अमेरिका में महाभियोग

 

अपने संकीर्ण हितों को राष्ट्र से आगे रखो, कानून की धज्जियां उड़ाओ, अमेरिकियों द्वारा किए गए विश्वास को तोड़ो, पद के लिए ली गई शपथ की लापरवाही से अवहेलना करो, और ऐसा करके तुम अपनी नौकरी खोने का खतरा उठाओ।

इन शब्दों को इसी अखबार के एडिटोरियल बोर्ड ने दो दशक पहले तब लिखा था, जब तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के खिलाफ आए महाभियोग का इसने पक्ष लिया था। आज अमेरिकी व्यवस्था के सामने पहले की तुलना में बहुत गंभीर स्थिति है। निगरानी और संतुलन की व्यवस्था दांव पर लग गई है। ये पंक्तियां पहले डेमोक्रेट राष्ट्रपति पर लागू होती थीं और आज एक रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर लागू हो रही हैं। हाल तक हम यह महसूस करते थे कि महाभियोग की प्रक्रिया देश के लिए ठीक नहीं होेगी, इसलिए ट्रंप के भाग्य का फैसला अगले नवंबर में होने वाले चुनाव में मतदाताओं पर छोड़ देना चाहिए।

लेकिन अब अगर जनभावना में कोई बड़ा उलटफेर नहीं होता है, तो यह प्रक्रिया सामान्य रूप से आगे बढ़ेगी। डेमोक्रेट द्वारा नियंत्रित हाउस में महाभियोग की कार्यवाही होगी, हालांकि सीनेट में उन्हें राहत मिल जाएगी। तो चिंता क्यों की जाए? ट्रंप के अहंकार और आक्रामकता ने हाउस के लिए दूसरा रास्ता नहीं छोड़ा है। व्हाइट हाउस की एक प्रशिक्षु के साथ चले प्रसंग में झूठ बोलने की वजह से क्लिंटन के खिलाफ हाउस में महाभियोग चला था, पर सीनेट ने उन्हें नहीं हटाया। ट्रंप पर व्यक्तिगत फायदे के लिए करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल करने का आरोप है। उन्होंने पैसों के जोर पर विदेशी सरकार पर दबाव डाला कि वह अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप करे।

ट्रंप का मामला बिल क्लिंटन की बजाय रिचर्ड निक्सन के मामले से ज्यादा मिलता – जुलता है। रिचर्ड निक्सन धोखे से फिर चुनाव जीतना चाहते थे। ट्रंप के खिलाफ महाभियोग पक्षपातपूर्ण राजनीति नहीं है। अलेक्जेंडर हैमिल्टन ने एक मजबूत राष्ट्रपति पद का समर्थन किया था, पर वह भी चिंतित थे कि कोई सिद्धांतहीन व्यक्ति कहीं भाग्य के दम पर इस पद पर न पहुंच जाए। उन्होंने लिखा, जब कोई सार्वजनिक विश्वास को तोड़ देगा, तब महाभियोग ही राष्ट्र की रक्षा का तंत्र होगा। (अमेरिकी अखबार यूएसए टुडे से साभार)

(साई फीचर्स)