनीय सा लगता है। गाम्बिया अफ्रीका का एक बेहद छोटा देश है और वैश्विक स्तर पर उसका कोई दबदबा भी नहीं, बल्कि उसे ज्यादा जाना भी नहीं जाता। तब भी गाम्बिया ने म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार का आरोप लगाते हुए संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत में मुकदमा दायर किया है। यह एक अभूतपूर्व कदम है और इसकी सराहना की जानी चाहिए। यह तथ्य है कि गाम्बिया से लगभग 11,000 किलोमीटर दूर म्यांमार स्थित है।

गाम्बिया और म्यांमार के बीच किसी भी तरह के स्पष्ट भू-राजनीतिक संबंध का अभाव है और इसीलिए गाम्बिया की कोशिश का ज्यादा महत्व है। क्या दुनिया के प्रभावशाली देश स्वयं यह कदम नहीं उठा सकते थे? क्या ये देश म्यांमार में हो रही हत्याओं को रोकने के वास्ते दबाव डालने के लिए एकजुट नहीं हो सकते थे? म्यांमार सरकार को रोहिंग्या के खिलाफ किए गए उन अपराधों के लिए जवाबदेह होना चाहिए, जिसके कारण लगभग एक लाख रोहिंग्या भागकर बांग्लादेश में शरण लिए हुए हैं।

गाम्बिया के अटॉर्नी जनरल व न्याय मंत्री अबूबकर एम तांबादो की प्रशंसा की जानी चाहिए, जिन्होंने पिछले साल बांग्लादेश में एक शरणार्थी शिविर का दौरा किया था। वह रोहिंग्या की दुर्दशा और रवांडा में जातीय संहार के बीच स्पष्ट समानताएं देखकर गए थे। रवांडा में 100 दिनों के अंदर ही आठ लाख लोगों का सफाया कर दिया गया था। यह दुखद है, जब दुनिया इतिहास से सीखने में विफल रहती है, तब गाम्बिया जैसा एक देश भी है, जो अतीत के अत्याचारों को भूल जाने से इनकार कर देता है। बाकी दुनिया अगर निष्क्रिय रही, तो इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं, यह बात हमें भूलनी नहीं चाहिए। (ढाका ट्रिब्यून, बांग्लादेश से साभार)

(साई फीचर्स)