बढ़ती जनसंख्या भारत देश के लिए अत्यधिक घातक

(विश्व जनसंख्या दिवस – 11 जुलाई 2021)

आज हमारा देश विश्व में सबसे ज्यादा युवाओं वाला देश है लेकिन उन्हें गुणवत्तापुर्ण शिक्षा, उचित स्वास्थ्य सुविधाएं, रोजगार, विकास के सुअवसर, कौशल्य को निखारने के लिए योजनाएं, मौके व योग्य वातावरण का निर्माण कर देंगे तभी यह युवा शक्ति सही दिशा में अग्रसर होंगी और देश का विकास होगा, अन्यथा यह शक्ति देश के लिए परेशानियों का सबब बनकर रह जायेगी। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि भारत में निम्न जीवन स्तर के लिए जिम्मेदार है। यहां तक कि जीवन की आवश्यक वस्तुएं व सुविधाएं भी पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं। देश में हर साल जनसंख्या में लगभग 1.60 करोड़ की वृद्धि होती है, जिसके लिए लाखो टन खाद्यान्न, 1.9 लाख मीटर कपड़ा और 2.6 लाख घरों और 52 लाख अतिरिक्त नौकरियों की आवश्यकता होती है, साथ ही नैसर्गीक व मानव निर्मीत संसाधनो पर आवश्यकता पुर्ती हेतु भारी दबाव पडता हैं। जिस देश की बडी आबादी 2 डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन यापन करती हैं, वहां बढ़ती जनसंख्या, खाद्य सुरक्षा की स्थिति को अधिक खराब ही करेगी। कुपोषण के अंतर्निहित कारणों में से एक गरीबी है और देश में गरीबी उन्मूलन कोसों दूर है। इस वर्ष के “विश्व जनसंख्या दिवस” की थीम है अधिकार और विकल्प उत्तर हैं : चाहे बेबी बूम हो या बस्ट, प्रजनन दर में बदलाव का समाधान सभी लोगों के प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को प्राथमिकता देना है।

भारत देश की वर्तमान स्थिति :- संयुक्त राष्ट्र, आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग, जनसंख्या प्रभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 1 जुलाई, 2021 तक भारत की वर्तमान जनसंख्या 1,393,494,216 है, जो संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के वर्ल्डोमीटर विस्तार पर आधारित है। भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या के 17.7 प्रतिशत है, लेकिन विश्व के मीठे पानी के संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत है। जनसंख्या के आधार पर विश्व में भारत दूसरे नंबर पर है लेकिन जल्द पहले नंबर पर होगा। कुल भूमि क्षेत्र 2,973,190 वर्ग किमी. है, अर्थात भारत विश्व के कुल क्षेत्रफल के 2.4 प्रतिशत भाग हमारे हिस्से है। भारत में जनसंख्या घनत्व 464 प्रति वर्ग किमी (1,202 व्यक्ति प्रति वर्ग मील) है। 35 फीसदी आबादी (2020 में 483,098,640 लोग) शहरी है, भारत में मध्यम आयु 28.4 वर्ष है। शहरी भारत में पानी की लगभग 40 प्रतिशत मांग भूजल से पूरी होती है। परिणामस्वरूप अधिकांश शहरों में भूजल स्तर प्रति वर्ष 2-3 मीटर की खतरनाक दर से गिर रहा है। देश की 20 में से 14 प्रमुख नदियां जल स्तर बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं, नदी अब नालों का स्वरूप ले रही हैं अर्थात प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण खराब स्थिति से गुजर रही है। यह तब है जब हमारे सतही जल का 70 प्रतिशत प्रदूषित है और 60 प्रतिशत भूजल संसाधन गंभीर अवस्था में हैं।

कुपोषण या अल्पपोषण की गंभीर समस्या :- भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की स्थिति सबसे खराब (54 फीसदी) है, जो या तो अविकसित, कमजोर या अधिक वजन वाले हैं। देश में, खराब आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रथाओं ने उतनी ही बर्बादी की है जितनी यूनाइटेड किंगडम खपत कर लेता है। भारत में पांच साल से कम उम्र के 69 फीसदी बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती हैं। भारत में पांच साल से कम उम्र के 20 फीसदी से ज्यादा बच्चे ‘कुपोषण’ (ऊंचाई के मुकाबले कम वजन) से ग्रसित हैं। वर्तमान में भारत की 49 प्रतिशत भूमि सूखे की चपेट में है। सूखे के दौरान, लाखों लोग अधिक गरीबी और खाद्य असुरक्षा में पड़ने का जोखिम उठाते हैं। भारत भले ही आर्थिक रूप से संपन्न होने के मार्ग पर अग्रसर हो, लेकिन यह अभी भी बडी मात्रा में गरीबी और भूख से ग्रस्त है।

देश में खाद्य सुरक्षा व खाद्य बर्बादी की स्थिति :- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 के अनुसार, विश्व स्तर पर, औसत वार्षिक खाद्य अपव्यय 121 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है। इसमें से घरों में बर्बाद होने वाले भोजन का हिस्सा 74 किलोग्राम है। रिपोर्ट ऐसे समय में जारी की गई है, जब कोविड-19 के कारण सरकार अपनी तमाम खाद्य योजनाओं के बावजूद बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए संघर्ष कर रही है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के मुताबिक 2017 से 2020 के बीच सरकारी गोदामों में रखा 11,520 टन अनाज सड़ गया। भारत, जहां लगभग 14 प्रतिशत आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 16.94 करोड लोग) कुपोषित हैं, वहा भी सालाना 50 किलोग्राम पका हुआ भोजन बर्बाद कर रहे है। दिसंबर 2020 में हंगर वॉच के सर्वेक्षण में कहा गया है कि 27 प्रतिशत भारतीय अक्सर कोविड -19 लॉकडाउन के दौरान भूखे सो जाते थे। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 में भारत 107 देशों में से 94वें स्थान पर है जो 27.2 के स्कोर के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर दर्शाता है और उन पड़ोसी देशों से पीछे है जिन्हें अपेक्षाकृत कमजोर माना जाता है – पाकिस्तान (88), नेपाल (73), बांग्लादेश (45) और इंडोनेशिया (70)। विश्व बैंक के आंकड़ों का उपयोग करते हुए प्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया है कि भारत में गरीबों की संख्या (प्रतिदिन 2 डॉलर की आय या कम) महामारी के कारण केवल एक वर्ष में 6 करोड से दोगुनी से अधिक 13.4 करोड हो गई है, इसका मतलब है कि भारत 45 साल बाद “सामूहिक गरीबों का देश“ कहलाने की स्थिति में वापस आ गया है। देश में पिछले दो दशकों में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या लगातार बढी है। 1991 और 2011 के बीच, 1.4 करोड से अधिक आर्थिक रूप से तनावग्रस्त किसानों ने खेती करना छोड़ दिया हैं।

गरीबी की स्थिति :- भारत ने ‘वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ 2020 में 62 रैंक के साथ 0.123 स्कोर किया। ग्लोबल एमपीआई 2020 में भारत का अनुपात 27.91 प्रतिशत था। प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, 107 विकासशील देशों में, 1.3 अरब लोग बहुआयामी गरीबी से प्रभावित हैं। वर्ष 2016 तक, भारत में 21.2 प्रतिशत लोग पोषण से वंचित थे। 26.2 प्रतिशत लोगों के पास भोजन पकाने के ईंधन का अभाव रहा। 24.6 प्रतिशत लोग स्वच्छता और 6.2 प्रतिशत लोग पेयजल से वंचित रहे। 8.6 प्रतिशत लोग बिजली के अभाव में एवं 23.6 प्रतिशत लोग आवास के अभाव में रहे हैं । ग्लोबल एमपीआई 2020 में भारत के पड़ोसी देशों के रैंक : श्रीलंका – 25, नेपाल – 65, बांग्लादेश – 58, चीन – 30, म्यांमार – 69, पाकिस्तान – 73 हैं।

स्वास्थ्य चिकित्सको की स्थिति :- आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 ने देश में डॉक्टरों की कमी को दर्शाने वाले चिकित्सा बुनियादी ढांचे के बारे में जानकारी है कि भारत में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:1456 है, जबकि डब्ल्यूएचओ की 1:1000 की सिफारिश है। एमसीआई अनुसार, 2017 में एट्रिशन पर विचार करने के बाद, यह 1.33 अरब के जनसंख्या अनुपात अनुसार एक डॉक्टर और जनसंख्या अनुपात 0.77:1,000 देता है।

बेरोजगारी की दर चिंताजनक :- सीएमआईई के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर मई 2021 में बढ़कर 11.90 प्रतिशत हो गई जो 2021 के अप्रैल में 8 प्रतिशत थी। राज्यस्तर पर हरियाणा 27.9, पुडुचेरी 47.1, राजस्थान 26.2, पश्चिम बंगाल 22.1, बिहार 10.5, गोवा 17.7, हिमाचल प्रदेश 16.3, केरल 15.8 प्रतिशत संख्या दर्शाती है जबकी कुछ अन्य रिसर्च की जानकारी अलग है बेरोजगारी की मार इससे कई गुणा अत्याधिक है जैसे दिल्ली में 45.6, तमिलनाडू 29.1, राजस्थान 27.6 प्रतिशत है, अर्थात हर दूसरे-तीसरे घर में बेरोजगार लोग है या बहुत बड़ी आबादी को योग्यता अनुसार काम नहीं मिलता है और कई उच्च शिक्षितों को तो दिहाड़ी मजदूर से भी कम वेतन पर काम करना पड़ता है। देश में बेरोजगारी ने आत्महत्या और अपराध में तेजी से वृद्धि की है जिससे नशाखोरी, मिलावटखोरी, सिफारिश, भ्रष्टाचार, मानसिक तनाव और घरेलू कलह जैसी समस्या अत्याधिक बढ रही है।

झुग्गी झोपड़ी और मलिन बस्तियों की आबादी व समस्याएं :- संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक शहरीकरण संभावनाओं अनुसार, देश में मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या 10.40 करोड़ या भारत की कुल जनसंख्या का 9 प्रतिशत होने का अनुमान है। भारत में मलिन बस्तियों वाले 2,613 शहर हैं। इनमें से 57 फीसदी आबादी तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में हैं। झुग्गी-झोपड़ियों की आबादी में आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है, इसकी 36.1 प्रतिशत शहरी आबादी मलिन बस्तियों में रहती है, साथ ही अन्य राज्य हैं – छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, और हरियाणा हैं। 35 प्रतिशत झुग्गी-झोपड़ी घरों में उपचारित नल के पानी तक पहुंच नहीं है। डीटीई द्वारा प्रकाशित, स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट इन फिगर्स 2019 के अनुसार, ओडिशा में झुग्गी बस्तियों के एक बड़े हिस्से (64.9 प्रतिशत) के पास उपचारित नल का पानी नहीं है और वे या तो जल निकासी कनेक्शन के बिना हैं या खुले नाले से जुड़े हैं। 12 लाख (90.6 प्रतिशत) स्लम परिवार अनुपचारित नल का पानी पीते हैं। झुग्गी-झोपड़ी के प्रत्येक 10 में से छह घरों में जल निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है। भारत में 63 प्रतिशत झुग्गी-झोपड़ी घर या तो बिना जल निकासी कनेक्शन के हैं या खुले नालों से जुड़े हैं। महाराष्ट्र और चार अन्य राज्यों में 61 फीसदी झुग्गी-झोपड़ी वाले घर बिना जल निकासी कनेक्शन के हैं।

लगातार संघर्षमय जीवन चक्र मे बढ़ोतरी :- आज देश में कोरोना को नियंत्रित करने में भी यह भयंकर जनसंख्या रुकावट बन रही है। प्रदूषण, खाद्य मिश्रण, ग्लोबल वार्मिंग, खतरनाक ई-कचरा, प्रदूषित वायु-जल, उपजाऊ खेत की कमी, प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, वनों की कटाई, जंगलों का विनाश, वन्य जीवों और मनुष्यों के बीच बढ़ते टकराव, ईंधन की बढ़ती खपत, कभी अकाल, कभी बाढ़, शुद्ध हवा और पानी की कमी, पर्यावरण का क्षरण, बढ़ते कंक्रीट के जंगल, बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई, जिंदगी के लिए संघर्ष और बढ़ती गंभीर बीमारियाँ इन सभी समस्याओं का एकमात्र कारण बढ़ती जनसंख्या है, ज्यादा जनसंख्या अर्थात ज्यादा आवश्यकताये। आज भी हमारे समाज के कई असहाय लोग, भिखारी, बीमार, विक्षिप्त लोग, असहाय बच्चे सड़कों पर कूड़े में, खराब भोजन के ढेर में खाना चुनते नजर आते है, यह हमारे लिए बड़ी शर्म की बात है। जनसंख्या वृद्धि के कारण मलिन बस्तियों, गंदा वातावरण, अशिक्षा, गरीबी, अपर्याप्त पोषण, उचित परवरिश की कमी, आर्थिक असमानता जैसी गंभीर समस्याएं हैं, ऐसी खराब परिस्थितियों में बच्चों के जीवन का संघर्ष बचपन से ही शुरू हो जाता है।

बढ़ती जनसंख्या एक ऐसी समस्या है जो सैकड़ों अन्य समस्याओं की जड़ है। भोजन, अनाज, स्वच्छ जल, स्वच्छ वायु की कमी के कारण भविष्य में पृथ्वी पर मानव जीवन अत्यंत कठिन और कष्टदायक होगा। प्राकृतिक संसाधन खत्म होने पर मनुष्य जीवित नहीं रह पाएगा। इस गंभीर समस्या के प्रति प्रत्येक नागरिक ने जागरूक होना अति आवश्यक है, जनसंख्या नियंत्रण के लिए कड़े फैसले लेना और कड़े कानून बनाना जरूरी हो गया है, जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

मो. न. 082374 17041