उच्च न्यायालय ने दी व्यवस्था
(ब्यूरो कार्यालय)
जबलपुर (साई)। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक केस में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि गुजारा भत्ता की राशि स्थायी रूप से विलासितापूर्ण जीवन जीने का साधन नहीं है। गुजारा भत्ता महिला को उसकी आधारभूत जरूरतों की पूर्ति के लिए दी जाने वाली आर्थिक सहायता है।
जस्टिस विष्णु प्रताप सिंह चौहान की एकलपीठ ने कहा कि अगर पति का वेतन अच्छा है तो भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत यह जरूरी नहीं कि पत्नी को आधा वेतन दे दिया जाए और खासतौर पर तब जबकि पत्नी अपनी मर्जी से मायके में रह रही हो। इस मत के साथ हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता की राशि बढ़ाए जाने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी।
भोपाल में रहने वाली डॉ. ममता की शादी 2014 में टीकमगढ़ में रहने वाले रमेश (दोनों बदले हुए नाम) से हुई थी। शादी के कुछ दिन बाद ही आवेदिका ने पति और सास-ससुर पर दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया। इसके बाद वह माता-पिता के साथ रहने लगी और फैमिली कोर्ट में गुजारा भत्ता के लिए आवेदन पेश किया। कोर्ट ने 26 अक्टूबर 2018 को 10 हजार रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने के आदेश दिए। आवेदिका ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर कहा कि उसका पति सरकारी कर्मचारी है, जिसका वेतन 70 हजार रुपए है। भोपाल कोर्ट द्वारा तय गुजारा भत्ता बहुत कम है, इसलिए उसे बढ़ाकर 30 हजार रुपए कर दिया जाए। वहीं, पति की ओर से बताया गया कि आवेदिका डॉक्टर है और प्राइवेट प्रैक्टिस करती है। पहले भी वे मेडिकल कॉलेज में पढ़ाती थीं।
दोनों पक्षों को सुनने और दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद कोर्ट ने पाया कि आवेदिका पेशे से डॉक्टर है। उसके बैंक खाते में ढाई लाख रुपए हैं। हाल ही में उन्होंने मंहगे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स खरीदे हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि आवेदिका एक हठी महिला है, जो कि मर्जी से मायके में रह रही है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में फैमिली कोर्ट ने जो 10 हजार का गुजारा भत्ता तय किया है, वो आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।
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