इन कथाओं को सुने बिना पितृ पक्ष का पुण्य शायद ही मिलता है!

जानिए श्राद्ध पर्व की पौराणिक कथाओं के बारे में . . .
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पितरों के प्रति कृतघ्नता, आदर, प्रेम, स्नेह आदि का पर्व माना जाता है पितृ पक्ष को। पितृ पक्ष में पुण्यों का स्मरण बहुत जरूरी होता है। इसके अलावा उन्हें जल देने का विधान भी है। कहा जाता है कि पितृ पक्ष में पितृ पक्ष की कथा सुने बिना पुण्य शायद नहीं मिलता है। आईए जानते हैं पितृ पक्ष से जुड़ी कुछ कथाओं के बारे में . . .
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
जानकार विद्वानों के अनुसार पितृ पक्ष की एक कथा के अनुसार, महाभारत के दौरान, कर्ण जब ब्रम्हलीन हुए तब उनकी मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार तलाश रहे थे।
उन्होंने देवता इंद्र से पूछा कि उन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें।
इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। तर्पण किया, इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया। अतः इस कथा को पढ़ने अथवा सुनने का बहुत महत्व है।
जानकार विद्वानों के अनुसार इसी तरह की एक अन्य कथा भी प्रचलित है। पितृ पक्ष की इस पौराणिक कथा के अनुसार जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।
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कथा के अनुसार पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।
अतः वह जोगे से बोली कि आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी। फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया।
दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध तर्पण करना था।
इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई। पितर भूमि पर उतरे। जोगे भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन पर जुटे हुए हैं। निराश होकर वे भोगे के यहां गए। वहां क्या था? मात्र पितरों के नाम पर अगियारी अर्थात अग्नि में धूप, गुड़ आदि सुगंधित सामग्री डाली गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे।
थोड़ी देर में सारे पितर एकत्र हो गए और अपने अपने यहां के श्राद्धों की प्रशंसा करने लगे। जोगे भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वे नाच नाचकर गाने लगे कि भोगे के घर धन हो जाए। भोगे के घर धन हो जाए।
सांझ होने को हुई। भोगे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था। उन्होंने मां से कहा भूख लगी है। तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है, उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले, बांटकर खा लेना।
बच्चे वहां पहुंचे, तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं। आंगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई।
इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया, मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ। दूसरे साल का पितृ पक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की स्त्री ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाएं। ब्राम्हणों को बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया, दक्षिणा दी। जेठ जेठानी को सोने चांदी के बर्तनों में भोजन कराया। इससे पितर बड़े प्रसन्न तथा तृप्त हुए। इस तरह की और भी कथाएं पितृ पक्ष को लेकर प्रचलित हैं।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
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