लंबोदर महाराज श्री गणेश की उत्पत्ति को लेकर अनेक पौराणिक कथाएं हैं प्रचलित
भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य माना गया है। लंबोदर, गजानन, बुद्धि विनायक न जाने कितने नामों से भगवान श्री गणेश को पुकारा जाता है। भगवान श्री गणेश की उत्पत्ति को लेकर अनेक कथाएं पुराणों में मिलती हैं, वहीं अनेक जनश्रुतियां, किंवदंतियां भी हैं। आईए जानते हैं उनमें से कुछ कथाओं को विस्तार से . . .
भगवान गणेश की उत्पत्ति को लेकर पुराणों में कई प्रकार की कथाएं बताई गई हैं। कहीं बताया गया है कि माता पार्वती के उबटन से गणेशजी बने तो कहीं कहा गया है कि भगवान शिव ने उन्हें गज रूप दिया है। आइए जानते हैं कि कैसे हुआ बालक गणेश का जन्म . . .
एक बार शिवजी के गण नंदी द्वारा आज्ञा का पालन नहीं करने पर माता पार्वती नाराज हो गईं। तब उन्होंने प्रण कर लिया कि वे ऐसा पुत्र प्राप्त करेंगी जो उनकी आज्ञा का पालन करेगा, और उनकी रक्षा करेगा। उन्होंने अपने शरीर के मैल और उबटन से अपने पुत्र का निर्माण किया। एक बार वह स्नान करने गईं और बाहर अपने इस पुत्र को खड़ा कर गईं। उन्होंने बालक को समझाया कि कोई भी अंदर न आने पाए। कुछ देर बात वहां भगवान शिव आए और माता पार्वती के पास जाने लगे तो माता पार्वती के उबटन से उत्पन्न बालक ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। यह देखकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया और उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे उसका सिर धड़ से अलग कर दिया और अंदर चले गए।
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माता पार्वती ने दो थालियों में भोजन परोसकर भगवान शिव को आमंत्रित किया। तब दूसरी थाली देख शिव ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि यह किसके लिए है। पार्वती बोलीं, यह मेरे पुत्र गणेश के लिए है जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। क्या आपने आते वक्त उसे नहीं देखा?
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यह बात सुनकर शिव बहुत हैरान हुए और पार्वती को सारा वृत्तांत कह सुनाया। यह सुन देवी पार्वती क्रोधित हो विलाप करने लगीं। उनकी क्रोधाग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने मिलकर उनकी स्तुति की और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। तब शिवजी ने गरूड़ को उत्तर दिशा में जाने का आदेश दिया और कहा कि जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आना। तब गरूड़ शिशु हाथी का सिर ले आए। भगवान शिवजी ने वह बालक के शरीर से जोड़ दिया। उसमें प्राण डाल दिए। इस तरह गणेश को हाथी का सिर मिला।
वहीं, पुराणों के अनुसार देवी पार्वती ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुण्यक नामक उपवास किया था और इस उपवास का फल देवी पार्वती को गणपति जी के रूप में मिला था। दंतकथा के अनुसार इस व्रत के लिए शिवजी ने इंद्र से पारिजात वृक्ष देने को कहा था, लेकिन इंद्र ने इस वृक्ष को देने में अपनी असमर्थता जताई थी। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती के व्रत के लिए पारिजात से भरे वन का ही निर्माण कर दिया था।
इसके अलावा शिव महापुराण में गणपति जी की उत्पत्ति की कहानी अलग ही वर्णित है। शिव पुराण के अनुसार देवी की दो सखियां थी, जया और विजया। एक बार इन दो सखियों ने देवी पार्वती से कहा कि, नंदी और सभी गण महादेव की आज्ञा का ही पालन करते हैं। ऐसे में आपके पास भी ऐसा गण होना चाहिए जो सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन करें। तब देवी पार्वती ने इस गण के रूप में गणपति जी की रचना की। देवी ने गणपति जी की आपने शरीर के मैल से रचित किया था।
वहीं, एक कथा के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जलकर भस्म हो गया। इस पर दुःखी पार्वती से ब्रम्हा जी ने कहा कि जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो। पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला। इस प्रकार गणेश जी भगवान गजानन बन गए।
वराह पुराण के अनुसार, गणेशजी को भगवान शिवजी ने पंचतत्वों से रूप दिया था। गणेश जी ने विशिष्ट और अत्यंत रुपवान रूप पाया था। जब देवी-देवताओं को गणेश जी के विशिष्टता के बारे में मालूम हुआ तो उनको भय सताने लगा कि गणेश जी कहीं सभी के आकर्षण का केंद्र ना बन जाए। तब शिवजी ने गणेश जी का पेट बड़ा और मुंह हाथी का लगा दिया था। इस तरह भगवान गणेश जी की उत्पत्ति हुई थी।
गणपति जी की उत्पत्ति की ये दो रहस्य पुराणों में वर्णित हैं, लेकिन दोनों में ही उनके जन्म का दिन एक ही वर्णित है।
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(साई फीचर्स)