महिला फुटबॉल से भेदभाव

 

अट्ठाईस साल पहले चीन से शुरू हुआ महिला विश्व कप फुटबॉल काफी लंबा सफर तय कर चुका है। टिकटों की बिक्री पहले काफी कम थी, अब बढ़ गई है। वैश्विक स्तर पर टीवी दर्शक भी बढ़ गए हैं। शानदार फुटबॉल खिलाड़ी कार्ली लॉयड, एलेक्स मोर्गेन, जूली इर्ट्ज पर सबकी निगाहें टिकी हैं। फिर भी इन तमाम रोमांच के बावजूद महिला विश्व कप एक विशाल, निराशाजनक, घोर अनुचित, वेतन असमानता का हेरफेर करने वाला आयोजन है।

फुटबॉल प्रेमी जानते हैं कि अमेरिकी महिला टीम ने यूएस फुटबॉल फेडरेशन के खिलाफ लैंगिक भेदभाव करने का वाद दायर कर रखा है। यह वाद या दावा निराधार नहीं है, लेकिन इस मामले में वास्तविक दोषी अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संस्था फीफा है। महिला खिलाड़ियों की कमाई की चर्चा करें, तो इस वर्ष 300 लाख डॉलर (भारतीय मुद्रा में करीब 210 करोड़ रुपये) की राशि 23-23 खिलाड़ियों वाली 24 टीमों में बंट जाएगी। यह विगत विश्व कप 2015 में दिए गए धन से दोगुना है, लेकिन जब यह खिलाड़ियों में बंट जाएगा, तो बहुत नहीं रहेगा।

समस्या का एक पहलू यह है कि फीफा महिलाओं के इस खेल की व्यावसायिक क्षमता को देखने में नाकाम है। फ्रांस की समाचार रिपोर्टों में कहा गया है कि वहां के आयोजकों ने बेचे जा रहे टिकटों की संख्या को कम कर दिया है। प्रसारण के अधिकार भी पुरुष के विश्व कप के प्रसारक को यूं ही दे दिए गए हैं। अमेरिका में 2015 और 2019 और 2023 के विश्व कप के प्रसारण अधिकार प्राप्त करने वाली कंपनियां पैसे के पेड़ झाड़ने में जुटी हैं।

जब फीफा महिला विश्व कप के आयोजन की क्षमता को महसूस करेगा, तब उस पर निष्पक्ष होने का दबाव बढ़ेगा। पुरुषों के विश्व कप में कमाया गया ज्यादातर पैसा फीफा रख लेता है। पुरुष खिलाड़ी वर्ष भर व्यावसायिक लीग और क्लब फुटबॉल खेलकर पैसे कमाते हैं। अच्छे खिलाड़ियों की कमाई करोड़ों में होती है और स्टार खिलाड़ियों की कमाई अरबों में। महिला फुटबॉल के लीग या क्लब अभी भी जूझ रहे हैं। समय आ गया है, जब फीफा टॉप फुटबॉल खिलाड़ियों के साथ सही व्यवहार करे। (यूएसए टुडे, अमेरिका से साभार)

(साई फीचर्स)