इंडोनेशिया में चुनाव

 

 

जब देश में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं, तब लोग शायद याद रखना चाहेंगे कि किसी नेता के लिए राष्ट्रवादी होना आसान है, अंतरराष्ट्रवादी होना मुश्किल, और एक साथ दोनों होना अत्यंत चुनौतीपूर्ण। राष्ट्रपति जोको जोकोवी विडोडो एक तरह से विशेषता हासिल कर चुके हैं। उन्होंने इंडोनेशिया की आत्म-अवधारणा को बदल दिया है। जोकोवी समकालीन इंडोनेशिया के संस्थापक पूर्व राष्ट्रपति सुकार्णाे और सुहार्ताे से ही ताकत ले रहे हैं। उन्हें इंडोनेशियाई होने का गर्व है, क्योंकि संभ्रांत

वर्ग आधारित राजनीतिक तंत्र होने के बावजूद उनके जैसे सामान्य व्यक्ति को राष्ट्रपति बनने का मौका मिला। जोकोवी ने बड़े देशों के प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था की बजाय साझा नेतृत्व वाली व्यवस्था बनाने का आह्वान किया। वह जब वैश्विक मामलों पर बोलते हैं, तब वह सच्चे सुकार्णाेवादी लगते हैं। सुकार्णाे करिश्माई और बहुत अधिक पहुंच रखने वाले नेता थे। सुहार्ताे ने एक और इंडोनेशिया का उद्घाटन किया, देश को उभरती ताकत बना दिया। सुहार्ताे की लड़ाई साम्यवाद के खिलाफ थी, पश्चिम के खिलाफ नहीं। जापान और पश्चिम से देश में निवेश आया।

उन्होंने देश को सक्षम निर्यातक बना दिया। वैश्विक और क्षेत्रीय संदर्भ में भी इंडोनेशिया की भूमिका का विस्तार हुआ। अलग समय में अलग तरह से राष्ट्र का निर्माण करना पड़ता है। जोकोवी जानते हैं कि भोजन, कपड़ा, आवास के जरिए सशक्तीकरण के बिना लोकतंत्र व स्वतंत्रता जैसे शब्द मायने नहीं रखते। इस बार चुनाव में धर्म भी मुद्दा है। कुछ इंडोनेशियाई धर्म के इर्द-गिर्द पहचान की राजनीति में उलझे हैं। जोकोवी की नीतियां मुस्लिम और गैर-मुस्लिम के लिए समान रूप से बेहतर इंडोनेशिया के निर्माण की पक्षधर हैं।

उन्होंने धर्म व राजनीति को अलग-अलग रखा है, हालांकि इंडोनेशिया इससे फ्रांस जैसा सेकुलर नहीं हो सकता। दरअसल, एक देशभक्त इंडोनेशियाई मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुविधा, शांति और सहिष्णुता से ईर्ष्या नहीं रखता। उसके लिए महत्वपूर्ण है कि इस्लाम पर खतरा न हो। जोकोवी के राज में वह घिरा हुआ नहीं है, और अगर जोकोवी जीतते हैं, तो वह आगे भी घिरा हुआ नहीं रहेगा। (द जकार्ता पोस्ट, इंडोनेशिया से साभार)

(साई फीचर्स)