(डॉ. प्रितम भि. गेडाम)
आज के समय में शुद्ध आहार मिलना बेहद मुश्किल हो गया है क्योंकि हर कोई अपने फायदे के लिए दूसरों की जान लेने पर तुला है। कुछ सालों में देश में कैंसर, हृदय विकार, ब्रेन स्ट्रोक और मानवीय अंगो के विफल होने की तादाद अत्यधिक बढ़ गयी है। हर उम्र के लोगों में असामयिक मौत का आंकड़ा लगातार ऊंचाई छू रहा है और मनुष्य शारीरिक व मानसिक तौर पर कमजोर हो रहा है। इन समस्या की मुख्य जड़ मिलावटखोरी का जहर और जहरीला प्रदुषण है। अनजाने में ही सही लेकिन मिलावटखोरी के जहर और प्लास्टिक का सेवन हम रोज कर रहे है। नागपुर का सरकारी अस्पताल, जो एशिया के बड़े अस्पतालों में गिना जाता है, वहां हाल ही में हजारों मरीजों को नकली दवाइयां बाँटी गयी। विश्व प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर में प्रसाद के लड्डू में पशु चर्बी के मिलावट का पर्दा फाश हुआ। फसल पर हानिकारक कीटनाशकों का छिड़काव, अनाजों को पोलिश, खाद्यपदार्थों को आकर्षक बनाने के लिए घातक रासायनिक रंगों का प्रयोग, फलों को जल्द पकाने के लिए जानलेवा रसायनों का इस्तेमाल और नकली खाद्यपदार्थ का धड़ल्ले से प्रयोग कर आम लोगों की जान से खिलवाड़ किया जाता है और खाद्य पदार्थों में अस्वछता की गंभीर समस्या तो पहले से ही बनी है। फसलों पर छिड़काव किये जानेवाले कीटनाशकों के जहर के असर का इसी बात से अंदाजा लगा सकते है कि छिड़काव के दौरान असावधानी होने पर मनुष्य तुरंत जान गवांता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2020 से 2021 में भारत में कीटनाशक विषाक्तता से संबंधित मौतों की संख्या में 6% की वृद्धि हुई हैं। पिछले सप्ताह नागपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्र में खेत से बहने वाले पानी को पीकर बाघ की मौत हो गयी, क्योंकि वह कीटनाशक मिश्रित जहरीला पानी था।
हमारे देश में त्योहार आते ही जरुरी उत्पादों की मांग बढ़ जाती है और आश्चर्य की बात है कि मांग बढ़ने पर पूर्ति की सामग्री सिमित होने के बावजूद सामग्री के सप्लाई में कमी नहीं आती है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र राज्य में कोजागिरी पूर्णिमा के दिन दूध का विशेष पेय बनाया जाता है। इस दिन दूध की मांग अन्य दिनों के मुकाबले दोगुनी से अधिक होने के बावजूद पूर्ति उससे भी ज्यादा उपलब्ध होती है। अब ऐसा नहीं हो सकता कि केवल खास दिवस पर ही दुधारू पशु दुगना दूध देते है और उत्पादन एक दिन में दुगना हो जायें। अगर गाय एक दिन में 10 लीटर दूध देती है, तो रोज की तरह 10 लीटर ही दूध देगी, फिर अचानक मार्केट में दूध की आपूर्ति कैसे बढ़ जाती है?
मिलावट की इस खाद्य सामग्रियों से स्वास्थ्य की रक्षा कैसे करें? यह गंभीर सवाल उपस्थित होता है। गुणवत्ताहीन और मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन के मामले में फिलहाल हम शिखर पर है। चिकित्सक कहते हैं कि जंक फूड खराब होता है, फलों का सेवन करना बेहतर है, लेकिन अब मार्केट में कैसे फल खरीदे? अपना एक अनुभव साझा कर रहा हूँ, दो दिन पहले मैंने शहर के मुख्य फल मार्केट से अच्छे गुणवत्ता के सेब और मौसंबी खरीदी थी। फलों का बाहरी आवरण देखकर, अच्छी तरह छाँटकर फल खरीदने के बावजूद दूसरे दिन ही उसमे से आधे से ज्यादा फल सड़ गए। फल खरीदते वक्त मैंने फल विक्रेता से आजकल के गुणवत्ताहीन फलों के बारे में शिकायत भी की थी, तो फल विक्रेता का कहना था, कि उनके पास के फल बहुत उच्च गुणवत्ता के है, कोई शिकायत नहीं होगी, फिर भी फल खराब निकले। फलों के जल्दी खराब होने की मुख्य वजह उन पर होने वाली घातक रासायनिक प्रक्रिया है और दूसरी वजह पल-पल बदलता मौसम है।
कंज्यूमर गाइडेंस सोसायटी ऑफ इंडिया की वार्षिक रिपोर्ट में पाया गया कि बाजार में उपलब्ध 79% ब्रांडेड या खुला दूध अयोग्यता का गंभीर विषय है। साल 2019 में दूध के पैकेट के 413 नमूनों का परीक्षण किया गया था, उनमें से केवल 87 दूध के नमूने ही भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित मानक विनिर्देशों के अनुसार योग्य पाए गए। स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालने वाले दूध में कुछ प्रमुख मिलावट यूरिया, फॉर्मेलिन, डिटर्जेंट, अमोनियम सल्फेट, बोरिक एसिड, कास्टिक सोडा, बेंजोइक एसिड, सैलिसिलिक एसिड, हाइड्रोजन पेरोक्साइड, शर्करा और मेलामाइन हैं। दूध केवल हम पीते ही नहीं है, बल्कि हजारों तरह के खाद्यपदार्थ, मिठाइयां और व्यंजन बनाने में इसी दूध का प्रयोग होता है। देश में उत्पादन से ज्यादा दूध बेचा जाता है। आज दूध से बने अधिकतर खाद्य पदार्थों में शुद्ध दूध का स्वाद ही महसूस नहीं होता है। जबकि उत्पाद पूर्णत शुद्ध है, हमें ये समझाने का भरसक प्रयास विक्रेता करता है। रिसर्च कहता है कि देश में हर तीसरा व्यक्ति नकली दूध का सेवन कर रहा है।
आज की पीढ़ी बाहर खाना पसंद करती है, हर चीज उन्हें इंस्टेंट चाहिए, गुणवत्ता नहीं, सिर्फ स्वाद ही मायने रखता है। अक्सर सोशल मीडिया पर बहुत से वायरल वीडियो में स्ट्रीट फूड के रंगबिरंगे व्यंजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दिखाई पड़ते है। 20-30 रुपये के व्यंजन में भी खूब भर-भरकर बटर, पनीर डाला जाता है, जैसे वह शुद्ध बटर न होकर साधा पानी हो, उसकी कीमत के हिसाब से गुणवत्ता क्या होगी, वह हम समझ सकते है। निम्न दर्जे के खाद्य पदार्थ, अधिकतम पैकेट बंद मसाले, सॉसेज, चटनी, और तेल का अधिकतम प्रयोग, स्वच्छता की कमी नजर आती है। बहुत बार खाद्य पदार्थ तलने के बाद भी वह तेल बार-बार उपयोग में लाया जाता है। गर्म खाद्यपदार्थों में भी प्लास्टिक का प्रयोग बेहद हानिकारक है फिर भी उपयोग किया जाता है। ज्यादातर ऐसे व्यंजनों में गुणवत्ता से समझौता किया जाता है और पोषक तत्वों की जगह केवल विषाक्त तत्व ही दिखाई पड़ते है। बाहरी खाद्य पदार्थों में अधिकतर मिलावटी सामग्री के प्रयोग की संभावना ज्यादा होती है। उदाहरण के लिए अगर हम मार्केट से साबुत मसाले लाकर घर पर पिसा मसाला बनाएं, मूंगफली से तेल, दूध से पनीर, टमाटर से सॉस बनाये फिर भी मार्केट में तैयार उत्पाद से कई गुना महंगा उत्पाद हमारा होगा। फिर मार्केट में इतने सस्ते में उत्पाद कैसे बिकते है? जबकि महंगाई का जमाना है।
मिलावटी भोजन अत्यधिक विषैला होता है और कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है, मिलावटी भोजन के सेवन से दस्त, मतली, एलर्जी, मधुमेह, हृदय रोग, किडनी विकार, गुर्दे, कैंसर, लेथिरिज्म, तंत्रिका तंत्र से संबंधित रोग और यकृत सहित अंग प्रणालियों की विफलता शामिल है। कुछ मिलावटों में कार्सिनोजेनिक, क्लैस्टोजेनिक और जीनोटॉक्सिक गुण पाए गए हैं। लैंसेट के अध्ययन में पाया गया कि 2019 में भारत में दूषित पानी से पांच लाख से अधिक मौतें हुईं। हमारे देश में अधिकतर खाद्य पदार्थ हानिकारक तत्वों के साथ मौजूद है, देश में नकली शराब से भी हर साल बड़ी संख्या में मौतें होती है। आज किसी भी खाद्यपदार्थ को सौ फीसदी शुद्ध कहना बहुत मुश्किल है। जंक फ़ूड, मैदा, शक्कर, नमक, तेल पहले से ही धीमे जहर की तरह काम करके घातक बीमारियों से हमें जकड रहे है, ऊपर से देश में बढ़ता प्रदुषण हमारी सांसे कम कर रहा है। लैंसेट अध्ययन के अनुसार, 2019 में भारत में प्रदूषण के कारण 23 लाख से ज़्यादा असामयिक मौतें हुईं। इस मिलावटखोरी की दुनिया में कुछ भी शुद्ध होने का भरोसा नहीं होता। जागरूक रहें, दिखावे पर न जाएं, चटोरी जबान पर नियंत्रण रखें, स्वास्थ्य का ध्यान रखें, घर के खाद्य पदार्थों को ही प्राथमिकता दें और स्वस्थ रहें।
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