(सादिक खान)
मुस्लिम धर्मावलंबियों का त्यौहार ईद, मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्यौहार है। इस त्यौहार को सभी धर्म, संप्रदाय के लोग आपस में हिल मिलकर मनाते हैं। इसके साथ ही ईश्वर, खुदा से सुख शांति एवं बरकत के लिये दुआएं माँगी जाती हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षाेल्लास के साथ मनायी जाती है।
इस त्यौहार को पवित्र पावस मुकद्दस रमज़ान माह के चाँद डूबने के बाद ईद का चाँद नजर आने के अगले दिन मनाया जाता है। इस्लामिक साल में दो ईद मनायी जाती हैं। पहली ईद को ईद-उल-फितर कहा जाता है जिसे पैगम्बर मोहम्मद ने 624 ईस्वी में जंग ए बदर के बाद मनाया था, तो वहीं दूसरी को ईद-उल-अज़हा (बकरीद) कहा जाता है।
बकरीद पर मुस्लिम समुदाय के लोग जानवर की कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी का गोश्त बाँटा जाता है। ईद-उल-फितर के दिन गरीबों को दान दिया जाता है, जिसे ज़कात फितरा कहा जाता है। ज़कात फितरा लोगों की आय के मुताबिक होती है। ईद के अलावा रमज़ान के पूरे महीने में भी गरीबों को दान दिया जाता है। इस महीने में जितना दान दिया जाये, उतना ही सबाब मिलता है।
गर्मी के मौसम में मुस्लिम भाईयों के द्वारा सूर्याेदय के पहले से सूर्यास्त के बाद तक रोज़़े रखे जाते हैं। रोज़़े के दौरान कुछ भी खाना पीना वर्जित माना गया है। मुकद्दस रमज़ान माह में रोज़़ेदारों के द्वारा सेवाभाव के साथ अपने दिल में नेक नीयत रखी जाती है। माना जाता है कि ऐसा करने से बरकत और सबाब मिलता है।
कहा जाता है कि रमज़ान के महीने में कोई भी अच्छा काम करने पर 70 गुना सबाब मिलता है। इसलिये इस महीने में लोगों को बुरे कामों से दूर रहने के लिये कहा जाता है। ईद के दिन लोग गिले-शिकवे भूलकर एक दूसरे के गले मिलते हैं। इसे भाईचारे का त्यौहार भी कहा जाता है।
ईद के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि 624 ईस्वी में पहली ईद-उल-फितर या मीठी ईद मनायी गयी थी। ईद पैगम्बर हज़रत मुहम्मद के युद्ध में विजय प्राप्त करने की खुशी में मनायी गयी थी, तभी से ईद मनाने की परंपरा चली आ रही है।
गर्मियों के मौसम में आने वाले रमज़ान माह में रोज़़े रखना इसलिये भी कठिन माना जाता है क्योंकि हिन्दुस्तान में यह तीव्र गर्मी का समय होता है। तपती धूप या हल्की-फुल्की बारिश के बीच उमस भरे माहौल में रोज़़े रखकर इबादत में लीन खुदा के बंदों पर मौसम की इस तरह की दुश्वारियां भी कोई असर नहीं डाल पाती हैं।
रोज़़ों की समाप्ति की खुशी के अलावा ईद में मुस्लिम समुदाय के द्वारा अल्लाह का शुक्रिया इसलिये भी अदा किया जाता है क्योंकि अल्लाह ने उन्हें महीने भर रोज़़े रखने की शक्ति प्रदान की है। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अलावा नये कपड़े भी पहने जाते हैं।
सिवनी जिले में सभी धर्म, संप्रदाय के लोग आपसी भाईचारे के साथ रहा करते हैं। गंगा-जमुनी तहज़ीब का नायाब उदाहरण सिवनी में देखने को मिलता है। एक दूसरे के सुख-दुःख में आपस में लोग कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं। ईद के अवसर पर आपसी भाईचारे, अमन, समृद्धि, सुख, शांति बरकत और देश-विदेश के साथ ही सिवनी के विकास की दुआ माँगी जाये।
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