गुरू जी नमस्ते!
पहचाना..?? मैँ आपका शिष्य कल्लू बोल रहा हूँ।
गुरू जी : अरे! कल्लू कैसे हो तुम?? आज इतने सालो बाद. .
मेरी याद कैसे आ गई?? . . .
और मेरा फोन नम्बर कैसे मिल गया??
कल्लू : गुरूजी! फोन नम्बर ढ़ुंढ़ना कौन सा मुश्किल था?
जब प्यासे को प्यास लगती है तो जलस्रोत ढ़ुंढ़ ही लेता है। . . .
दरअसल गुरू जी हमने एक नया रोजगार शुरू किया है। . . .
और आपने बचपन मेँ कहा था की जब
भी कोई काम शुरू करना हमसे उदघाटन जरूर कराना।
तो हम अपने काम का उदघाटन आपसे ही कराना चाहते है।
गुरूजी : अतिसुन्दर! वत्स। बताओ कहाँ आना है उदघाटनके लिये हमेँ?
गुरूजी! आप पुराने खंडहर के पास चार लाख रूपया लेके आ जाईये।
आपका छोटूवा हमरे कब्जे मेँ है।
आज से ही अपरहण का धंधा चालू किया तो सोचा की उदघाटन आपके शुभ हाथो से ही हो।
(साई फीचर्स)