काउंटिंग के आधे घंटे में मिलेगा पहला ट्रेंड

 

 

 

 

– 12 बजे साफ होने लगेगी नई सरकार की तस्वीर

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली (साई)। इस बार वीवीपैट पर्चियों से मिलान के चलते औपचारिक रिजल्ट में कुछ देरी हो सकती है। हालांकि ट्रेंड समय पर मिलेंगे। दोपहर 12 बजे तक तस्वीर लगभग साफ हो जाएगी कि देश में किसकी सरकार बनने जा रही है।

मतगणना सुबह 8 बजे शुरू होगी। सबसे पहले पोस्टल बैलट गिने जाएंगे। सुबह 8.30 बजे से ईवीएम में पड़े वोटों की गिनती होगी। 9 बजे से पहले राउंड का ट्रेंड मिलने लगेगा। काउंटिंग के बाद हर विधानसभा क्षेत्र में 5 ईवीएम के वोटों और वीवीपैट से निकली पर्ची का मिलान होगा। इसके बाद ही जीते हुए उम्मीदवार को प्रमाणपत्र दिया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया के कारण औपचारिक रूप से प्रमाणपत्र देने में कुछ अतिरिक्त घंटे लगेंगे। विपक्षी दलों की मांग थी कि काउंटिंग से पहले वोट और पर्ची का मिलान हो, जिसे आयोग ने खारिज कर दिया है।

इस बीच इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की विश्वसनीयता और हिफाजत पर उठ रहे सवालों को चुनाव आयोग ने गलत ठहराया। आयोग के मुताबिक, वोटिंग से लेकर मतगणना तक, ईवीएम से जुड़ी सारी प्रक्रिया इस तरह बनाई गई है, जिससे कहीं कोई गड़बड़ी न हो। सुरक्षा के साथ पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अधिकतम मौकों पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को भी लूप में रखा जाता है।

बूथ से स्ट्रॉन्ग रूम तक, इस तरह होती है ईवीएम की निगरानी : ईवीएम रखने के लिए सभी चुनाव अधिकारियों को विशेष गोदाम बनाने को कहा जाता है। इसमें और कोई सामान नहीं रखा जाता है। कमरे पर सील लगी होती है। चुनाव शुरू होने से एक घंटे पहले हर बूथ पर सभी दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ईवीएम से मॉक वोटिंग होती है। कम से कम एक हजार वोट डाले जाते हैं। इस मॉक वोटिंग की रिकॉर्डिंग होती है।

ईवीएम में किसी तरह की गड़बड़ी की शिकायत आने पर मशीन के डेटा को तब तक डिलीट नहीं किया जाता है, जब तक कि जांच पूरी न हो जाए। चुनाव के बाद भी कम से कम 6 महीने तक ईवीएम उसी निर्वाचन अधिकारी की देखरेख में रहती है, जहां उसका उपयोग चुनाव के दौरान हुआ था। अगर इस दौरान कोई शिकायत नहीं मिली तो फिर उसका इस्तेमाल दूसरी जगह किया जाता है।

सभी ईवीएम में इंडियन स्टैंडर्ड टाइम का ही उपयोग होता है। हालांकि, आयोग ने माना है कि टाइम देने में लापरवाही हुई है, जिससे कभी-कभी उलझन पैदा हुई। मशीन की बैटरी का इस्तेमाल सिर्फ एक बार ही होता है। ऐसी शिकायतें मिलीं कि कई बार ईवीएम की बैटरी चुनाव के दौरान ही डिस्चार्ज हो जा रही थीं।

चुनाव अधिकारी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि के अलावा वोटरों को भी चुनाव से पहले ईवीएम के बारे में व्यावहारिक ज्ञान देते हैं, ताकि वोटिंग के वक्त उन्हें कोई असुविधा न हो। सभी सील ईवीएम पर एक पिंक स्लिप होती है, जिस पर एक नंबर दर्ज किया जाता है। इस स्लिप की एक कॉपी सभी राजनीतिक दलों को भेजी जाती है। सील खोलते समय वे इसका मिलान कर सकते हैं।

स्ट्रॉन्ग रूम से बूथ तक ईवीएम ले जाने की प्रक्रिया की सूचना राजनीतिक दलों को दी जाती है। वोटों की गिनती की तमाम प्रक्रिया की विडियो रिकॉर्डिंग होती है। चुनाव के दौरान जितने वोटे पड़े, गिनती के दौरान उतने ही सामने आने चाहिए। एक भी वोट की गड़बड़ी मिलने पर तुरंत शिकायत दर्ज कराई जाती है। किसी भी दशा में चुनाव अधिकारी खुद अपने स्तर पर मशीन को ठीक करने की कोशिश नहीं करते हैं।

2010 में भी हुआ था बड़ा विवाद : कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है। इसके बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में एनडीए के सहयोगियों ने इस मुद्दे को संसद में उठाया था। तब भी टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू इस मामले में सबसे आगे थे।

इसके बाद 2014 के आम चुनाव से पहले तब विवाद हुआ, जब असम में ऐसा मामला सामने आया, जहां सारे वोट बीजेपी को मिल रहे थे। अधिकारियों ने सफाई दी कि मशीन में तकनीकी खराबी थी। बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी भी ईवीएम पर सवाल उठा चुके हैं।

पहले करना पड़ता था लंबा इंतजार : ईवीएम से पहले मत पत्र से वोटिंग होती थी। तब मतगणना में दो से तीन दिन लग जाते थे। वह प्रक्रिया काफी पेचीदा हुआ करती थी। उसमें पहले सभी बूथ से आए बैलट पेपर को मिक्स किया जाता था। फिर उसका बंडल बनाकर अलग-अलग टेबल पर दिया जाता था। इसके बाद काउंटिंग शुरू होती थी। चुनाव में बैलट पेपर को लूटने और उस पर स्याही फेंकने की घटनाएं भी होती थीं। ईवीएम से इन पर काबू पाया जा सका।

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