साल 2003 में अमेरिकी फौजों द्वारा एक तानाशाह से आजाद कराए जाने के बाद इराक ने दूषित जल, ईरान के बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप, बेरोजगारी, आईएस की बर्बरता और बिजली की किल्लत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन देखे। पर 1 अक्तूबर से कई इराकी शहरों में लोग लगातार सड़कों पर उतर रहे हैं। ये विरोध-प्रदर्शन स्वतःस्फूर्त व नेताविहीन हैं। इस बार उनकी मांग है- साफ-सुथरी सरकार। लोग उस खास सियासी तबके के भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहते हैं, जो तेल संपदा का बेईमानी के साथ दोहन करता रहा है और पक्षपातपूर्ण राजनीति में लिप्त है। इराकी नौजवान भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा खतरा मानते हैं और यह लोकतांत्रिक परिपक्वता की ओर इस मुल्क के बढ़ने की निशानी है। एक अरबी हैशटैग के साथ सोशल मीडिया की मदद से ये नौजवान लाखों की तादाद में सड़कों पर उमड़ रहे हैं, जिसका मतलब है- मैं अपने हक के लिए प्रदर्शन कर रहा हूं।
लगभग 40 फीसदी इराकी साल 2003 के बाद पैदा हुए हैं। उन्होंने चार बार जम्हूरी तरीके से शांति के साथ सत्ता हस्तांतरित होते देख लिया है। अपने नेताओं से उनकी अपेक्षाएं अब कहीं अधिक हैं। इराक में बेरोजगारी लगभग 25 प्रतिशत है और इस बारे में विरोध-प्रदर्शन में शामिल एक महिला की यह अभिव्यक्ति काफी कुछ कह देती है- सियासी पार्टियों ने हमारे सारे सपनों पर डाका डाल दिया। समाधान आसान नहीं, मगर बीते 4 अक्तूबर को मुल्क के सबसे सम्मानित धर्मगुरु अयातुल्लाह अली अल-सिस्तानी ने जो सलाह दी थी, उससे फौरी समाधान निकल सकता है। उन्होंने सियासतदानों से कहा था कि भ्रष्टाचार से जंग में वे फौरन व्यावहारिक और स्पष्ट कदम उठाएं, वरना प्रदर्शनकारी और ज्यादा मजबूती के साथ सड़कों पर उतरेंगे। धर्मगुरु सिस्तानी टेक्नोक्रैट्स की एक ऐसी कमेटी चाहते हैं, जो इराकी हुकूमत को सरकारी धन के मामले में ज्यादा पारदर्शी और जवाबदेह बना सके। इराकी नौजवानों ने बुनियादी जम्हूरी हुकूक का स्वाद चख लिया है, और उनका बागी तेवर बता रहा है कि अब उन्हें ईमानदार नेताओं की जरूरत है। (द क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर, अमेरिका से साभार)
(साई फीचर्स)

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