ऐसे स्कूल संचालकों से मुझे शिकायत है जिन्होंने अपने-अपने स्कूलों की भव्य इमारतें तो शहर के बाहर तान दी हैं और वहाँ विद्यार्थियों के लिये अध्ययन कार्य भी जारी है लेकिन उन स्कूलों के संचालकों के द्वारा यह देखने की जहमत नहीं उठायी जाती है कि उनकी शाला तक पहुँचने वाले विद्यार्थी किस तरह के वाहन में और किस कदर भेड़ बकरियों की मानिंद ठूंस-ठूंस कर लाये जा रहे हैं।
ऐसे स्कूलों के द्वारा अपने वाहन तो चलवाये ही जा रहे हैं विद्यार्थियों को लाने ले जाने के लिये लेकिन उनकी संख्या नाकाफी ही कही जा सकती है। इसके अभाव में पालकों को अपने बच्चों को शालाओं तक भेजने के लिये अन्य निजि वाहनों का सहारा लेना पड़ता है जिनमें ज्यादातर ऑटो ही शामिल होते हैं।
इस बात की चिंता किसी को नहीं दिखायी देती है कि क्या ऐसे ऑटो या अन्य वाहन उन शर्तों को पूरा करते हैं जो शालेय परिवहन में आवश्यक होती हैं। वैसे तो अधिकांश स्कूल बसें भी उन शर्तों का पालन नहीं करती हैं जो शिक्षण विभाग की ओर से लागू की गयी हैं लेकिन ऑटो में जो सबसे गंभीर बात है वह यह है कि एक-एक छोटे-छोटे ऑटो में 20 से 25 बच्चे बैठाये जाते हैं। बच्चों को एक छोटे से ऑटो में इतनी तादाद में बैठाकर स्कूल तक ले जाना और फिर वहाँ से लाना उन बच्चों के जीवन के लिये अत्यंत खतरनाक साबित हो सकता है।
गौरतलब होगा कि शहर के बाहर निकलते ही स्कूल परिवहन में लगे वाहन अत्यंत द्रुत गति से अपने लक्ष्य की ओर भागते हैं। भारी तादाद में जब बच्चे वाहन में बैठे हों तो आकस्मिक स्थिति में वाहन पर नियंत्रण रखना काफी मुश्किल भरा हो सकता है। पालकों के मन में भी इस बात को लेकर एक अंजाना सा डर बना रहता है कि ऐसे शालेय वाहनों के माध्यम से वे कहीं अपने बच्चे के जीवन को तो खतरे में नहीं डाल रहे हैं!
देखने वाली बात यह भी है कि सिवनी में अन्य विभागों के साथ ही साथ परिवहन विभाग और यातायात विभाग भी अपनी जिम्मेदारियों से आँखें मूंदे नज़र आ रहे हैं। हालांकि यातायात विभाग के द्वारा वर्ष में शायद ही कभी-कभार ऐसे वाहनों की चैकिंग की जाती होगी लेकिन क्या कभी-कभार चलाये जाने वाले इस तरह के अभियान को तब उचित माना जा सकता है जब उस दौरान ऐसे वाहनों के नियम विरूद्ध संचालन में अनेंकों खामियां पायी जातीं हों। खामियां पाये जाने के बाद भी इस तरह के अभियान को लंबे समय तक विराम दे दिये जाने से अपेक्षित नतीजे कतई नहीं मिल सकते हैं और इस तरह के अभियान को महज रस्म अदायगी ही कहा जा सकता है।
इस स्तंभ के माध्यम से जिला प्रशासन से अपेक्षा है कि विद्यार्थियों की सुरक्षा को देखते हुए स्कूल संचालकों के साथ ही साथ उन संस्थाओं से जुड़े अन्य वाहनों के संचालकों को भी नियमानुसार ही वाहन चलाये जाने के निर्देश दिये जायें। यहाँ यह भी देखना होगा कि ये निर्देश भी महज कागजी ही साबित न होकर रह जायें बल्कि उनका कड़ाई से पालन करवाया जाना भी सुनिश्चित किया जाये।
मुमताज़ खान