किसी भी इंसान कि मौत के बाद उसके शव को केमिकल्स से संरक्षित करके ममी बनाई जाती है, यह विधि प्राचीन मिस्र सभ्यता में बड़े पैमाने पर अपनाई जाती थी। मिस्र के अलावा दूसरे देशो में भी शवो कि ममी बनाई गयी है जैसे कि इटली का कापूचिन कैटाकॉम्ब जहा पर सदियो पुराने 8000 शवो को ममी बनाकर रखा गया है।
लेकिन विशव में अनेक जगह प्राकर्तिक ममी भी पायी गयी है यानि कि बिना किसी केमिकल के संरक्षित किये सदियो पुराने ऐसे शव जो आज भी सामान्य अवस्था में है। ऐसी ही कुछ नेचुरल ममी हमारे भारत में भी है जिसमे से एक गोवा के बोम जीसस चर्च में रखी संत फ्रांसिस जेवियर कि ममी के बारे में हमन आपको बताया था।
आज हम आपको एक और ऐसी ममी के बारे में बतायेंगे जो कि हिमाचल में लाहुल स्पिती के गीयू गांव में है। यह ममी लगभग 550 साल पुरानी है। इस ममी के बाल और नाखून आज भी बढ़ रहे है। एक खास बात और भी है कि ये ममी बैठी हुई अवस्था में है जबकि दुनिया में पायी गयी बाकी ममीज लेटी हुई अवस्था में मिली हैं। गीयू गांव साल में 6 से 8 महीने बर्फ की वजह से बाकी दुनिया से कटा रहता है। क्योकि यह गाँव काफी ऊँचाई पर स्तिथ है तथा ये तिब्बत से मात्र 2 किलोमीटर दूर है।
गांव वालो के अनुसार ये ममी पहले गांव में ही रखी हुई थी और एक स्तूप में स्थापित थी पर 1974 में भूकम्प आया तो ये कहीं पर दब गयी। उसके बाद सन 1995 में आई टी बी पी के जवानो को सडक बनाते समय ये ममी मिली। कहा जाता है कि उस समय कुदाल सिर में लगी इस ममी के और कुदाल लगने के बाद ममी के सिर से खून भी निकला जिसका निशान आज भी मौजूद है।
इसके बाद सन 2009 तक ये ममी आई टी बी पी के कैम्पस में ही रखी रही। बाद में गांव वालो ने इस ममी को गांव में लाकर स्थापित कर दिया। ममी को रखने के लिए शीशे का एक कैबिन बनाया गया जिसमें इसे रखा गया।इस ममी की देखभाल गांव में रहने वाले परिवार बारी-बारी से करते हैं। यहां आने वाले पर्यटकों को वे ममी के बारे में जाकारी देते है। सालाना यहां पर देश विदेश के हजारों पर्यटक इस मृत देह को देखने आते हैं।
इस ममी के बाल भी हैं। ममी निकलने के बाद इसकी जांच की गयी थी जिसमें वैज्ञानिको ने बताया था कि ये 545 वर्ष पुरानी है। पर इतने साल तक बिना किसी लेप के और जमीन में दबी रहने के बावजूद ये ममी कैसे इस अवस्था में है ये आश्चर्य का विषय है।
ममी से जुडी किवदंती
जैसा कि अधिकतर होता है कि हर प्राचीन चीज से कोई किवदंती जुड़ जाती है। इस ममी के साथ भी ऐसी ही एक किवदंती जुडी है। ऐसी मान्यता है कि करीब 550 वर्ष पूर्व गीयू गांव में एक संत थे। गीयू गांव में इस दौरान बिछुओं का बहुत प्रकोप हो गया। इस प्रकोप से गांव को बचाने के लिए इस संत ने ध्यान लगाने के लिए लोगों से उसे जमीन में दफन करने के लिए कहा। जब इस संत को जमीन में दफन किया गया तो इसके प्राण निकलते ही गांव में इंद्रधनुष निकला और गांव बिछुओं से मुक्त हो गया। जबकि कुछ लोगो का कहना है कि ये ममी बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग की है जो तिब्बत से भारत आये और यहां पर जो एक बार मेडिटेशन में बैठे तो फिर उठे ही नही।
मिश्र में ममी को कोफिन में से निकाल कर उनकी सफाई की जाती है ताकि वे आने वाले सालों में सुरक्षित रहें लेकिन यहां ऐसा नहीं किया जाता। इस मृत देह की देख-भाल मिश्र में रखी गई ममीज की तर्ज पर होनी चाहिए यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में इस पर्यटन स्थल का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। अभी तक यही माना जाता था कि ममी के बाल और नाखुन निरंतर बढ़ते हैं लेकिन गीयू गांव के लोगों के मुताबिक अब ममी के बाल और नाखुन बढे कम हो गए हैं। बाल कम होने के कारण ममी का सिर गंजा होने लगा है।
(साई फीचर्स)
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