जहर उगलते नल!

(शरद खरे)
यह वाकई दुःखद ही माना जायेगा कि करोड़ों रुपये फूंकने के बाद भी सिवनी शहर के निवासियों के कण्ठ प्यासे ही रह जाते रहे हैं। सिवनी में पहले नहरों के माध्यम से पानी की सप्लाई होती रही, फिर डॉ.विजय कुमार सरीन के दादा लाला हरगोविंद राय सरीन के द्वारा सिवनी में भूमिगत पाईप लाईन डालकर शहर की प्यास बुझाने का प्रयास किया गया था।
एक समय था जब इकलौती पानी की टंकी के जरिये सिवनी शहर में पानी की आपूर्ति होती थी। कालांतर में सिवनी में छिंदवाड़ा नाका, बरघाट नाका एवं सर्किट हाऊस के पास पानी की टंकी बनायी गयी। नब्बे के दशक में एक नल-जल योजना का आगाज किया गया था।
इस योजना को वर्ष 2024 तक की आबादी की गणना का अनुमान लगाकर बनाया गया था। विडंबना ही कही जायेगी कि यह योजना भी अदूरदर्शी ही साबित हुई। इस योजना से पर्याप्त पानी न मिल पाने के चलते अब नयी जलावर्धन योजना को तैयार कर दिया गया है। मूलतः 45 करोड़ की इस योजना को 62 करोड़ 55 लाख रुपये की बना दिया गया।
इस योजना का कार्यादेश जारी हुए चार साल का समय बीत चुका है। इस लिहाज से अब पुरानी योजना का संधारण ठेकेदार को ही करना है पर पुरानी जलावर्धन योजना का संधारण नगर पालिका परिषद के द्वारा ही किया जा रहा है। विडंबना ही कही जायेगी कि आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबी नगर पालिका परिषद में किसी भी चुने हुए प्रतिनिधि के द्वारा इस ओर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा गया है। इसका परिणाम सिवनी की जनता भोगने पर मजबूर है।
सिवनी शहर के नल दुर्गन्ध युक्त गंदा पानी उगल रहे हैं। कहा जाता है कि पानी ही नब्बे प्रतिशत बीमारियों का कारक होता है। इस लिहाज से सिवनी शहर में नगर पालिका पानी के माध्यम से बीमारियां परोस रही है, कहा जाये तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगा।
शहर में कितने सार्वजनिक नल हैं यह बात भी पालिका के द्वारा उजागर करने में मानो दिक्कत महसूस की जा रही है। सार्वजनिक नल का मतलब जनता के लिये लगे नल से है। रसूखदारों के द्वारा जनता नल को घरों के अंदर कर लिया गया है। पालिका के चुने हुए पार्षद भी इस मामले में मौन साधे ही बैठे हैं।
हालात देखकर लग रहा है कि पालिका में अराजकता पूरी तरह हावी हो चुकी है। इस योजना की दो बार जाँच करायी जा चुकी है। एक जाँच में ठेकेदार को दोषी करार दिया जाकर उस पर एक करोड़ रूपये से ज्यादा का जुर्माना ठोका गया तो दूसरी बार हुई जाँच में ठेकेदार को क्लीन चिट दे दी गयी। मजे की बात तो यह है कि दोनों बार की जाँच समान बिंदुओं और समान समयावधि के लिये की गयी थी।
विधायक दिनेश राय के द्वारा निर्धारित की गयी समय सीमा से एक साल से ज्यादा और जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह के द्वारा निर्धारित समय सीमा से 20 दिन ज्यादा होने के बाद भी लोगों के घरों में इस योजना का पानी नहीं आ सका है। हालात देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले समय में नवीन जलावर्धन योजना भी उसी तरह ठण्डे बस्ते के हवाले कर दी जायेगी जिस तरह आधी अधूरी मॉडल रोड है। इसके साथ ही साथ कबीर वार्ड की जलापूर्ति के लिये बनी पानी की टंकी भी सालों से शोभा की सुपारी ही बनी हुई है। पता नहीं क्यों इस मामले में सांसद विधायकों के साथ ही साथ काँग्रेस भाजपा ने भी मौन ही साधा हुआ है।