क्षमावाणी पर निकली पालकी यात्रा

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। व्यवहारिक जीवन में हम क्षमा का पालन कैसे कर सकते है इसके लिये क्रोध को समझना आवश्यक है। जिस प्रकार पित्त भड़क जाये तो सुधार हो जाता है लेकिन चित्त भड़क जाये तो कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।

उक्त उदगार दिगम्बर जैन तरण तारण जैन समाज के अध्यक्ष सुजीत जैन ने पर्युषण पर्व के समापन एवं ब्रह्मचारी प्रज्ञानंद महाराज के वर्षावास समापन समारोह के अवसर पर निकाली गयी पालकी यात्रा के अवसर पर आयोजित क्षमावाणी पर्व के अवसर पर व्यक्त किये।

उन्होंने कहा कि क्रोध उत्पन्न होने की कुछ परिस्थितियां हैं उनमें सबसे पहले तो यह कि इच्छापूर्ति न होना। व्यक्ति के मन में जो इच्छा है वह पूरी न हो तो अनायास क्रोध आता है। मानसिक अस्त व्यस्त स्थिति में क्रोध उत्पन्न होता है। यदि व्यक्ति अस्वस्थ्य हो तो चिड़चिड़ापन आता है जो क्रोध का ही रूप है। ऐसी स्थिति में हमंे समय को टालना चाहिये यदि ऐसा नहीं कर पाये तो कलह, विवाद, झगड़े आदि दुष्परिणाम सामने आते हैं।

इसी तारतम्य में ब्रह्मचारी प्रज्ञानंद महाराज ने बताया कि वर्षावास के दौरान 49 दिवसीय ग्रन्थ वाचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें समाज के सदस्यों ने लाभ लिया। समापन अवसर पर ग्रन्थ को पालकी में रखकर भव्य शोभायात्रा निकाली गयी, जिसको नगर के विभिन्न मार्गाें का भ्रमण करवाया गया।

महिला एवं पुरूषों ने ड्रेस कोड में गरबा नृत्य करते हुए जिनवाणी का सम्मान किया। इस यात्रा को सफल बनाने में समाज के अध्यक्ष सुजीत जैन, उपाध्यक्ष प्रशांत जैन, सचिव संतोष जैन, कोषाध्यक्ष सुनील जैन, सह सचिव आनंद जैन, पूर्व अध्यक्ष सुभाष चन्द्र जैन, गोंविद जैन, उमेश जैन, संजय जैन, ऋषभ जैन, प्रसन्न जैन, नीलेश जैन, रोहित जैन, राजेश जैन, दिलीप जैन, धन्य कुमार जैन, सुरेश जैन सहित महिला, बालिका एवं नवयुवक मण्डल का सहयोग सराहनीय रहा।