व्रत और तप का महीना माना जाता है कार्तिक मास को . . .

18 अक्टूबर से आरंभ होकर 15 नवंबर तक चलेगा कार्तिक मास . . .
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सनातन धर्म में हिन्दू महीनों के आधार पर गणनाएं की जाती हैं। हिन्दू महीनों में कार्तिक महीना आरंभ होने वाला है। कार्तिक महीने को व्रत और तप का महीना भी माना जाता है। जानकार विद्वानों के अनुसार कार्तिक मास की शुरुआत इस साल 18 अक्टूबर से हो रही है और इसका समापन 15 नवंबर को होगा। इस महीने प्रतिदिन सुबह उठकर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यह महीना कार्तिक स्नान के लिए भी महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि इस महीने पवित्र नदी में स्नान करने से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भजन कीर्तन, दीपदान और तुलसी के पौधे की पूजा करना भी शुभ माना जाता है।
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कार्तिक माह तप और व्रत का माह है। इस माह में भगवान की भक्ति और पूजा अर्चना करने से मनुष्य की सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। पुराणों के अनुसार इस मास में भगवान विष्णु नारायण रूप में जल में निवास करते हैं। इसलिए कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक नियमित सूर्याेदय से पहले नदी या तालाब में स्नान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य कार्तिक मास में प्रतिदिन गीता का पाठ करता है उसे अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। गीता के एक अध्याय का पाठ करने से मनुष्य घोर नरक से मुक्त हो जाते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार इस महीने में अन्न दान करने से पापों का सर्वथा नाश हो जाता है।
अब जानिए धार्मिक दृष्टि से कार्तिक महीने के महत्व के बारे में,
पुराणों के अनुसार इसी माह में कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था। कुमार कार्तिकेय के पराक्रम को सम्मान देने के लिए ही इस माह का नाम कार्तिक रखा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार शंखासुर नामक असुर ब्रम्हाजी से वेदों को चुराकर भाग रहा था। वेद उनके हाथों से छूटकर समुद्र में प्रवेश कर गए। देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने कहा कि वे मछली का रूप धारण करके वेद वापस लेकर आएंगे। उसी समय भगवान ने कहा कि उसके बाद से कार्तिक के महीने में सभी वेदों के साथ वे स्वयं जल में रहेंगे। इस महीने में नियमित स्नान पूजन करने वाले पर भगवान कुबेर भी कृपा करेंगे। जो धर्मात्मा व्यक्ति इस महीने में उनकी पूजा करेगा उसे यमलोक और स्वर्गलोक नहीं सीधा बैकुंठ की प्राप्ति होगी और वह जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाएगा।
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कार्तिक मास के महात्म्य में बताया गया है कि एक गणिका थी। जवानी ढलने लगी तो उसे मृत्यु और उसके बाद की स्थिति का विचार परेशान करने लगा। एक दिन वह एक ऋषि के पास गई और अपनी मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने गणिका को कार्तिक स्नान का महात्म्य बताया। गणिका हर दिन सूर्याेदय से पूर्व स्नान करके तट पर दीप जलाकर भगवान विष्णु और सूर्यदेव की पूजा करने लगी। इस पुण्य के प्रभाव से बिना कष्ट शरीर से उसके प्राण निकल गए और दिव्य विमान में बैठकर बैकुंठ चली गई।
वहीं, जानकार विद्वानों के अनुसार कार्तिक मास की महिमा का वर्णन करते हुए एक कथा देवी रुक्मिणी की भी है। पद्म पुराण के अनुसार पूर्वजन्म में रुक्मिणी गंगा तट पर रहने वाली एक विधवा ब्राम्हणी थीं। वह नियमित रूप से गंगा स्नान करके तुलसी की पूजा किया करती थीं और भगवान विष्णु का ध्यान करती थीं। कार्तिक मास की ठंड में एक दिन स्नान करके पूजा करने के क्रम में इनकी आत्मा को शरीर से मुक्ति मिल गई। इनकी आत्मा के पास पुण्य की इतनी पूंजी थी कि उन्हें देवी लक्ष्मी की ही तरह स्थान प्राप्त हो गया। इसी पुण्य के प्रभाव से वह भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी बनीं।
कार्तिक महात्म्य का वर्णन करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने सत्य भामा को बताया था कि वह पूर्वजन्म में भगवान विष्णु की पूजा किया करती थीं। जीवन भर कार्तिक मास में सूर्याेदय से पूर्व स्नान करके वह तुलसी को दीप दिखाती थीं। इस पुण्य से सत्य भामा श्रीकृष्ण की पत्नी हुईं। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि कार्तिक का महीना सभी महीनों में उन्हें अति प्रिय है। जो भी व्यक्ति इस महीने में अन्नदान, दीपदान करता है उस पर कुबेर महाराज भी कृपा करते हैं।
कार्तिक माह की महिमा जानिए,
भगवान कृष्ण कहते हैं, सभी पौधों में से उन्हें तुलसी सबसे प्रिय है, सभी महीनों में से कार्तिक सबसे प्रिय है, सभी तीर्थ स्थानों में से उन्हें उनकी द्वारका नगरी सबसे प्रिय है और सभी दिनों में से एकादशी सबसे प्रिय है। कार्तिक महीना साल का सबसे फलदायी महीना होता है। भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए की गई हर छोटी बड़ी भक्ति, तपस्या या दान इस महीने में हज़ार गुना बढ़ जाता है।
जानिए इस साल कब मनाई जाएगी कार्तिक पूर्णिमा,
इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा जो कार्तिक मास की पूर्णिमा की रात होती है, 15 नवंबर को मनाई जाएगी। कार्तिक पूर्णिमा जिसे रस पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, शरद ऋतु की दूसरी पूर्णिमा है। कार्तिक पूर्णिमा कार्तिक के पवित्र महीने के अंत का भी प्रतीक है। कार्तिक के इस अत्यंत शुभ और अंतिम दिन पर तुलसी शालिग्राम विवाह (श्रीमती तुलसी महारानी और भगवान श्री कृष्ण का विवाह समारोह) भी मनाया जाता है, जो इस साल 13 नवंबर को मनाया जाएगा।
जानिए, क्यों मनाया जाता है तुलसी शालिग्राम विवाह
तुलसी देवी राजा कुशध्वज की पुत्री के रूप में अवतरित हुईं। तुलसी देवी भगवान हरि की बहुत बड़ी भक्त थीं। बाद में उनका विवाह राक्षसों के राजा जालंधर से हुआ। जल में जन्म लेने के कारण जालंधर ने समुद्र पर अपना अधिकार जताया और समुद्र मंथन से निकले 14 खजानों की मांग की। उसने युद्ध की घोषणा की और देवताओं के लिए खतरे का कारण बन गया। तुलसी देवी की पवित्रता के कारण, कोई भी उसे हरा नहीं सका। उसकी पवित्रता इतनी दृढ़ थी कि भगवान शिव भी युद्ध में जालंधर को नहीं हरा सके और सभी देवता मदद के लिए भगवान विष्णु के पास गए।
जलंधर को मारने के अंतिम उपाय के रूप में, भगवान विष्णु वृंदा को आकर्षित करने के लिए उसके पति के रूप में आए। जब तुलसी देवी ने अपने पति का रूप धारण किए भगवान विष्णु को नमस्कार किया, तो उनका सतीत्व क्षण भर के लिए भंग हो गया, देवताओं ने इस स्थिति का फायदा उठाया और राक्षस जलंधर को मार डाला। वृंदा देवी ने यह जानने के बाद भगवान विष्णु को काला पत्थर बनने का श्राप दिया, अपने शुद्ध भक्त के वचनों का सम्मान करते हुए भगवान हरि ने गंडकी नदी में शालिग्राम शिला के रूप में प्रकट होने का वादा किया।
उन्होंने यह भी कहा कि सबके लाभ के लिए तुलसी देवी एक पौधे का रूप धारण करेंगी जो उनके भक्तों के लिए सबसे शुभ होगा। उन्होंने कहा, वे तुलसी के पत्ते के बिना कोई भी भोग स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने तुलसी देवी को यह वरदान भी दिया कि वे हमेशा वैकुंठ में उनकी पत्नी के रूप में उनके साथ रहेंगी।
जानिए कार्तिक माह में क्या करना चाहिए?
कार्तिक मास तपस्या का महीना है। भक्त श्री श्री राधा मदन मोहन को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह की तपस्या करते हैं।
कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए निम्न उपाय अपनाए जा सकते हैं
भगवान के पवित्र नाम का जप करना चाहिए, घी के दीपक जलाकर भगवान की पूजा करना, पद्म पुराण में कहा गया है कि इस पवित्र महीने के दौरान की गई भक्ति गतिविधियों को सामान्य से अधिक आध्यात्मिक परिणाम मिलते हैं। तुलसी देवी की पूजा करना चाहिए। दान देना चाहिए, नाम संकीर्तन करना चाहिए।
अब जानिए भीष्म पंचक क्या है और यह कैसे मनाया जाता है?
कार्तिक मास के अंतिम 5 दिन भीष्म पंचक के नाम से जाने जाते हैं। जो लोग कार्तिक मास के व्रत करने में असमर्थ हैं, वे कार्तिक के अंतिम 5 दिनों में व्रत रख सकते हैं और इससे उन्हें पूरे कार्तिक माह के व्रत का लाभ मिलेगा। यह व्रत एकादशी के दिन से शुरू होता है और पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। पद्म पुराण में वर्णित है कि कार्तिक माह में भगवान दामोदर की पूजा करनी चाहिए और प्रतिदिन दामोदरष्टकम नामक प्रार्थना का पाठ करना चाहिए, जिसे ऋषि सत्याग्रह ने कहा है और इससे भगवान दामोदर आकर्षित होते हैं। इस माह में भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए की गई प्रत्येक छोटी सी तपस्या, दान या भगवान श्रीहरि की पूजा कई गुना बढ़ जाती है।
अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)