इस तरह ब्रम्हाण्ड का चक्कर लगाकर भगवान शंकर का दिल भी जीत लिया था गणपति भगवान ने
आपने भगवान कृष्ण अर्थात किशन कन्हैया या कान्हा जी की बाल लीलाएं सुनी होंगी पर क्या आपको पता है कि गणेश जी भी बाल लीलाओं में कान्हा जी से कम नहीं थे। गणेश जी ने अपनी बाल लीलाओं में हमेशा बाल सुलभ नटखट और समझदारी की बातें की हैं। आज हम आपको गणेश जी की समझदारी की कहानी सुनाते हैं जो आप अपने बच्चे को इस कहानी को सुनाएंगे तो आपके बच्चे आपके लिए आज्ञाकारी बन जाएंगे।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश लिखना न भूलिए।
भगवान गणेश को गणपति इसलिए कहते हैं क्योंकि वे गणों को प्रमुख हैं। उन्हें गणेश इसलिए कहते हैं क्योंकि वे गणों के ईश अर्थात ईश्वर हैं। उन्हें गजानन इसलिए कहते हैं कि उनका मुख गज अर्थात हाथी के समान है। उन्हें एकदंत इसलिए कहते हैं क्योंकि उनका एक ही दांत है। इसी तरह उनके कई नाम है परंतु ये सभी नाम तो उनकी उपाधि है फिर उनका असली नाम क्या है? आईए जनश्रुतियों, पौराणिक कथाओं के अनुसार उनका नाम क्या है!
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कहते हैं कि भगवान गणेशजी का मस्तक या सिर कटने के पूर्व उनका नाम विनायक था। परंतु जब उनका मस्तक काटा गया और फिर उसे पर हाथी का मस्तक लगाया गया तो सभी उन्हें गजानन कहने लगे। फिर जब उन्हें गणों का प्रमुख बनाया गया तो उन्हें गणपति और गणेश कहने लगे।
लोक कथाओं के अनुसार कहते हैं कि जब माता पार्वती ने उनकी उत्पत्ति की थी तब उनका नाम विनायक रखा था। विनायक अर्थात नायकों का नायक, विशेष नायक।
एक कथा के अनुसार भगवान शनिदेव की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जलकर भस्म हो गया था। इस पर दुखी माता पार्वती से ब्रम्हा जी ने कहा- जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो। पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला। इस प्रकार गणेश गजानन बन गए।
एक अन्य कथा के अनुसार गणेशजी को द्वार पर बिठाकर पार्वतीजी स्नान करने लगीं। इतने में शिव आए और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे। गणेशजी ने जब उन्हें रोका तो क्रुद्ध शिव ने उनका सिर काट दिया। इन गणेशजी की उत्पत्ति पार्वतीजी ने चंदन के मिश्रण से की थी। जब पार्वतीजी ने देखा कि उनके बेटे का सिर काट दिया गया तो वे क्रोधित हो उठीं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेशजी के सिर पर लगा दिया और वह जी उठा।
आईए जानते हैं क्या है विनायक जी की कहानी
एक समय की बात है, एक ब्राम्हाण और उनकी पत्नी थीं। उनके पास एक पुत्र था जिनका नाम था। वह छोटा सा बच्चा गणेश जी का बड़ा भक्त था। वह दिन-रात गणेश जी की सेवा में लगा रहता था, और घर के कामों में कभी भी ध्यान नहीं देता था। इससे उनकी पत्नी बहुत चिंतित हो जाती थी। वह अकेले ही घर का सारा काम करती थी और यह बात उसे बहुत दुखी करती थी।
ब्राम्हाणी बहुत दिनों तक अपने पति को समझाने की कोशिश करती रही, परंतु उसके पति का मन बदलने का नाम नहीं लेता था। घर में रोज़ झगड़ा होता था, और उनका बेटा उनकी बातों का कभी ध्यान नहीं देता था।
एक दिन, बेटा बहुत दुखी हो गया और उसने तय किया कि वह गणेश जी से मिलकर ही वापस आएगा। उसने मन में ठान ली कि आज वह गणेश जी के पास जाकर ही घर लौटेगा। वह जोर-जोर से जय गणेश जय गणेश बोलते बोलते बहुत दूर एक घने जंगल में चला गया।
लड़के को डर भी लगने लगा, लेकिन वह निरंतर जय गणेश जय गणेश बोलता रहा। तभी गणेश जी का सिंहासन झूलने लगा और रिद्धि-सिद्धि बोली, महाराज, तुम्हारे प्रेम भक्त ने तुम्हारी पुकार सुन ली है। अब तुम्हें उसकी रक्षा करनी चाहिए।
गणेश जी ने फिर अपने सामान्य रूप में आकर ब्राम्हाण के पास आए और बोले, वत्स, तुम क्यों रो रहे हो?
लड़का ने बताया, मुझे गणेश जी से मिलने का बहुत मन था, लेकिन मैं डर गया हूँ।
गणेश जी ने हंसते हुए कहा, तुम्हारा डर कैसे दूर हो सकता है? मैं यहां हूँ।
युवक ने फिर डर के साथ जय गणेशजी बोलना शुरू किया। तब गणेश जी का सिंहासन हिलने लगा और रिद्धि-सिद्धि बोली, महाराज, यह बच्चा सच्चा भक्त है, आपको उसकी रक्षा करनी चाहिए।
फिर गणेश जी ब्राम्हाण वेश में लड़के के पास आए और बोले, वत्स, घर चला जा।
वह युवक बहुत खुश हो गया और घर लौट आया। जब उसने घर की ओर देखा, तो उसे चौंकने की बजाय एक दरबार दिखाई दिया। बाहर घोड़ा खड़ा था, और अंदर दुल्हन बैठी थी।
युवक की मां बोली, तेरे भगवान गणेशजी ने हमारे प्रति बहुत कृपा की है। आज से हम सब गणेश जी की पूजा करेंगे।
सब बहुत खुश हुए और ब्राम्हाण का बेटा भगवान गणेश की पूजा करने लगा। गणेश जी को खुश देखकर उन्होंने कहा, तुम मुझसे कुछ भी मांगो, मैं तुम्हें सब कुछ दूंगा।
युवक ने सोचा और फिर बोला, मुझे तुम्हारा आशीर्वाद और भक्ति चाहिए, कुछ नहीं अधिक।
गणेश जी बहुत प्रसन्न हुए और उसका आशीर्वाद दिया। इसके बाद, उनका घर में सुख-शांति बरसने लगी और उनके बेटे को सब धन-धान्य से लाभ हुआ।
वहीं एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन की बात है जब शिव जी के बड़े पुत्र कार्तिकेय जी ने शिव जी से कहा कि मैं सबसे ज्यादा ज्ञानी हूं पर इतने में ही अचानक गणेश जी चले आते हैं जिन्हें देख शिव जी मुस्कुराने लगते हैं और कहते हैं कि कार्तिकेय और गणेश को एक परीक्षा देनी होगी। कार्तिकेय जी और गणेश जी हैरान हो जाते हैं कि परीक्षा. . .। हां पिता जी जैसा आप कहें. . .।
शिव जी फिर से मुस्कुराने लगते हैं और कहते हैं कि तुम दोनों में सबसे ज्यादा ज्ञानी कौन है यही पता लगाने के लिए यह परीक्षा ली जा रही है। शिव जी कार्तिकेय जी और गणेश जी से कहते हैं कि तुम दोनों में से जो भी पूरे ब्रम्हांड के सात चक्कर लगाकर आएगा और वो भी सबसे कम समय में वो सबसे ज्यादा ज्ञानी माना जाएगा।
फिर क्या था कार्तिकेय जी जल्दी से बिना सोच-विचार किए पूरे ब्रम्हांड के सात चक्कर लगाने के लिए निकल पड़ते हैं पर गणेश जी पहले शिव जी की तरफ देखते हैं और फिर माता पार्वती जी की तरफ देखते हैं। फिर गणेश जी शिव जी और माता पार्वती को प्रणाम कर दोनों के साथ चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं।
शिव जी ने देखा और वे गणेश जी से बोले कि गणेश यह तुमने क्या किया है हमने तुम्हें ब्रम्हांड के सात चक्कर लगाने के लिए कहा था और तुम हमारे ही सात चक्कर लगा रहे हो। गणेश जी कहते हैं कि मेरे लिए मेरा पूरा ब्रम्हांड आप दोनों ही हैं फिर आप ही तो कहते हैं पिता जी कि माता-पिता के चरणों में पूरा ब्रम्हांड होता है।
देखा आपने गणेश जी बचपन से ही कितने समझदार थे। इसीलिए तो शिव जी ने गणेश जी को वरदान दिया था कि संसार में कहीं भी कोई भी शुभ कार्य होगा तो सबसे पहले गणेश जी की आरती की जाएगी।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)