स्थान-स्थान पर मजदूरी कर रहे छोटे-छोटे बच्चे
(संजीव प्रताप सिंह)
सिवनी (साई)। जिले में वर्षों से बचपन को संवारने के लिये जमीनी स्तर पर एक भी योजना धरातल पर ही नहीं उतर पायी है। अभी भी स्थान – स्थान पर बच्चे कड़े श्रम से लेकर छोटे – छोटे कार्य भी कर रहे हैं। चाय की गुमटी से लेकर गली में फेरी लगाने तक के सभी कार्यों में छः से 14 साल तक के बच्चे लगे हुए हैं।
भूख की आग में इन बच्चों को कचरों की ढेर में कुछ तलाशते देखा जा सकता है। शहर में किराना दुकानें, मिठाई दुकानें, ढाबे, छोटी छोटी फैक्ट्रियों, चाय के ठेलों, ऑटो गैरेज, पंचर की दुकानों पर भी काम करते हुए बचपन को देखा जा सकता है।
बालश्रम के लिये कानून बने तो वर्षों हो गये परंतु इनका पालन कभी कभार ही होता है। इसका कारण यह है कि जिम्मेदार, आँखें मूंदे बैठे हैं। वहीं बच्चों को खेलने और पढ़ने की उम्र में बाल कामगारों को चंद रुपये थमाये जा रहे हैं। श्रम विभाग फाईलें तैयार करने के चक्कर में केवल कागज़ों पर लक्ष्य पूरे कर रहा है। अधिकारियों की लापरवाही का नतीज़ा ही है कि बाल श्रमिकों के लिये बनायी गयी योजना का लाभ उन तक नहीं पहुँच पा रहा है।
हाल ही में एक उदाहरण को यदि छोड़ दिया जाये तो जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा जारी सरकारी आधिकारिक विज्ञप्तियों में भी लंबे समय से इस बात का उल्लेख करते हुए समाचार जारी नहीं किये गये हैं जिनमें बाल श्रमिकों को काम करवाने पर दुकान या प्रतिष्ठान संचालकों पर कोई प्रकरण कायम किया गया है। मजे की बात तो यह है कि पेट की आग बुझाने के लिये दुकानों पर काम करने वाले बच्चों को स्कूल जाने के लिये भी प्रेरित नहीं किया जाता है।
यक्ष प्रश्न यही खड़ा हो रहा है कि क्या जिम्मेदार अधिकारियों – कर्मचारियों की नज़र में एक भी बाल श्रमिक नहीं आया? श्रम विभाग के कार्यालय के कुछ ही कदमों पर स्थित बस स्टैण्ड के पास ही सड़क के किनारे लगे कई हॉटलों व ठेलों में कप प्लेट धोते दर्ज़नों बाल श्रमिक सहज ही दिख जायेंगे।
एक हॉटल में काम करने वाले श्यामू (बदला हुआ नाम) ने मासूमियत से कहा कि मन तो स्कूल जाने का करता है। पापा अकेले परिवार का बोझ कैसे उठायेंगे? बालश्रम परियोजना के तहत नौ से 14 साल तक के बच्चों का सर्वे कर उन्हें विशेष बाल श्रमिक विद्यालय में भर्त्ती कराने का प्रावधान है, जहाँ सारा खर्च सरकार वहन करती है पर सरकारी नियम कायदों की परवाह किसी को नहीं दिख रही है!

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