(अरुण दीक्षित)
क्या कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अजय सिंह “राहुल” को पार्टी के भीतर हाशिए पर धकेला जा रहा है? उनके आसपास के लोगों को आगे बढ़ाकर उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश कांग्रेस हाई कमान कर रही है? उनका विधानसभा टिकट काटने की तैयारी है? यह और ऐसे ही अनेक सवाल पिछले एक सप्ताह से प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में घूम रहे हैं। इन पर चटकारे ले कर चर्चा कांग्रेसी कर रहे हैं। बीजेपी भी इस मुद्दे को लपकने की तैयारी में है।
इन सवालों पर बात करने से पहले यह जान लेते हैं कि अजय सिंह हैं कौन! राहुल नाम से लोकप्रिय अजय सिंह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री और अपने जमाने के दिग्गज कांग्रेसी नेता स्वर्गीय अर्जुन सिंह के छोटे पुत्र और राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं। वे चुरहट से विधायक रहे हैं। दिग्विजय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे हैं। विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे हैं। प्रदेश के पहली पंक्ति के कांग्रेसी नेताओं में उनकी गिनती होती है! यूं तो उनकी पहचान पूरे प्रदेश में अर्जुन सिंह के पुत्र के रूप में ही रही है लेकिन उन्होंने विंध्य क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। इस समय वे अपने क्षेत्र पर ही अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं।
राहुल को लेकर शुरू हुई इन अटकलों की दो खास वजहें हैं! पहली – उनकी बड़ी बहन का अचानक प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में पदार्पण! दूसरी – उन्हीं के क्षेत्र के अपेक्षाकृत युवा कमलेश्वर पटेल को कांग्रेस नेतृत्व द्वारा अचानक महत्व दिया जाना!
पहले उनकी बहन वीणा सिंह की बात! मां बाप के रहते वीणा सिंह का परिवार में काफी दखल था। इसी वजह से आपसी तनाव भी था। अर्जुन सिंह के निधन के बाद यह तनाव अदालत तक पहुंचा था। पिछले दिनों वीणा सिंह अचानक प्रदेश में सक्रिय हुईं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने उन्हें पूरा सहयोग दिया। वीणा सिंह ने गत 12 अगस्त को भोपाल में अपनी मां द्वारा बताई गई बघेली कहावतों की पुस्तक का विमोचन भोपाल में कराया। कमलनाथ ने ही इस पुस्तक का विमोचन किया। इसकी पूरी व्यवस्था प्रदेश कांग्रेस ने की। इस पूरे कार्यक्रम से अजय सिंह और उनके साथी अलग रखे गए। आप यह भी कह सकते हैं कि उन्हें बुलाया नही गया। दशकों बाद भोपाल में वीणा सिंह की सक्रियता ने सबका ध्यान खींचा। चूंकि उनका कार्यक्रम कांग्रेस ने कराया इसलिए यह सवाल भी उठा कि वीणा सिंह की कांग्रेस में वापसी कब हुई। क्योंकि उन्होंने सीधी से 2009 का लोकसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ा था। उनकी वजह से कांग्रेस प्रत्याशी इंद्रजीत पटेल चुनाव हार गए थे। पटेल अर्जुन सिंह के काफी करीबी थे। इसी वजह से उन्होंने अपनी बेटी के खिलाफ चुनाव प्रचार भी किया था।
लोकसभा चुनाव हारने के बाद वीणा सिंह कभी सक्रिय नही दिखी। अब अचानक वे अपनी मां की किताब की आड़ में भोपाल आ पहुंची। पुस्तक विमोचन के बाद से यह चर्चा चल पड़ी है कि कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ वीणा सिंह को सिंगरौली से विधानसभा चुनाव लड़ाना चाहते हैं। सिंगरौली में वीणा सिंह की ससुराल है। प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर से इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई है कि वीणा सिंह की कांग्रेस में वापसी कब हुई? या पार्टी से उनका निष्कासन कब खत्म हुआ।
अब कमलेश्वर पटेल की बात! कमलेश्वर अर्जुन सिंह के करीबी रहे पूर्व मंत्री स्वर्गीय इंद्रजीत पटेल के पुत्र हैं। वे उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी भी हैं। इस समय वे सिंहावल विधानसभा सीट से दूसरी बार विधायक हैं। वे कमलनाथ की 15 महीने की सरकार में मंत्री भी रहे थे।
सामान्य कद काठी और व्यक्तित्व के मालिक कमलेश्वर भोपाल में अपना शिक्षा संस्थान चलाते हैं। वे उसी सीधी जिले में राजनीति करते हैं जो अजय सिंह का कार्यक्षेत्र है।
कमलेश्वर अचानक चर्चा में इसलिए हैं क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व ने अचानक उन्हें प्रदेश का ओबीसी नेता मान लिया है। इसके साथ ही उनका कद भी बहुत बढ़ा दिया है। पहले उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए बनी स्क्रीनिंग कमेटी का सदस्य बनाया। फिर अचानक कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य बना लिया। यही नहीं सागर की सभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बात का जिक्र भी किया।
ऐसा नहीं है कि कमलेश्वर पटेल अकेले ओबीसी नेता हैं। इस समय उनके समकालीन करीब आधा दर्जन नेता कांग्रेस में खासे सक्रिय हैं। इनमें अरुण यादव, जीतू पटवारी आदि तो काफी पहले से सक्रिय हैं। ऐसे में अचानक कमलेश्वर पटेल को राष्ट्रीय पटल पर ओबीसी नेता बनाए जाने की कोशिशों ने सबका ध्यान खींचा है। क्योंकि पटेल के पास न तो प्रभावी व्यक्तित्व है और न ही वे अच्छे वक्ताओं में गिने जाते हैं। प्रदेश में भी उनकी कोई पहचान नहीं है। उन्हें इंद्रजीत पटेल के पुत्र के ही रूप में जाना जाता है।
वीणा सिंह की सक्रियता और कमलेश्वर पटेल का कद बढ़ाया जाना सबके लिए आश्चर्य की बात है। इसलिए यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस के भीतर अजय सिंह को किनारे लगाने की तैयारी चल रही है। अजय सिंह और कमलेश्वर पटेल सीधी जिले में ही राजनीति करते हैं। अभी भी यह माना जाता है कि उनके पिता ने अर्जुन सिंह की छत्रछाया में ही राजनीति की थी। वे हमेशा उनके ही साथ रहे।
लेकिन कमलेश्वर के साथ ऐसा नहीं है। आर्थिक रूप से सक्षम कमलेश्वर 2018 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अजय सिंह से आगे खड़े हो गए थे।
अजय सिंह 2018 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। जबकि कमलेश्वर पटेल को कमलनाथ ने अपने मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाया था। इस वजह से सीधी जिले के साथ साथ विंध्य क्षेत्र में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाने की भी कोशिश की। माना जाता है कि वे अपने पिता की छत्रछाया से मुक्त होना चाहते हैं।
पार्टी के भीतर निशाने पर चल रहे अजय सिंह के साथ एक नही तीन हादसे हुए हैं। वे 2014 का लोकसभा चुनाव सतना से लड़े थे। तब मैहर से कांग्रेस विधायक नारायण त्रिपाठी ने उनका खुल कर विरोध किया था। इसके चलते वे लोकसभा चुनाव हार गए थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद वे फिर लोकसभा चुनाव लड़े। लेकिन मोदी लहर में ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।
कहा जाता है की जातीय गणित में अजय सिंह का साथ उनके अपने लोगों ने नही दिया। विधानसभा में हार की यह भी एक बड़ी वजह थी।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के दो बड़े नेता किसी भी कीमत पर अजय सिंह का कद छोटा करना चाहते हैं। उनकी योजना यह भी है कि लगातार तीन चुनाव की हार का हवाला देकर उन्हें विधान सभा का टिकट ही न दिया जाए। प्रदेश की कांग्रेस राजनीति पर बारीक नजर रखने वाले यह जानते हैं कि 25 साल पहले अर्जुन सिंह को भी इन्हीं नेताओं ने चुनावी राजनीति के हाशिए पर धकेल दिया था। उसके बाद वे राज्यसभा में चले गए थे। अगर कांग्रेस हाई कमान ने हार को लेकर कोई मापदंड बनाया तो अजय सिंह की मुश्किल बढ़ सकती है।
बीजेपी तो अपनी रणनीति बना ही रही है लेकिन कांग्रेसी भी पीछे नहीं हैं। सीधी में एक संदेश साफ साफ दे दिया गया है कि अब कमलेश्वर पटेल अजय सिंह से बड़े नेता हैं। इसका असर यह हो सकता है कि कमलेश्वर की बिरादरी चुनाव में अपना अलग रास्ता पकड़े। जिसका नुकसान अजय सिंह को होगा। उस इलाके में जातीय राजनीति कितनी गहरी है यह सब जानते हैं।
वीणा सिंह को आगे किए जाने के पीछे भी ऐसा ही गणित है। सब जानते हैं कि भाई बहन के आपसी संबंध ठीक नही हैं। ऐसे में अगर उन्हें सिंगरौली से चुनाव लड़ाया गया तो उसका असर अजय सिंह पर ही पड़ेगा। कहा जाता है कि 2018 की विधानसभा हार में वीणा सिंह ने अपनी मां की आड़ लेकर बड़ी भूमिका निभाई थी।
कांग्रेस के नेता अजय सिंह को क्यों किनारे करना चाहते हैं? इस सवाल का उत्तर पूरी कांग्रेस जानती है। सबको अपनी अपनी अगली लाइनें बड़ी करनी हैं! ऐसे में अगर अजय सिंह मैदान में हैं तो बहुत मुश्किल होगी! इसलिए सब दांव पेंच चले जा रहे हैं! बीजेपी भी इसमें शामिल है। देखना यह है कि अजय सिंह खुद को कैसे बचाते हैं।
(साई फीचर्स)