भरपूर बारिश से राहत

 

 

(शरद खरे)

इस साल सावन के महीने में कम बारिश होने से सभी परेशान नज़र आ रहे थे। इसका कारण यह था कि अगर बारिश में बांध, जलाशय आदि नहीं भरते तो आने वाले समय में गर्मियों के दिनों में पेयजल और फसलों के लिये पानी नहीं मिल पाता। सिवनी में वैसे भी बांध और जलाशयों का रखरखाव उचित तरीके से नहीं किये जाने से इनमें जल संग्रहण क्षमता दिनों दिन कम ही हो रही है।

इस साल 05 सितंबर तक जिले में 924.7 मिली मीटर बारिश दर्ज की गयी है। जिले के आठों विकास खण्डों में अच्छी बारिश होने की खबरें हैं। इस साल 05 सितंबर तक जिले भर में कुल 7397.9 मिली मीटर बारिश दर्ज की जा चुकी है। पिछले साल इसी अवधि में कुल 6295.5 मिली मीटर बारिश दर्ज की गयी थी। इस तरह पिछले साल की तुलना में इस साल 1102.4 मिली मीटर अधिक बारिश दर्ज की जा चुकी है।

देखा जाये तो सर्दियों के बाद जब गर्मी का मौसम आरंभ होता है उसी समय जिले के जलाशयों और बांध के रखरखाव की योजना तैयार कर लेना चाहिये। योजना बनाने में एक माह का समय लगेगा और उसके बाद जरूरी अनुमतियों और फंडिंग के लिये भी एक माह से अधिक की अवधि लग सकती है।

इस तरह गर्मी के दो से ढाई महीने में यह योजना पूरी तरह अमली जामा पहनने के लिये तैयार मानी जा सकती है। बारिश आने के एक पखवाड़े से एक माह तक की समयावधि में जलाशयों और बांधों में जल भराव काफी हद तक कम हो जाता है। इन परिस्थितियों में उन स्थानों पर जहाँ पानी नहीं है, से सिल्ट निकालने के काम को अंजाम दिया जा सकता है।

बांध अथवा जलाशयों से निकलने वाली गाद या सिल्ट किसानों के लिये उपयोगी होती है। किसानों के द्वारा इस मिट्टी को खुशी-खुशी ले जाकर अपने खेतों में डलवाया जा सकता है, जिससे उनकी पैदावार भी बढ़ सकती है पर इसके लिये ठोस कार्ययोजना की आवश्यकता है।

इसके लिये बांध या जलाशय में मशीनों से इसे निकाला जाकर डंपर्स के जरिये खेतों में यह गाद डलवायी जा सकती है। इसके लिये नो प्रॉफिट नो लॉस की तर्ज पर बकायदा प्रति किलो मीटर के हिसाब से दरें भी निर्धारित की जा सकती हैं। अगर यह किया जाता है तो इससे किसानों को फायदा भी मिलेगा और जलाशयों और बांधों से सिल्ट निकल जायेगी जिससे जलाशयों और बांधों की जल संग्रहण क्षमता में बढ़ौत्तरी हो सकती है।

इसके अलावा बारिश के पहले ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग को भी अनिवार्य किया जा सकता है। इसके लिये सबसे पहले सरकारी भवनों, शालाओं आदि में इसे लागू कर नज़ीर पेश की जा सकती है। इसके बाद निजि आवासों आदि में इसे लगाने के लिये लोगों को प्रेरित किया जा सकता है। यह सब कुछ निर्भर करता है प्रशासन पर, अगर प्रशासन चाहे तो वह इस तरह की कार्ययोजना को अंजाम दे सकता है . . .!

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