संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने फिर एक अपमान की ज्वाला छोड़ी है। उनका प्राथमिक निशाना बने हैं, ब्रिटिश राजदूत सर किम डेर्राेच। किम ने केवल अपना काम किया था। राष्ट्रपति के ऐसे कदमों से शायद ही देशहित सधेगा। किम द्वारा लिखे गए गोपनीय ज्ञापन यदि कटु श्रेणी के थे, तो इसकी वजह है, अमेरिकी प्रशासन का पूर्ण रूप से असामान्य होना। ब्रिटिश राजदूत का यह मत किसी भी पर्यवेक्षक के लिए स्वाभाविक ही है कि व्हाइट हाउस निष्क्रिय, गुटों में विभाजित और अयोग्य है।
अनेक रिपोर्टें हैं, जिनमें अनेक वरिष्ठ हस्तियों ने ट्रंप को बेवकूफ, बीमार और अव्यवस्थित तक कहा है। संयम बरतने की बजाय ट्रंप ने राजदूत और प्रधानमंत्री थेरेसा मे पर जिस तरह से हमला बोला, वह भी उत्तरोतर उनकी गलत वृत्ति का प्रमाण है। एक ओर, वह उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन और अन्य निरंकुश शासकों को गले लगाते हैं, वहीं दूसरी तरफ उदार लोकतंत्रों के नेताओं की अक्सर अवमानना कर देते हैं। किम ने यह भी आकलन किया है कि ट्रंप असुरक्षा फैलाते हैं। किसी भी नेता को आलोचना स्वीकार करनी चाहिए। विश्व की महाशक्ति के कमांडर इन चीफ को पेशेवर कूटनीतिज्ञ की टिप्पणियों से ऊपर उठना चाहिए। लेकिन यहां तो ट्रंप चाहते हैं कि किम को निकाल दिया जाए, मानो ब्रिटेन ट्रंप-संगठन का ही एक अंग हो। थेरेसा मे ने उचित ही सर किम का बचाव किया है और उनके उत्तराधिकारी को भी ऐसा ही करना चाहिए। सर किम अगले वर्ष की शुरुआत में पद से हटने वाले हैं और उससे पहले उन्हें हटाने से ट्रंप की मनमानी को बढ़ावा मिलेगा।
यह बात चौंकाती है कि जो लोग किसी भी कीमत पर यूरोपीय संघ से अलग होकर अपना नियंत्रण स्थापित करने के पक्षधर हैं, उन्हें अमेरिका की धमकियों से कोई समस्या नहीं है। इस पूरे प्रकरण में अकेली सकारात्मक बात शायद यह है कि कथित विशेष संबंधों में नीचता की कलई खुल गई है। विशेष संबंधों के तीमारदारों का दावा है कि एक शानदार अमेरिकी व्यापार पैकेज ब्रेग्जिट का इंतजार कर रहा है। ब्रिटेन के नेता और राजदूत पर हुए हमलों को चेतावनी की तरह लेना चाहिए। (द गार्जियन, ब्रिटेन से साभार)
(साई फीचर्स)

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