जब गौतम ऋषि की रसाई से भोजन चुराकर चट कर गए बाल गणेश और उनके संगी साथी . . .
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भगवान श्री गणेश प्रथम पूज्य हैं। भगवान श्री गणेश के बाल्यकाल की अनेक लीलाएं हैं जो लोगों को बहुत ज्यादा लुभाती हैं। बुद्धि के दाता भगवान श्री गणेश की लीलाओं से परिपूर्ण अनेक कथाओं में से कुछ चुनिंदा कथाएं हम आपके लिए लेकर आए हैं। सुनिए बाल गणेश की कथाओं के बारे में . . .
पहली कथा बाल गणेश के द्वारा गौतम ऋषि की रसाई से भोजन की चोरी के संबंध में है। कहा जाता है कि एक बार बाल गणेश कुछ मुनियों के पुत्र अपने मित्रों के साथ खेल रहे थे। खेलते-खेलते उन्हें भूख सताने लगी। वहीं, पास ही गौतम ऋषि का आश्रम था। ऋषि गौतम ध्यान में मगन थे और उनकी पत्नी अहिल्या रसोई में भोजन बना रही थीं। बाल गणेश आश्रम में गए और अहिल्या का ध्यान बंटते ही रसोई से सारा भोजन चुराकर ले गए और अपने मित्रों के साथ खाने लगे। जब इस बात की जानकारी गौतम ऋषि की पत्नि अहिल्या को लगी तो, अहिल्या ने गौतम ऋषि का ध्यान भंग किया और बताया कि रसोई से भोजन गायब हो गया है।
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ऋषि गौतम ने जंगल में जाकर देखा तो गणेश अपने मित्रों के साथ भोजन कर रहे थे। गौतम उन्हें पकड़कर माता पार्वती के पास ले गए। माता पार्वती ने चोरी की बात सुनी तो गणेश को एक कुटिया में ले जाकर बांध दिया। उन्हें बांधकर माता पार्वती कुटिया से बाहर आईं तो उन्हें आभास होने लगा जैसे गणेश उनकी गोद में हैं, कभी खेलते हुए, कभी भोजन करते हुए, कभी रोते हुए। लेकिन जब देखा तो गणेश कुटिया में बंधे दिखे। माता काम में लग गईं, उन्हें थोड़ी देर बाद फिर आभास होने लगा जैसे गणेश शिवगणों के साथ खेल रहे हैं। माता ने परेशान होकर फिर कुटिया में देखा तो गणेश आम बच्चों की तरह रो रहे थे। वे रस्सी से छुटने का प्रयास कर रहे थे। माता को उन पर अधिक स्नेह आया और दयावश उन्हें मुक्त कर दिया।
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इसी तरह एक अन्य कथा भगवान श्री गणेश की बुद्धिमानी के संबंध हैं कि अपनी बुद्धिमानी से एक बार में ही सारे देवताओं को गणेश जी ने निमंत्रण भेज दिया।
आप सभी जानते हैं कि भगवान श्री गणेश जी को बुद्धि और विवेक का देवता भी माना जाता है। यह कहानी भी उनके इन्हीं गुणों से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार एक बार भगवान शिव के मन में एक यज्ञ के अनुष्ठान का विचार आया। इस विचार को मूर्त रुप देने के लिये उन्होंने यज्ञ की तैयारियां करनी शुरु कर दीं। शिव जी के अनुष्ठान को सफल बनाने के लिये शिव जी के गण अलग-अलग जिम्मेदारियां लेकर काम करने लगे। लेकिन यज्ञ तभी पूर्ण रुप से सफल होता जब सारे देवता इस यज्ञ में भाग लेते, इसलिये सबसे बड़ा काम यह था कि आखिर किस को देवाताओं को निमंत्रण देने की जिम्मेदारी सौंपी जाए, ताकि वह इस जवाबदेही का निर्वहन ईमानदारी से कर सके, क्योंकि शिव जी इस यज्ञ को जल्द से जल्द आरंभ करना चाहते थे इसलिये निमंत्रण देने के लिये समय बहुत कम था।
यज्ञ का निमंत्रण देने के लिये ऩिमंत्रण देने वालों को अलग-अलग लोकों का भ्रमण करना पड़ता हैं। इसके साथ ही एक चुनौती यह भी थी कि निमंत्रण देने वाला कहीं देवताओं के साथ ऐसा व्यवहार न कर दे कि वो रुष्ट हो जाएं औऱ यज्ञ में आने के लिये इंकार कर दें। बहुत सोचने के बाद यह ऩिष्कर्ष निकला कि भगवान श्री गणेश जी को यह दायित्व सौंपा जाए क्योंकि बुद्धि और विवेक के मामले में वो सबसे श्रेष्ठ हैं।
अंततः भगवान श्री गणेश जी को जब यह जिम्मेदारी सौंपी गई तो उनके सामने भी यह चुनौती आयी कि इतने कम समय में सबको ऩिमंत्रण कैसे दिया जाएगा। उनकी सवारी मूसक की गति भी इतनी तीव्र नहीं थी की वो इस काम को जल्दी खत्म कर पाएं। इस समस्या को दूर करने के लिये गणेश जी ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया। उन्होंने विचार किया कि समस्त देवताओं का वास शिव में है अगर शिव को ही प्रसन्न किया जाए तो सब देवता स्वयं ही प्रसन्न हो जाएंगे। ये सोचकर गणेश जी ने भगवान शिव की पूजा की और उनके समक्ष ही सारे निमंत्रण पत्र समर्पित कर दिये। ऐसा करके सारे देवताओं को निमंत्रण पहुंच गया और सब देवता नियत समय पर यज्ञ में उपस्थित हुए।
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इसी तरह की एक और कथा भगवान श्री गणेश के बारे में प्रचलित है। आईए उस कथा को आपको सुनाते हैं . . .
एक बूढ़ी माताजी थी। वह बहुत ही ग़रीब और अंधी थीं। उसके एक बेटा और बहू थे। वह बूढ़ी माताजी सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बूढ़ी माताजी से बोले – माताजी आप जो चाहे सो मांग लीजिए।
बूढ़ी माताजी बोली- मुझसे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू?
तब गणेश जी बोले – अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग लीजिए।
उसके बाद बूढ़ी माताजी ने अपने बेटे से कहा – गणेशजी कहते हैं तू कुछ मांग ले बता मैं क्या मांगू?
पुत्र ने कहा – मां! तू धन मांग ले।
बहू से पूछा तो बहू ने कहा – नाती मांग ले।
तब बूढ़ी माताजी ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अतः उस बूढ़ी माताजी ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- बूढ़ी माताजी! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी ज़िन्दगी आराम से कट जाए।
इस पर बूढ़ी माताजी बोली- यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।
यह सुनकर तब गणेश जी बोले- बूढ़ी माताजी! आपने तो हमें ठग लिया। फिर भी जो आपने मांगा है वचन के अनुसार सब आपको मिलेगा। और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उधर बूढ़ी माताजी माँ ने जो कुछ मांगा वह सब कुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बूढ़ी माताजी माँ को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना, यह विनती है देवाधिदेव महादेव भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र विध्नहर्ता भगवान श्री गणेश से . . .
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यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
(साई फीचर्स)