(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। आधुनिक भारत के शीर्षस्थ साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की रचना दृष्टि साहित्य के विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुई है। उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उन्होंने साहित्य सृजन किया। उक्त उदगार मिशन बालक हायर सेकेण्डरी शाला सिवनी में आयोजित कथा सम्राट प्रेमचंद जयंति के अवसर पर व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि अपने जीवन काल में ही उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि मिल गयी थी किन्तु पाठकों के बीच आज भी उनका कहानीकार का रूप स्वीकारा, सराहा जाता है।
इस अवसर पर हिन्दी की शिक्षक किरण जेम्स ने कहा कि उनका जीवन जितनी गहनता लिये हुए है, साहित्य के फलक पर उतना ही व्यापक भी है। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, 03 नाटक, 10 अनुवाद, 07 बाल पुस्तकें तथा हजारों की संख्या में लेख आदि की रचना की।
छात्रा अंकिता यादव ने कहा कि प्रेमचंद अपनी हर कृति को इतने समर्पित भाव से रचते कि पात्र जीवंत होकर पाठक के ह्रदय में धड़कने लगते थे। यहाँ तक कि पात्र यदि व्यथित हैं तो पाठक की पलक की कोर भी नम हो उठती। पात्र यदि किसी समस्या का शिकार है तब उसकी मनो वैज्ञानिक प्रस्तुति इतनी प्रभावी होती है कि पाठक भी समाधान मिलने तक बेताबी का अनुभव करता है।
छात्र प्रज्ज्वल गौर ने कहा कि वे स्वयं आजीवन जमीन से जुड़े रहे और अपने पात्रों का चयन भी हमेशा परिवेश के अनुसार ही किया। उनके द्वारा रचित पात्र होरी किसानों का प्रतिनिधि चरित्र बन गया।
शाला के छात्र सौरभ चौरसिया ने कहा कि प्रेमचंद एक सच्चे भारतीय थे। एक सामान्य भारतीय की तरह उनकी आवश्यकताएं भी सीमित थीं। उनके कथाकार पुत्र अमृतराय ने एक जगह लिखा है कि क्या तो उनका हुलिया था, घुटनों से जरा नीचे तक पहुँचने वाली मिल की धोती, उसके ऊपर कुर्त्ता और पैरों में बन्ददार जूते। आप शायद उन्हें प्रेमचंद मानने से इंकार कर दें लेकिन तब भी वही प्रेमचंद था क्योंकि वही हिन्दुस्तान हैं।
कार्यक्रम का संचालन कर रहीं अनीता तिवारी ने कहा कि प्रेमचंद हिन्दी के पहले साहित्यकार थे जिन्होंने पश्चिमी पूंजीवादी एवं औद्योगिक सभ्यता के संकट को पहचाना और देश की मूल कृषि संस्कृति तथा भारतीय जीवन दृष्टि की रक्षा की।
इस अवसर पर मीडिया कर्मी संजय जैन ने कहा कि खरी पत्रकारिता करना हथेली पर सरसों जमाना जैसा है, या यूँ कह सकते हैं कि आग का दरिया है और डूबकर जाना है। मुंशी प्रेमचंद ने खरी पत्रकारिता को चरितार्थ कर दिया। खुन्नस की खंदक खोजने की बजाय पत्रकारिता में प्रेम का परचम लहराया। प्रेमचंद जितने सशक्त उपन्यासकार थे उतने ही संदेश वाहक कहानीकार थे और उतने ही दमदार पत्रकार थे, उनमें दुराग्रह का दम नहीं था बल्कि राष्ट्र प्रेम था।

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