अमेरिका-तालिबान शांति समझौते की इन दिनों पुरजोर चर्चा है। अब तक हुई प्रगति को देखते हुए इसके साकार होने की संभावना अधिक दिख भी रही है। तालिबान की तरफ से जो एकमात्र मतभेद की बात कही जा रही है, वह तारीख को लेकर है कि किस दिन इस समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएं? संकेत यह है कि संभवतः इसी महीने के अंत तक यह करार एक हकीकत बन जाए। वाकई, यह एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है, खासकर यह देखते हुए कि कुछ मसलों पर मतभेद की वजह से एक महीने के लिए इस बातचीत को बंद कर दिया गया था। जिन मुद्दों पर मतभेद थे, उनमें अमेरिका का वह इसरार भी शामिल था कि अफगान हुकूमत को भी बातचीत में शामिल किया जाए और अशरफ गनी सरकार के साथ संघर्ष-विराम का एलान हो।
हालांकि तालिबान ने अमेरिका के साथ संघर्ष-विराम पर अपनी कथित सहमति दे दी थी, पर अफगानी फौज के मामले में हिंसा में कमी जैसे भ्रामक अल्फाज ही हमें सुनाई देते थे। इसी कारण मालूम होता है कि शांति समझौते के नए घटनाक्रमों पर अफगान सरकार को विश्वास में नहीं लिया गया है, क्योंकि गनी सरकार अब भी समझौते पर हस्ताक्षर से पहले तालिबान से स्थाई संघर्ष-विराम का वादा मांग रही है। हालांकि वाशिंगटन और तेहरान के बीच तनाव बढ़ने से अफगानिस्तान में स्थाई शांति-प्रक्रिया को चोट पहुंचने की भी आशंका है। अमेरिका के लोग अमेरिकी फौज की जल्द से जल्द वतन वापसी के लिए मजबूत अभियान चला रहे हैं, इसलिए हो सकता है कि अफगानिस्तान से बाहर निकलने की जल्दबाजी में वाशिंगटन तालिबान के साथ कोई बेमतलब समझौता कर ले।
बहरहाल, भावी समझौते के प्रावधान अब तक सामने नहीं आए हैं, इसलिए यह साफ नहीं है कि अमेरिका समझौते के बाद भी हमारा सहयोगी बना रहेगा या नहीं और अफगानिस्तान को फिर से खड़ा करने में अपनी कितनी मदद देगा? वैसे, तालिबान का समझौते के प्रावधानों पर खरा उतरना अनिवार्य है, नहीं तो अनिश्चित भविष्य अफगानिस्तान का इंतजार कर रहा है। (अफगानिस्तान टाइम्स, काबुल से साभार)
(साई फीचर्स)

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