आषाढ़ माह का महत्व, इस महीने की विभिन्न कथाओं को जानिए विस्तार से . . .
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आषाढ़ माह में गणेश जी की कथा जानिए,
पुराने समय की बात है काफी समय पहले महिष्मती नाम की एक सुंदर नगरी थी। उस नगरी का राजा धार्मिक प्रवृत्ति का था। राजा का नाम महाजित था। महाजित हर तरह से संपन्न था लेकिन उसका कोई पुत्र नहीं था जिससे वह सदा उदास रहता था। पुत्र प्राप्ति के कई धार्मिक उपाय वह कर चुका था लेकिन यह सब करते उसकी उम्र निकल गई और अब वह बूढा हो चला था लेकिन उसके घर में पुत्र का जन्म नहीं हुआ।
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अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
एक दिन अपने मन का दुख उसने लोमेश ऋषि के सामने कहा। राजा को दुखी देख ऋषि ने कहा – राजन! यदि आप अपनी पत्नी के साथ गणेश चतुर्थी का व्रत करें तो निश्चित रुप से पुत्र प्राप्ति की आपकी कामना पूरी होगी। राजा ने यह बात अपनी पत्नी को बताई और दोनो ने मिलकर गणेश चेथ का व्रत किया। गणेश जी की कृपा से राजा की पत्नी गर्भवती हो गई और दसवें महीने उसके गर्भ से एक सुंदर पुत्र ने जन्म लिया। गणेश जी की कृपा से उनकी अभिलाषा पूरी हुई।
आषाढ़ माह में योगिनी एकादशी कब मनाई जाती है यह जानिए,
योगिनी एकादशी का व्रत आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस व्रत को रखकर भगवान नारायण की मूर्त्ति को स्नान कराकर भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती करनी चाहिये। इस एकादशी को करने से पीपल के वृक्ष को काटने से उत्पन्न हुए पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में मनुष्य स्वर्गलोक को पाता है।
योगिनी एकादशी व्रत कथा जानिए,
एक समय की बात है जब अल्कापुरी में कुबेर के यहाँ हेम नाम का माली रहता था। वह भगवान शंकर की पूजा के लिए रोज मानसरोवर से फूल लाया करता था। एक दिन की बात है कि वह कामोन्मत्त होकर पत्नी के साथ स्वच्छंद विहार करने के कारण फूल लाने में देरी कर बैठा और कुबेर के यहां देरी से पहुंचा। कुबेर ने क्रोधित होकर उसे कोढ़ी बन जाने का श्राप दे दिया।
कोढ़ी के रुप में जब वह मार्कण्डेय ऋषि के पास पहुंचा तब उन्होणे योगिनी एकादशी का व्रत रखने का नियम बताया। व्रत के प्रभाव से उसका कोढ़ समाप्त हो गया और दिव्य शरीर प्राप्त कर के अंत में स्वर्गलोक गया।
भगवान जगन्नाथ रथोत्सव के बारे में जानिए,
श्री जगदीश यात्रा जगन्नाथ पुरी में आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को निकलती है। इस रथ यात्रा में जगन्नाथ जी का रथ, बलभद्र जी का रथ और सुभद्रा जी का रथ शामिल होता है। जगन्नाथ जी का रथ 45 फीट ऊँचा, 35 फीट लंबा और 35 फीट चेड़ा होता है। बलभद्र जी का रथ 44 फीट ऊँचा तो सुभद्रा जी का 43 फीट ऊँचा होता है। जगन्नाथ जी के रथ में 16 पहिए और बलभद्र तथा सुभद्रा जी के रथ में 12-12 पहिये होते हैं। प्रतिवर्ष ये रथ नए बनाए जाते हैं। इन रथों को मनुष्य द्वारा खींचा जाता है। मंदिर के सिंहद्वार पर बैठकर भगवान जनकपुरी की ओर रथ यात्रा करते हैं। जनकपुरी पहुंचकर तीन दिन बाद भगवान दुबारा जगन्नाथपुरी लौट आते हैं। रथ यात्रा के लिए इस मंदिर की मूर्त्तियों को साल में एक बार बाहर निकाला जाता है।
जानिए क्या है देवशयनी या हरिशयनी एकादशी
आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव सो जाते हैं इसलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी को देव सोने के बाद विवाह भी नहीं होते हैं। इसके बाद जब कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को देव उठते हैं तब विवाह भी आरंभ हो जाते हैं और उस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। आषाढ़ की इस एकादशी को व्रत करके भगवान का नया बिछौना बिछा कर भगवान को सजाना चाहिए और रात भर जागरण कर पूजा करनी चाहिए।
देवशयनी (हरिशयनी) एकादशी की व्रत कथा जानिए,
सूर्यवंश में मान्धाता नाम का प्रसिद्ध सत्यवादी राजा अयोध्यापुरी में राज्य करता था। एक बार उसके राज्य में अकाल पड़ गया। प्रजा भूखों मरने लगी। हवनादि शुभ कर्म बंद हो गए।राजा को बहुत कष्ट हुआ और वह वन की ओर चल दिया। चलते हुए वह अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंच गया और ऋषि से बोला – हे सप्तऋषियों में श्रेष्ठ अंगिराजी ! मैं आपकी शरण में आया हूँ। मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है, प्रजा कहती है कि राजा के पापों से प्रजा को दुख मिलता है। मैने अपने जीवन में किसी प्रकार कोई पाप नहीं किया। आप दिव्य दृष्टि से देखकर बताएं कि अकाल पड़ने का कारण क्या है?
अंगिरा ऋषि बोले – सतयुग में ब्राम्हणों का वेद पढ़ना और तपस्या करना धर्म है परन्तु आपके राज्य में आजकल एक शूद्र तपस्या कर रहा है। शूद्र को मारने से दोष दूर हो जाएगा, प्रजा सुख पाएगी। मान्धातार बोले – मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को नहीं मारुंगा। आप इस कष्ट से छूटने का कोई और सरल उपाय बताइए। ऋषि बोले – सरल उपाय बताता हूँ, भोग तथा मोक्ष देने वाली देवशयनी एकादशी है। इसका विधिपूर्वक व्रत करो। उसके प्रभाव से चातुर्मास तक वर्षा होती रहेगी। इस एकादशी का व्रत सिद्धियों को देने वाला तथा उपद्रवों को शांत करने वाला है।
मुनि की शिक्षा से मान्धाता ने प्रजा सहित देवशयनी एकादशी का व्रत किया और कष्टों से छूट गए। इस एकादशी का माहात्म्य पढ़ने या सुनने वालों को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। इस एकादशी के दिन तुलसी का बीज धरती या गमले में बोया जाए तो महापुण्य मिलता है। तुलसी के प्रताप से यमदूत भी भय खाते हैं। जिनका कण्ठ तुलसी की माला से सुशोभित हो उनका जीवन धन्य होता है।
गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा किसे कहते हैं यह जानिए,
व्यास पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा कहते हैं। यह पूर्णिमा आषाढ़ माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। आदिकाल में विद्यार्थी गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करते थे। छात्र इस दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन कर के अपनी शक्ति अनुसार दक्षिणा देकर उन्हें प्रसन्न करते थे। इस दिन पूजा से निवृत्त होकर अपने गुरु के पास जाकर वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर के उन्हें प्रसन्न करना चाहिए।
गुरु का आशीर्वाद कल्याणकारी और ज्ञानवर्धक होता है। चारों वेदों के व्याख्याता व्यास ऋषि थे। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं। इसलिए वे हमारे आदि गुरु हुए। उनकी स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने गुरुओं को व्यास जी का ही अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए।
कोकिला व्रत के बारे में जानिए
कोकिला व्रत आषाढ़ माह की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है। इस व्रत को दक्षिण भारत में अधिक मनाया जाता है। इस व्रत को करने वाली स्त्रियाँ सूर्याेदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद सुगंधित इत्र का प्रयोग करती हैं। यह नियम से आठ दिन तक चलता है। प्रातःकाल भगवान भास्कर की पूजा करने का विधान है।
कोकिला व्रत की कथा जानिए,
प्रजापति दक्ष ने एक बार बहुत बड़ा यज्ञ किया। इस यज्ञ में सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया लेकिन अपने दामाद भगवान शंकर को उन्होंने आमंत्रित नहीं किया। इस बात का पता जब सती को लगा तब उन्होंने अपने पति भगवान शंकर से मायके जाने की इच्छा जताई लेकिन शंकर जी ने बिना निमंत्रण के मायके जाने से मना कर दिया। इस पर जिद कर के सती अकेले ही मायके चली गई। मायके आकर सती का घोर अनादर व अपमान हुआ। इस कारण सती प्रजापति के हवन कुण्ड में कूदकर भस्म हो गई। यह समाचार मिलने पर भगवान शंकर क्रोध में आ जाते हैं। वह वीरभद्र को प्रजापति दक्ष के यज्ञ को खंडित करने का काम सौंपते हैं। इस बात को शांत करने के लिए विष्णु भगवान शंकर जी के पास जाकर उन्हें शांत करने का प्रयास करते हैं। भगवान शंकर का क्रोध तो शांत हुआ लेकिन आज्ञा का उल्लंघन करने वाली अपनी पत्नी सती को श्राप दिया कि जाओ! दस हजार वर्ष तक कोकिला पक्षी बनकर घूमो।
सती दस हजार वर्ष तक कोकिला पक्षी के रुप में नन्दनवन में रहती है। इसके बाद पार्वती का जन्म पाकर, आषाढ़ माह में एक महीने तक नियमित रुप से यह व्रत करती हैं। जिसके परिणाम से भगवान शिव उन्हें दुबारा पति रुप में प्राप्त हुए। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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हर्ष वर्धन वर्मा का नाम टीकमगढ़ जिले में जाना पहचाना है. पत्रकारिता के क्षेत्र में लंबे समय तक सक्रिय रहने के बाद एक बार फिर पत्रकारिता में सक्रियता बना रहे हैं हर्ष वर्धन वर्मा . . .
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