इंटरनेट का नियमन

 

 

जिस सोच के दायरे में हम रहते हैं, उसे इंटरनेट ने नए आयाम दिए हैं, और ऑफ लाइन दुनिया की समस्याएं भी वहां आ गई हैं। पहले यह मुद्दा बहुत जरूरी नहीं लगता था, मगर विगत पांच वर्षों में यह महत्वपूर्ण हो गया है। एक तरफ अमेरिका द्वारा बढ़ाई गई अराजक संस्कृति, तो दूसरी तरफ चीन की कड़ी सेंसरशिप है, इन सबसे दूर दुनिया में लोगों के व्यवहार में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। चीन के किसी लोकप्रिय स्टार्टअप में उत्पादन प्रक्रिया में उतने ही लोग लगाए जाते हैं, जितने उस उत्पाद की बिक्री व विज्ञापन में लगाए जाते हैं। इस मुद्दे पर सरकार ने श्वेत पत्र की घोषणा की है, जो मध्यमार्ग अपनाने की कोशिश है। अब सार्वजनिक इंटरनेट का वास्तविक नियमन होगा, कड़ा जुर्माना लगेगा। जो आचार संहिता का निरंतर उल्लंघन करेंगे, वे ब्रिटिश वेब यूजर्स को नहीं दिखेंगे। सूचना या कंटेंट साझा करने वालों की भी जिम्मेदारी तय होगी और वे तटस्थ नहीं माने जाएंगे।

श्वेत पत्र में शामिल प्रस्ताव पहली नजर में समझदारी भरे लगते हैं, लेकिन कुछ मामलों में ये महत्वाकांक्षी हैं और कुछ मामलों में कमजोर। कोई संदेह नहीं, इंटरनेट पर बाल यौन शोषण या आतंकवादी प्रचार हानिकारक है, लेकिन ये तो पहले से ही अवैध हैं। यहां समस्या कानून लागू करने से जुड़ी है, जिस पर श्वेत पत्र कुछ नहीं कहता। सोशल मीडिया पर जो ज्यादातर हानिकारक सामग्री आती है, वह सुनियोजित आपराधिक तंत्र की ओर से नहीं, बल्कि संयमित समाज के आम लोगों द्वारा पोस्ट की जाती है, लेकिन इस मोर्चे पर भी श्वेत पत्र विफल है।

कोई संदेह नहीं कि गलत सूचनाएं नुकसान पहुंचाती हैं, जैसे टीकाकरण विरोधी अभियान व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से बहुत हानि पहुंचाता है। क्या सरकार इस मामले में वाकई टीकाकरण विरोधी वीडियो को प्रोत्साहित करने वाले यू-ट्यूब के अधिकारियों पर जुर्माना लगाना चाहती है? इंटरनेट का नियमन जरूरी है, लेकिन यह काम आसान या सस्ता नहीं होगा। यह श्वेत पत्र वास्तविक कठिन प्रश्नों के सस्ते और आसान समाधान तलाशने की कोशिश लगता है। (द गार्जियन, लंदन से साभार)

(साई फीचर्स)