प्रदूषण को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है लेकिन मुंबई शहर में पक्षियों की एक प्रजाति ऐसी भी है जिसके लिए प्रदूषण सबसे मुफीद बन गया है। मुंबई में फ्लेमिंगों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इनकी तादाद पिछले कुछ वर्षों की तुलना में तीन गुना अधिक हो गई है। खास बात ये है कि इनकी संख्या के बढऩे का कारण सीवेज से जमने वाली काई है जिसमें पैदा होने वाले कीड़े फ्लेमिंगो खाते हैं।
मुंबई घूमने जा रहे हैं तो थाणे के समुद्री छोर पर फ्लेमिंगों के झुंड और उनकी चहचहाहट आपकी यात्रा को हमेशा के लिए यादगार बना सकता है। यहां आने वाले पर्यटक इन फ्लेमिंगों की तस्वीर कैमरे में कैद करने को उतावले होते हैं क्योंकि एक साथ इतनी बड़ी तादाद कहीं और दिखना मुश्किल होता है। बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के असिस्टेंट डायरेक्टर राहुल खोट बताते हैं कि 1980 और 90 के दशक में फ्लेमिंगो ने मुंबई में आना शुरू किया था। इस साल जनवरी में इनकी गणना हुई थी तो पता चला था कि इनकी संख्या करीब एक लाख 20 हजार के पास पहुंच चुकी है जो पिछले चार दशक में सबसे अधिक है। जानकारों का मानना है कि फ्लेमिंगो मुंबई के उत्तर पश्चिम क्षेत्रों के साथ गुजरात के कच्छ, राजस्थान के सांबर लेक से तो कुछ पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इरान और इजराइल तो कुछ फ्रांस से आते हैं।
थाणे क्षेत्र कचरा, सीवेज और फैक्ट्रियों से निकलने वाली गंदगी का डंपिंग यार्ड बन गया है। इसी का कारण है कि फ्लेमिंगों को खाने के लिए कीड़े-मकोड़े पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं जिससे इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ क्षेत्रों में सूखा जैसी स्थिति होने की वजह से भी थाणे में फ्लेमिंगो की संख्या बढ़ रही है।
(साई फीचर्स)